2 लंबी और छोटी ढाल पकड़ ले और उठकर मेरी मदद करने आ।
3 नेज़े और बरछी को निकालकर उन्हें रोक दे जो मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं! मेरी जान से फ़रमा, “मैं तेरी नजात हूँ!”
4 जो मेरी जान के लिए कोशाँ हैं उनका मुँह काला हो जाए, वह रुसवा हो जाएँ। जो मुझे मुसीबत में डालने के मनसूबे बाँध रहे हैं वह पीछे हटकर शरमिंदा हों।
5 वह हवा में भूसे की तरह उड़ जाएँ जब रब का फ़रिश्ता उन्हें भगा दे।
6 उनका रास्ता तारीक और फिसलना हो जब रब का फ़रिश्ता उनके पीछे पड़ जाए।
7 क्योंकि उन्होंने बेसबब और चुपके से मेरे रास्ते में जाल बिछाया, बिलावजह मुझे पकड़ने का गढ़ा खोदा है।
8 इसलिए तबाही अचानक ही उन पर आ पड़े, पहले उन्हें पता ही न चले। जो जाल उन्होंने चुपके से बिछाया उसमें वह ख़ुद उलझ जाएँ, जिस गढ़े को उन्होंने खोदा उसमें वह ख़ुद गिरकर तबाह हो जाएँ।
10 मेरे तमाम आज़ा कह उठेंगे, “ऐ रब, कौन तेरी मानिंद है? कोई भी नहीं! क्योंकि तू ही मुसीबतज़दा को ज़बरदस्त आदमी से छुटकारा देता, तू ही नाचार और ग़रीब को लूटनेवाले के हाथ से बचा लेता है।”
12 वह मेरी नेकी के एवज़ मुझे नुक़सान पहुँचा रहे हैं। अब मेरी जान तने-तनहा है।
13 जब वह बीमार हुए तो मैंने टाट ओढ़कर और रोज़ा रखकर अपनी जान को दुख दिया। काश मेरी दुआ मेरी गोद में वापस आए!
14 मैंने यों मातम किया जैसे मेरा कोई दोस्त या भाई हो। मैं मातमी लिबास पहनकर यों ख़ाक में झुक गया जैसे अपनी माँ का जनाज़ा हो।
16 मुसलसल कुफ़र बक बककर वह मेरा मज़ाक़ उड़ाते, मेरे ख़िलाफ़ दाँत पीसते थे।
17 ऐ रब, तू कब तक ख़ामोशी से देखता रहेगा? मेरी जान को उनकी तबाहकुन हरकतों से बचा, मेरी ज़िंदगी को जवान शेरों से छुटकारा दे।
18 तब मैं बड़ी जमात में तेरी सताइश और बड़े हुजूम में तेरी तारीफ़ करूँगा।
19 उन्हें मुझ पर बग़लें बजाने न दे जो बेसबब मेरे दुश्मन हैं। उन्हें मुझ पर नाक-भौं चढ़ाने न दे जो बिलावजह मुझसे कीना रखते हैं।
20 क्योंकि वह ख़ैर और सलामती की बातें नहीं करते बल्कि उनके ख़िलाफ़ फ़रेबदेह मनसूबे बाँधते हैं जो अमन और सुकून से मुल्क में रहते हैं।
21 वह मुँह फाड़कर कहते हैं, “लो जी, हमने अपनी आँखों से उस की हरकतें देखी हैं!”
22 ऐ रब, तुझे सब कुछ नज़र आया है। ख़ामोश न रह! ऐ रब, मुझसे दूर न हो।
23 ऐ रब मेरे ख़ुदा, जाग उठ! मेरे दिफ़ा में उठकर उनसे लड़!
24 ऐ रब मेरे ख़ुदा, अपनी रास्ती के मुताबिक़ मेरा इनसाफ़ कर। उन्हें मुझ पर बग़लें बजाने न दे।
25 वह दिल में न सोचें, “लो जी, हमारा इरादा पूरा हुआ है!” वह न बोलें, “हमने उसे हड़प कर लिया है।”
26 जो मेरा नुक़सान देखकर ख़ुश हुए उन सबका मुँह काला हो जाए, वह शरमिंदा हो जाएँ। जो मुझे दबाकर अपने आप पर फ़ख़र करते हैं वह शरमिंदगी और रुसवाई से मुलब्बस हो जाएँ।
28 तब मेरी ज़बान तेरी रास्ती बयान करेगी, वह सारा दिन तेरी तमजीद करती रहेगी।
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