2 अपनी मुसीबत में मैंने रब को तलाश किया। रात के वक़्त मेरे हाथ बिलानाग़ा उस की तरफ़ उठे रहे। मेरी जान ने तसल्ली पाने से इनकार किया।
4 तू मेरी आँखों को बंद होने नहीं देता। मैं इतना बेचैन हूँ कि बोल भी नहीं सकता।
6 रात को मैं अपना गीत याद करता हूँ। मेरा दिल महवे-ख़याल रहता और मेरी रूह तफ़तीश करती रहती है।
7 “क्या रब हमेशा के लिए रद्द करेगा, क्या आइंदा हमें कभी पसंद नहीं करेगा?
8 क्या उस की शफ़क़त हमेशा के लिए जाती रही है? क्या उसके वादे अब से जवाब दे गए हैं?
9 क्या अल्लाह मेहरबानी करना भूल गया है? क्या उसने ग़ुस्से में अपना रहम बाज़ रखा है?” (सिलाह)
10 मैं बोला, “इससे मुझे दुख है कि अल्लाह तआला का दहना हाथ बदल गया है।”
12 जो कुछ तूने किया उसके हर पहलू पर ग़ौरो-ख़ौज़ करूँगा, तेरे अज़ीम कामों में महवे-ख़याल रहूँगा।
13 ऐ अल्लाह, तेरी राह क़ुद्दूस है। कौन-सा माबूद हमारे ख़ुदा जैसा अज़ीम है?
14 तू ही मोजिज़े करनेवाला ख़ुदा है। अक़वाम के दरमियान तूने अपनी क़ुदरत का इज़हार किया है।
15 बड़ी क़ुव्वत से तूने एवज़ाना देकर अपनी क़ौम, याक़ूब और यूसुफ़ की औलाद को रिहा कर दिया है। (सिलाह)
16 ऐ अल्लाह, पानी ने तुझे देखा, पानी ने तुझे देखा तो तड़पने लगा, गहराइयों तक लरज़ने लगा।
17 मूसलाधार बारिश बरसी, बादल गरज उठे और तेरे तीर इधर-उधर चलने लगे।
18 आँधी में तेरी आवाज़ कड़कती रही, दुनिया बिजलियों से रौशन हुई, ज़मीन काँपती काँपती उछल पड़ी।
19 तेरी राह समुंदर में से, तेरा रास्ता गहरे पानी में से गुज़रा, तो भी तेरे नक़्शे-क़दम किसी को नज़र न आए।
20 मूसा और हारून के हाथ से तूने रेवड़ की तरह अपनी क़ौम की राहनुमाई की।
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