2 साज़ बजाकर उस की मद्हसराई करो। उसके तमाम अजायब के बारे में लोगों को बताओ।
3 उसके मुक़द्दस नाम पर फ़ख़र करो। रब के तालिब दिल से ख़ुश हों।
4 रब और उस की क़ुदरत की दरियाफ़्त करो, हर वक़्त उसके चेहरे के तालिब रहो।
5 जो मोजिज़े उसने किए उन्हें याद करो। उसके इलाही निशान और उसके मुँह के फ़ैसले दोहराते रहो।
6 तुम जो उसके ख़ादिम इब्राहीम की औलाद और याक़ूब के फ़रज़ंद हो, जो उसके बरगुज़ीदा लोग हो, तुम्हें सब कुछ याद रहे!
7 वही रब हमारा ख़ुदा है, वही पूरी दुनिया की अदालत करता है।
8 वह हमेशा अपने अहद का ख़याल रखता है, उस कलाम का जो उसने हज़ार पुश्तों के लिए फ़रमाया था।
9 यह वह अहद है जो उसने इब्राहीम से बाँधा, वह वादा जो उसने क़सम खाकर इसहाक़ से किया था।
10 उसने उसे याक़ूब के लिए क़ायम किया ताकि वह उसके मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारे, उसने तसदीक़ की कि यह मेरा इसराईल से अबदी अहद है।
11 साथ साथ उसने फ़रमाया, “मैं तुझे मुल्के-कनान दूँगा। यह तेरी मीरास का हिस्सा होगा।”
13 अब तक वह मुख़्तलिफ़ क़ौमों और सलतनतों में घुमते-फिरते थे।
14 लेकिन अल्लाह ने उन पर किसी को ज़ुल्म करने न दिया, और उनकी ख़ातिर उसने बादशाहों को डाँटा,
15 “मेरे मसह किए हुए ख़ादिमों को मत छेड़ना, मेरे नबियों को नुक़सान मत पहुँचाना।”
17 लेकिन उसने उनके आगे आगे एक आदमी को मिसर भेजा यानी यूसुफ़ को जो ग़ुलाम बनकर फ़रोख़्त हुआ।
18 उसके पाँव और गरदन ज़ंजीरों में जकड़े रहे
19 जब तक वह कुछ पूरा न हुआ जिसकी पेशगोई यूसुफ़ ने की थी, जब तक रब के फ़रमान ने उस की तसदीक़ न की।
20 तब मिसरी बादशाह ने अपने बंदों को भेजकर उसे रिहाई दी, क़ौमों के हुक्मरान ने उसे आज़ाद किया।
21 उसने उसे अपने घराने पर निगरान और अपनी तमाम मिलकियत पर हुक्मरान मुक़र्रर किया।
22 यूसुफ़ को फ़िरौन के रईसों को अपनी मरज़ी के मुताबिक़ चलाने और मिसरी बुज़ुर्गों को हिकमत की तालीम देने की ज़िम्मादारी भी दी गई।
24 वहाँ अल्लाह ने अपनी क़ौम को बहुत फलने फूलने दिया, उसने उसे उसके दुश्मनों से ज़्यादा ताक़तवर बना दिया।
25 साथ साथ उसने मिसरियों का रवैया बदल दिया, तो वह उस की क़ौम इसराईल से नफ़रत करके रब के ख़ादिमों से चालाकियाँ करने लगे।
27 मुल्के-हाम में आकर उन्होंने उनके दरमियान अल्लाह के इलाही निशान और मोजिज़े दिखाए।
28 अल्लाह के हुक्म पर मिसर पर तारीकी छा गई, मुल्क में अंधेरा हो गया। लेकिन उन्होंने उसके फ़रमान न माने।
29 उसने उनका पानी ख़ून में बदलकर उनकी मछलियों को मरवा दिया।
30 मिसर के मुल्क पर मेंढकों के ग़ोल छा गए जो उनके हुक्मरानों के अंदरूनी कमरों तक पहुँच गए।
31 अल्लाह के हुक्म पर मिसर के पूरे इलाक़े में मक्खियों और जुओं के ग़ोल फैल गए।
32 बारिश की बजाए उसने उनके मुल्क पर ओले और दहकते शोले बरसाए।
33 उसने उनकी अंगूर की बेलें और अंजीर के दरख़्त तबाह कर दिए, उनके इलाक़े के दरख़्त तोड़ डाले।
34 उसके हुक्म पर अनगिनत टिड्डियाँ अपने बच्चों समेत मुल्क पर हमलाआवर हुईं।
35 वह उनके मुल्क की तमाम हरियाली और उनके खेतों की तमाम पैदावार चट कर गईं।
36 फिर अल्लाह ने मिसर में तमाम पहलौठों को मार डाला, उनकी मरदानगी का पहला फल तमाम हुआ।
38 मिसर ख़ुश था जब वह रवाना हुए, क्योंकि उन पर इसराईल की दहशत छा गई थी।
39 दिन को अल्लाह ने उनके ऊपर बादल कम्बल की तरह बिछा दिया, रात को आग मुहैया की ताकि रौशनी हो।
40 जब उन्होंने ख़ुराक माँगी तो उसने उन्हें बटेर पहुँचाकर आसमानी रोटी से सेर किया।
41 उसने चट्टान को चाक किया तो पानी फूट निकला, और रेगिस्तान में पानी की नदियाँ बहने लगीं।
43 चुनाँचे वह अपनी चुनी हुई क़ौम को मिसर से निकाल लाया, और वह ख़ुशी और शादमानी के नारे लगाकर निकल आए।
44 उसने उन्हें दीगर अक़वाम के ममालिक दिए, और उन्होंने दीगर उम्मतों की मेहनत के फल पर क़ब्ज़ा किया।
45 क्योंकि वह चाहता था कि वह उसके अहकाम और हिदायात के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारें। रब की हम्द हो।
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