3 क्योंकि बेदीन अपनी दिली आरज़ुओं पर शेख़ी मारता है, और नाजायज़ नफ़ा कमानेवाला लानत करके रब को हक़ीर जानता है।
4 बेदीन ग़ुरूर से फूलकर कहता है, “अल्लाह मुझसे जवाबतलबी नहीं करेगा।” उसके तमाम ख़यालात इस बात पर मबनी हैं कि कोई ख़ुदा नहीं है।
5 जो कुछ भी करे उसमें वह कामयाब है। तेरी अदालतें उसे बुलंदियों में कहीं दूर लगती हैं जबकि वह अपने तमाम मुख़ालिफ़ों के ख़िलाफ़ फुँकारता है।
6 दिल में वह सोचता है, “मैं कभी नहीं डगमगाऊँगा, नसल-दर-नसल मुसीबत के पंजों से बचा रहूँगा।”
7 उसका मुँह लानतों, फ़रेब और ज़ुल्म से भरा रहता, उस की ज़बान नुक़सान और आफ़त पहुँचाने के लिए तैयार रहती है।
8 वह आबादियों के क़रीब ताक में बैठकर चुपके से बेगुनाहों को मार डालता है, उस की आँखें बदक़िस्मतों की घात में रहती हैं।
9 जंगल में बैठे शेरबबर की तरह ताक में रहकर वह मुसीबतज़दा पर हमला करने का मौक़ा ढूँडता है। जब उसे पकड़ ले तो उसे अपने जाल में घसीटकर ले जाता है।
10 उसके शिकार पाश पाश होकर झुक जाते हैं, बेचारे उस की ज़बरदस्त ताक़त की ज़द में आकर गिर जाते हैं।
11 तब वह दिल में कहता है, “अल्लाह भूल गया है, उसने अपना चेहरा छुपा लिया है, उसे यह कभी नज़र नहीं आएगा।”
13 बेदीन अल्लाह की तहक़ीर क्यों करे, वह दिल में क्यों कहे, “अल्लाह मुझसे जवाब तलब नहीं करेगा”?
14 ऐ अल्लाह, हक़ीक़त में तू यह सब कुछ देखता है। तू हमारी तकलीफ़ और परेशानी पर ध्यान देकर मुनासिब जवाब देगा। नाचार अपना मामला तुझ पर छोड़ देता है, क्योंकि तू यतीमों का मददगार है।
15 शरीर और बेदीन आदमी का बाज़ू तोड़ दे! उससे उस की शरारतों की जवाबतलबी कर ताकि उसका पूरा असर मिट जाए।
17 ऐ रब, तूने नाचारों की आरज़ू सुन ली है। तू उनके दिलों को मज़बूत करेगा और उन पर ध्यान देकर
18 यतीमों और मज़लूमों का इनसाफ़ करेगा ताकि आइंदा कोई भी इनसान मुल्क में दहशत न फैलाए।
<- ज़बूर 9ज़बूर 11 ->