1 ईसा ने उन्हें यह भी बताया, “मैं तुमको सच बताता हूँ, यहाँ कुछ ऐसे लोग खड़े हैं जो मरने से पहले ही अल्लाह की बादशाही को क़ुदरत के साथ आते हुए देखेंगे।”
7 इस पर एक बादल आकर उन पर छा गया और बादल में से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा प्यारा फ़रज़ंद है। इसकी सुनो।” 8 अचानक मूसा और इलियास ग़ायब हो गए। शागिर्दों ने चारों तरफ़ देखा, लेकिन सिर्फ़ ईसा नज़र आया।
9 वह पहाड़ से उतरने लगे तो ईसा ने उन्हें हुक्म दिया, “जो कुछ तुमने देखा है उसे उस वक़्त तक किसी को न बताना जब तक कि इब्ने-आदम मुरदों में से जी न उठे।”
10 चुनाँचे उन्होंने यह बात अपने तक महदूद रखी। लेकिन वह कई बार आपस में बहस करने लगे कि मुरदों में से जी उठने से क्या मुराद हो सकती है। 11 फिर उन्होंने उससे पूछा, “शरीअत के उलमा क्यों कहते हैं कि मसीह की आमद से पहले इलियास का आना ज़रूरी है?”
12 ईसा ने जवाब दिया, “इलियास तो ज़रूर पहले सब कुछ बहाल करने के लिए आएगा। लेकिन कलामे-मुक़द्दस में इब्ने-आदम के बारे में यह क्यों लिखा है कि उसे बहुत दुख उठाना और हक़ीर समझा जाना है? 13 लेकिन मैं तुमको बताता हूँ, इलियास तो आ चुका है और उन्होंने उसके साथ जो चाहा किया। यह भी कलामे-मुक़द्दस के मुताबिक़ ही हुआ है।”
17 हुजूम में से एक आदमी ने जवाब दिया, “उस्ताद, मैं अपने बेटे को आपके पास लाया था। वह ऐसी बदरूह के क़ब्ज़े में है जो उसे बोलने नहीं देती। 18 और जब भी वह उस पर ग़ालिब आती है वह उसे ज़मीन पर पटक देती है। बेटे के मुँह से झाग निकलने लगता और वह दाँत पीसने लगता है। फिर उसका जिस्म अकड़ जाता है। मैंने आपके शागिर्दों से कहा तो था कि वह बदरूह को निकाल दें, लेकिन वह न निकाल सके।”
19 ईसा ने उनसे कहा, “ईमान से ख़ाली नसल! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ, कब तक तुम्हें बरदाश्त करूँ? लड़के को मेरे पास ले आओ।” 20 वह उसे ईसा के पास ले आए।
23 ईसा ने पूछा, “क्या मतलब, ‘अगर आप कुछ कर सकते हैं’? जो ईमान रखता है उसके लिए सब कुछ मुमकिन है।”
24 लड़के का बाप फ़ौरन चिल्ला उठा, “मैं ईमान रखता हूँ। मेरी बेएतक़ादी का इलाज करें।”
25 ईसा ने देखा कि बहुत-से लोग दौड़ दौड़कर देखने आ रहे हैं, इसलिए उसने नापाक रूह को डाँटा, “ऐ गूँगी और बहरी बदरूह, मैं तुझे हुक्म देता हूँ कि इसमें से निकल जा। कभी भी इसमें दुबारा दाख़िल न होना!”
26 इस पर बदरूह चीख़ उठी और लड़के को शिद्दत से झँझोड़कर निकल गई। लड़का लाश की तरह ज़मीन पर पड़ा रहा, इसलिए सबने कहा, “वह मर गया है।” 27 लेकिन ईसा ने उसका हाथ पकड़कर उठने में उस की मदद की और वह खड़ा हो गया।
28 बाद में जब ईसा किसी घर में जाकर अपने शागिर्दों के साथ अकेला था तो उन्होंने उससे पूछा, “हम बदरूह को क्यों न निकाल सके?”
29 उसने जवाब दिया, “इस क़िस्म की बदरूह सिर्फ़ दुआ से निकाली जा सकती है।”
32 लेकिन शागिर्द इसका मतलब न समझे और वह ईसा से इसके बारे में पूछने से डरते भी थे।
34 लेकिन वह ख़ामोश रहे, क्योंकि वह रास्ते में इस पर बहस कर रहे थे कि हममें से बड़ा कौन है? 35 ईसा बैठ गया और बारह शागिर्दों को बुलाकर कहा, “जो अव्वल होना चाहता है वह सबसे आख़िर में आए और सबका ख़ादिम हो।” 36 फिर उसने एक छोटे बच्चे को लेकर उनके दरमियान खड़ा किया। उसे गले लगाकर उसने उनसे कहा, 37 “जो मेरे नाम में इन बच्चों में से किसी को क़बूल करता है वह मुझे ही क़बूल करता है। और जो मुझे क़बूल करता है वह मुझे नहीं बल्कि उसे क़बूल करता है जिसने मुझे भेजा है।”
39 लेकिन ईसा ने कहा, “उसे मना न करना। जो भी मेरे नाम में मोजिज़ा करे वह अगले लमहे मेरे बारे में बुरी बातें नहीं कह सकेगा। 40 क्योंकि जो हमारे ख़िलाफ़ नहीं वह हमारे हक़ में है। 41 मैं तुमको सच बताता हूँ, जो भी तुम्हें इस वजह से पानी का गलास पिलाए कि तुम मसीह के पैरोकार हो उसे ज़रूर अज्र मिलेगा।
49 क्योंकि हर एक को आग से नमकीन किया जाएगा [और हर एक क़ुरबानी नमक से नमकीन की जाएगी]।
50 नमक अच्छी चीज़ है। लेकिन अगर उसका ज़ायक़ा जाता रहे तो उसे क्योंकर दुबारा नमकीन किया जा सकता है? अपने दरमियान नमक की खूबियाँ बरक़रार रखो और सुलह-सलामती से एक दूसरे के साथ ज़िंदगी गुज़ारो।”
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