2 मैंने शीशे का-सा एक समुंदर भी देखा जिसमें आग मिलाई गई थी। इस समुंदर के पास वह खड़े थे जो हैवान, उसके मुजस्समे और उसके नाम के नंबर पर ग़ालिब आ गए थे। वह अल्लाह के दिए हुए सरोद पकड़े 3 अल्लाह के ख़ादिम मूसा और लेले का गीत गा रहे थे,
4 ऐ रब, कौन तेरा ख़ौफ़ नहीं मानेगा?
5 इसके बाद मैंने देखा कि अल्लाह के घर यानी आसमान पर के शरीअत के ख़ैमे को *यानी मुलाक़ात के ख़ैमे को। खोल दिया गया। 6 अल्लाह के घर से वह सात फ़रिश्ते निकल आए जिनके पास सात बलाएँ थीं। उनके कतान के कपड़े साफ़-सुथरे और चमक रहे थे। यह कपड़े सीनों पर सोने के कमरबंद से बँधे हुए थे। 7 फिर चार जानदारों में से एक ने इन सात फ़रिश्तों को सोने के सात प्याले दिए। यह प्याले उस ख़ुदा के ग़ज़ब से भरे हुए थे जो अज़ल से अबद तक ज़िंदा है। 8 उस वक़्त अल्लाह का घर उसके जलाल और क़ुदरत से पैदा होनेवाले धुएँ से भर गया। और जब तक सात फ़रिश्तों की सात बलाएँ तकमील तक न पहुँचीं उस वक़्त तक कोई भी अल्लाह के घर में दाख़िल न हो सका।
<- मुकाशफ़ा 14मुकाशफ़ा 16 ->- a यानी मुलाक़ात के ख़ैमे को।