2 मेरी इल्तिजाएँ सुन जब मैं चीख़ते-चिल्लाते तुझसे मदद माँगता हूँ, जब मैं अपने हाथ तेरी सुकूनतगाह के मुक़द्दसतरीन कमरे की तरफ़ उठाता हूँ।
3 मुझे उन बेदीनों के साथ घसीटकर सज़ा न दे जो ग़लत काम करते हैं, जो अपने पड़ोसियों से बज़ाहिर दोस्ताना बातें करते, लेकिन दिल में उनके ख़िलाफ़ बुरे मनसूबे बाँधते हैं।
4 उन्हें उनकी हरकतों और बुरे कामों का बदला दे। जो कुछ उनके हाथों से सरज़द हुआ है उस की पूरी सज़ा दे। उन्हें उतना ही नुक़सान पहुँचा दे जितना उन्होंने दूसरों को पहुँचाया है।
5 क्योंकि न वह रब के आमाल पर, न उसके हाथों के काम पर तवज्जुह देते हैं। अल्लाह उन्हें ढा देगा और दुबारा कभी तामीर नहीं करेगा।
7 रब मेरी क़ुव्वत और मेरी ढाल है। उस पर मेरे दिल ने भरोसा रखा, उससे मुझे मदद मिली है। मेरा दिल शादियाना बजाता है, मैं गीत गाकर उस की सताइश करता हूँ।
8 रब अपनी क़ौम की क़ुव्वत और अपने मसह किए हुए ख़ादिम का नजातबख़्श क़िला है।
9 ऐ रब, अपनी क़ौम को नजात दे! अपनी मीरास को बरकत दे! उनकी गल्लाबानी करके उन्हें हमेशा तक उठाए रख।
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