5 किशमिश की टिक्कियों से मुझे तरो-ताज़ा करो, सेबों से मुझे तक़वियत दो, क्योंकि मैं इश्क़ के मारे बीमार हो गई हूँ।
6 उसका बायाँ बाज़ू मेरे सर के नीचे होता और दहना बाज़ू मुझे गले लगाता है।
7 ऐ यरूशलम की बेटियो, ग़ज़ालों और खुले मैदान की हिरनियों की क़सम खाओ कि जब तक मुहब्बत ख़ुद न चाहे तुम उसे न जगाओगी, न बेदार करोगी।
9 मेरा महबूब ग़ज़ाल या जवान हिरन की मानिंद है। अब वह हमारे घर की दीवार के सामने रुककर खिड़कियों में से झाँक रहा, जंगले में से तक रहा है।
11 देख, सर्दियों का मौसम गुज़र गया है, बारिशें भी ख़त्म हो गई हैं।
12 ज़मीन से फूल फूट निकले हैं और गीत का वक़्त आ गया है, कबूतरों की ग़ूँ ग़ूँ हमारे मुल्क में सुनाई देती है।
13 अंजीर के दरख़्तों पर पहली फ़सल का फल पक रहा है, और अंगूर की बेलों के फूल ख़ुशबू फैला रहे हैं। चुनाँचे आ मेरी हसीन महबूबा, उठकर आ जा!
14 ऐ मेरी कबूतरी, चट्टान की दराड़ों में छुपी न रह, पहाड़ी पत्थरों में पोशीदा न रह बल्कि मुझे अपनी शक्ल दिखा, मुझे अपनी आवाज़ सुनने दे, क्योंकि तेरी आवाज़ शीरीं, तेरी शक्ल ख़ूबसूरत है।”
17 ऐ मेरे महबूब, इससे पहले कि शाम की हवा चले और साये लंबे होकर फ़रार हो जाएँ ग़ज़ाल या जवान हिरन की तरह संगलाख़ पहाड़ों का रुख़ कर!
<- ग़ज़लुल-ग़ज़लात 1ग़ज़लुल-ग़ज़लात 3 ->- a मैकदे से मुराद ग़ालिबन महल का वह हिस्सा है जिसमें बादशाह ज़ियाफ़त करता था।