2 उसने क़सम खाकर रब से वादा किया और याक़ूब के क़वी ख़ुदा के हुज़ूर मन्नत मानी,
3 “न मैं अपने घर में दाख़िल हूँगा, न बिस्तर पर लेटूँगा,
4 न मैं अपनी आँखों को सोने दूँगा, न अपने पपोटों को ऊँघने दूँगा
5 जब तक रब के लिए मक़ाम और याक़ूब के सूरमे के लिए सुकूनतगाह न मिले।”
7 आओ, हम उस की सुकूनतगाह में दाख़िल होकर उसके पाँवों की चौकी के सामने सिजदा करें।
9 तेरे इमाम रास्ती से मुलब्बस हो जाएँ, और तेरे ईमानदार ख़ुशी के नारे लगाएँ।
11 रब ने क़सम खाकर दाऊद से वादा किया है, और वह उससे कभी नहीं फिरेगा, “मैं तेरी औलाद में से एक को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा।
12 अगर तेरे बेटे मेरे अहद के वफ़ादार रहें और उन अहकाम की पैरवी करें जो मैं उन्हें सिखाऊँगा तो उनके बेटे भी हमेशा तक तेरे तख़्त पर बैठेंगे।”
14 उसने फ़रमाया, “यह हमेशा तक मेरी आरामगाह है, और यहाँ मैं सुकूनत करूँगा, क्योंकि मैं इसका आरज़ूमंद हूँ।
15 मैं सिय्यून की ख़ुराक को कसरत की बरकत देकर उसके ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा।
16 मैं उसके इमामों को नजात से मुलब्बस करूँगा, और उसके ईमानदार ख़ुशी से ज़ोरदार नारे लगाएँगे।
17 यहाँ मैं दाऊद की ताक़त बढ़ा दूँगा, *लफ़्ज़ी तरजुमा : मैं दाऊद का सींग फूटने दूँगा। और यहाँ मैंने अपने मसह किए हुए ख़ादिम के लिए चराग़ तैयार कर रखा है।
18 मैं उसके दुश्मनों को शरमिंदगी से मुलब्बस करूँगा जबकि उसके सर का ताज चमकता रहेगा।”
<- ज़बूर 131ज़बूर 133 ->- a लफ़्ज़ी तरजुमा : मैं दाऊद का सींग फूटने दूँगा।