4 ऐ हमारे ख़ुदा, हमारी सुन, क्योंकि लोग हमें हक़ीर जानते हैं। जिन बातों से उन्होंने हमें ज़लील किया है वह उनकी ज़िल्लत का बाइस बन जाएँ। बख़्श दे कि लोग उन्हें लूट लें और उन्हें क़ैद करके जिलावतन कर दें। 5 उनका क़ुसूर नज़रंदाज़ न कर बल्कि उनके गुनाह तुझे याद रहें। क्योंकि उन्होंने फ़सील को तामीर करनेवालों को ज़लील करने से तुझे तैश दिलाया है।
6 मुख़ालफ़त के बावुजूद हम फ़सील की मरम्मत करते रहे, और होते होते पूरी दीवार की आधी ऊँचाई खड़ी हुई, क्योंकि लोग पूरी लग्न से काम कर रहे थे।
10 उस वक़्त यहूदाह के लोग कराहने लगे, “मज़दूरों की ताक़त ख़त्म हो रही है, और अभी तक मलबे के बड़े ढेर बाक़ी हैं। फ़सील को बनाना हमारे बस की बात नहीं है।”
11 दूसरी तरफ़ दुश्मन कह रहे थे, “हम अचानक उन पर टूट पड़ेंगे। उनको उस वक़्त पता चलेगा जब हम उनके बीच में होंगे। तब हम उन्हें मार देंगे और काम रुक जाएगा।”
12 जो यहूदी उनके क़रीब रहते थे वह बार बार हमारे पास आकर हमें इत्तला देते रहे, “दुश्मन चारों तरफ़ से आप पर हमला करने के लिए तैयार खड़ा है।”
13 तब मैंने लोगों को फ़सील के पीछे एक जगह खड़ा कर दिया जहाँ दीवार सबसे नीची थी, और वह तलवारों, नेज़ों और कमानों से लैस अपने ख़ानदानों के मुताबिक़ खुले मैदान में खड़े हो गए। 14 लोगों का जायज़ा लेकर मैं खड़ा हुआ और कहने लगा, “उनसे मत डरें! रब को याद करें जो अज़ीम और महीब है। ज़हन में रखें कि हम अपने भाइयों, बेटों बेटियों, बीवियों और घरों के लिए लड़ रहे हैं।”
15 जब हमारे दुश्मनों को मालूम हुआ कि उनकी साज़िशों की ख़बर हम तक पहुँच गई है और कि अल्लाह ने उनके मनसूबे को नाकाम होने दिया तो हम सब अपनी अपनी जगह पर दुबारा तामीर के काम में लग गए। 16 लेकिन उस दिन से मेरे जवानों का सिर्फ़ आधा हिस्सा तामीरी काम में लगा रहा। बाक़ी लोग नेज़ों, ढालों, कमानों और ज़िरा-बकतर से लैस पहरा देते रहे। अफ़सर यहूदाह के उन तमाम लोगों के पीछे खड़े रहे 17 जो दीवार को तामीर कर रहे थे। सामान उठानेवाले एक हाथ से हथियार पकड़े काम करते थे। 18 और जो भी दीवार को खड़ा कर रहा था उस की तलवार कमर में बँधी रहती थी। जिस आदमी को तुरम बजाकर ख़तरे का एलान करना था वह हमेशा मेरे साथ रहा। 19 मैंने शुरफ़ा, बुज़ुर्गों और बाक़ी लोगों से कहा, “यह काम बहुत ही बड़ा और वसी है, इसलिए हम एक दूसरे से दूर और बिखरे हुए काम कर रहे हैं। 20 ज्योंही आपको तुरम की आवाज़ सुनाई दे तो भागकर आवाज़ की तरफ़ चले आएँ। हमारा ख़ुदा हमारे लिए लड़ेगा!”
21 हम पौ फटने से लेकर उस वक़्त तक काम में मसरूफ़ रहते जब तक सितारे नज़र न आते, और हर वक़्त आदमियों का आधा हिस्सा नेज़े पकड़े पहरा देता था। 22 उस वक़्त मैंने सबको यह हुक्म भी दिया, “हर आदमी अपने मददगारों के साथ रात का वक़्त यरूशलम में गुज़ारे। फिर आप रात के वक़्त पहरादारी में भी मदद करेंगे और दिन के वक़्त तामीरी काम में भी।” 23 उन तमाम दिनों के दौरान न मैं, न मेरे भाइयों, न मेरे जवानों और न मेरे पहरेदारों ने कभी अपने कपड़े उतारे। नीज़, हर एक अपना हथियार पकड़े रहा।
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