2 “लाज़िम है कि इसराईली ईदे-फ़सह को मुक़र्ररा वक़्त पर मनाएँ, 3 यानी इस महीने के चौधवें दिन, सूरज के ग़ुरूब होने के ऐन बाद। उसे तमाम क़वायद के मुताबिक़ मनाना।” 4 चुनाँचे मूसा ने इसराईलियों से कहा कि वह ईदे-फ़सह मनाएँ, 5 और उन्होंने ऐसा ही किया। उन्होंने ईदे-फ़सह को पहले महीने के चौधवें दिन सूरज के ग़ुरूब होने के ऐन बाद मनाया। उन्होंने सब कुछ वैसा ही किया जैसा रब ने मूसा को हुक्म दिया था।
6 लेकिन कुछ आदमी नापाक थे, क्योंकि उन्होंने लाश छू ली थी। इस वजह से वह उस दिन ईदे-फ़सह न मना सके। वह मूसा और हारून के पास आकर 7 कहने लगे, “हमने लाश छू ली है, इसलिए नापाक हैं। लेकिन हमें इस सबब से ईदे-फ़सह को मनाने से क्यों रोका जाए? हम भी मुक़र्ररा वक़्त पर बाक़ी इसराईलियों के साथ रब की क़ुरबानी पेश करना चाहते हैं।” 8 मूसा ने जवाब दिया, “यहाँ मेरे इंतज़ार में खड़े रहो। मैं मालूम करता हूँ कि रब तुम्हारे बारे में क्या हुक्म देता है।”
9 रब ने मूसा से कहा, 10 “इसराईलियों को बता देना कि अगर तुम या तुम्हारी औलाद में से कोई ईदे-फ़सह के दौरान लाश छूने से नापाक हो या किसी दूर-दराज़ इलाक़े में सफ़र कर रहा हो, तो भी वह ईद मना सकता है। 11 ऐसा शख़्स उसे ऐन एक माह के बाद मनाकर लेले के साथ बेख़मीरी रोटी और कड़वा साग-पात खाए। 12 खाने में से कुछ भी अगली सुबह तक बाक़ी न रहे। जानवर की कोई भी हड्डी न तोड़ना। मनानेवाला ईदे-फ़सह के पूरे फ़रायज़ अदा करे। 13 लेकिन जो पाक होने और सफ़र न करने के बावुजूद भी ईदे-फ़सह को न मनाए उसे उस की क़ौम में से मिटाया जाए, क्योंकि उसने मुक़र्ररा वक़्त पर रब को क़ुरबानी पेश नहीं की। उस शख़्स को अपने गुनाह का नतीजा भुगतना पड़ेगा। 14 अगर कोई परदेसी तुम्हारे दरमियान रहते हुए रब के सामने ईदे-फ़सह मनाना चाहे तो उसे इजाज़त है। शर्त यह है कि वह पूरे फ़रायज़ अदा करे। परदेसी और देसी के लिए ईदे-फ़सह मनाने के फ़रायज़ एक जैसे हैं।”