2 अपने ख़ादिम को अपनी अदालत में न ला, क्योंकि तेरे हुज़ूर कोई भी जानदार रास्तबाज़ नहीं ठहर सकता।
3 क्योंकि दुश्मन ने मेरी जान का पीछा करके उसे ख़ाक में कुचल दिया है। उसने मुझे उन लोगों की तरह तारीकी में बसा दिया है जो बड़े अरसे से मुरदा हैं।
4 मेरे अंदर मेरी रूह निढाल है, मेरे अंदर मेरा दिल दहशत के मारे बेहिसो-हरकत हो गया है।
6 मैं अपने हाथ तेरी तरफ़ उठाता हूँ, मेरी जान ख़ुश्क ज़मीन की तरह तेरी प्यासी है। (सिलाह)
8 सुबह के वक़्त मुझे अपनी शफ़क़त की ख़बर सुना, क्योंकि मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ। मुझे वह राह दिखा जिस पर मुझे जाना है, क्योंकि मैं तेरा ही आरज़ूमंद हूँ।
9 ऐ रब, मुझे मेरे दुश्मनों से छुड़ा, क्योंकि मैं तुझमें पनाह लेता हूँ।
10 मुझे अपनी मरज़ी पूरी करना सिखा, क्योंकि तू मेरा ख़ुदा है। तेरा नेक रूह हमवार ज़मीन पर मेरी राहनुमाई करे।
11 ऐ रब, अपने नाम की ख़ातिर मेरी जान को ताज़ादम कर। अपनी रास्ती से मेरी जान को मुसीबत से बचा।
12 अपनी शफ़क़त से मेरे दुश्मनों को हलाक कर। जो भी मुझे तंग कर रहे हैं उन्हें तबाह कर! क्योंकि मैं तेरा ख़ादिम हूँ।
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