2 मुझे बदकारों से छुटकारा दे, ख़ूनख़ारों से रिहा कर।
3 देख, वह मेरी ताक में बैठे हैं। ऐ रब, ज़बरदस्त आदमी मुझ पर हमलाआवर हैं, हालाँकि मुझसे न ख़ता हुई न गुनाह।
4 मैं बेक़ुसूर हूँ, ताहम वह दौड़ दौड़कर मुझसे लड़ने की तैयारियाँ कर रहे हैं। चुनाँचे जाग उठ, मेरी मदद करने आ, जो कुछ हो रहा है उस पर नज़र डाल।
5 ऐ रब, लशकरों और इसराईल के ख़ुदा, दीगर तमाम क़ौमों को सज़ा देने के लिए जाग उठ! उन सब पर करम न फ़रमा जो शरीर और ग़द्दार हैं। (सिलाह)
7 देख, उनके मुँह से राल टपक रही है, उनके होंटों से तलवारें निकल रही हैं। क्योंकि वह समझते हैं, “कौन सुनेगा?”
9 ऐ मेरी क़ुव्वत, मेरी आँखें तुझ पर लगी रहेंगी, क्योंकि अल्लाह मेरा क़िला है।
10 मेरा ख़ुदा अपनी मेहरबानी के साथ मुझसे मिलने आएगा, अल्लाह बख़्श देगा कि मैं अपने दुश्मनों की शिकस्त देखकर ख़ुश हूँगा।
12 जो कुछ भी उनके मुँह से निकलता है वह गुनाह है, वह लानतें और झूट ही सुनाते हैं। चुनाँचे उन्हें उनके तकब्बुर के जाल में फँसने दे।
13 ग़ुस्से में उन्हें तबाह कर! उन्हें यों तबाह कर कि उनका नामो-निशान तक न रहे। तब लोग दुनिया की इंतहा तक जान लेंगे कि अल्लाह याक़ूब की औलाद पर हुकूमत करता है। (सिलाह)
15 वह इधर-उधर गश्त लगाकर खाने की चीज़ें ढूँडते हैं। अगर पेट न भरे तो ग़ुर्राते रहते हैं।
17 ऐ मेरी क़ुव्वत, मैं तेरी मद्हसराई करूँगा, क्योंकि अल्लाह मेरा क़िला और मेरा मेहरबान ख़ुदा है।
<- ज़बूर 58ज़बूर 60 ->