6 लेकिन ईसा ने कहा, “इसे छोड़ दो, तुम इसे क्यों तंग कर रहे हो? इसने तो मेरे लिए एक नेक काम किया है। 7 ग़रीब तो हमेशा तुम्हारे पास रहेंगे, और तुम जब भी चाहो उनकी मदद कर सकोगे। लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा। 8 जो कुछ वह कर सकती थी उसने किया है। मुझ पर इत्र उंडेलने से वह मुक़र्ररा वक़्त से पहले मेरे बदन को दफ़नाने के लिए तैयार कर चुकी है। 9 मैं तुमको सच बताता हूँ कि तमाम दुनिया में जहाँ भी अल्लाह की ख़ुशख़बरी का एलान किया जाएगा वहाँ लोग इस ख़ातून को याद करके वह कुछ सुनाएँगे जो इसने किया है।”
13 चुनाँचे ईसा ने उनमें से दो को यह हिदायत देकर यरूशलम भेज दिया कि “जब तुम शहर में दाख़िल होगे तो तुम्हारी मुलाक़ात एक आदमी से होगी जो पानी का घड़ा उठाए चल रहा होगा। उसके पीछे हो लेना। 14 जिस घर में वह दाख़िल हो उसके मालिक से कहना, ‘उस्ताद आपसे पूछते हैं कि वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह का खाना खाऊँ?’ 15 वह तुम्हें दूसरी मनज़िल पर एक बड़ा और सजा हुआ कमरा दिखाएगा। वह तैयार होगा। हमारे लिए फ़सह का खाना वहीं तैयार करना।”
16 दोनों चले गए तो शहर में दाख़िल होकर सब कुछ वैसा ही पाया जैसा ईसा ने उन्हें बताया था। फिर उन्होंने फ़सह का खाना तैयार किया।
19 शागिर्द यह सुनकर ग़मगीन हुए। बारी बारी उन्होंने उससे पूछा, “मैं तो नहीं हूँ?”
20 ईसा ने जवाब दिया, “तुम बारह में से एक है। वह मेरे साथ अपनी रोटी सालन के बरतन में डाल रहा है। 21 इब्ने-आदम तो कूच कर जाएगा जिस तरह कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, लेकिन उस शख़्स पर अफ़सोस जिसके वसीले से उसे दुश्मन के हवाले कर दिया जाएगा। उसके लिए बेहतर यह होता कि वह कभी पैदा ही न होता।”
23 फिर उसने मै का प्याला लेकर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उसे उन्हें दे दिया। सबने उसमें से पी लिया। 24 उसने उनसे कहा, “यह मेरा ख़ून है, नए अहद का वह ख़ून जो बहुतों के लिए बहाया जाता है। 25 मैं तुमको सच बताता हूँ कि अब से मैं अंगूर का रस नहीं पियूँगा, क्योंकि अगली दफ़ा इसे नए सिरे से अल्लाह की बादशाही में ही पियूँगा।”
26 फिर वह एक ज़बूर गाकर निकले और ज़ैतून के पहाड़ के पास पहुँचे।
29 पतरस ने एतराज़ किया, “दूसरे बेशक सब बरगश्ता हो जाएँ, लेकिन मैं कभी नहीं हूँगा।”
30 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुझे सच बताता हूँ, इसी रात मुरग़ के दूसरी दफ़ा बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर चुका होगा।”
31 पतरस ने इसरार किया, “हरगिज़ नहीं! मैं आपको जानने से कभी इनकार नहीं करूँगा, चाहे मुझे आपके साथ मरना भी पड़े।”
35 कुछ आगे जाकर वह ज़मीन पर गिर गया और दुआ करने लगा कि अगर मुमकिन हो तो मुझे आनेवाली घड़ियों की तकलीफ़ से गुज़रना न पड़े। 36 उसने कहा, “ऐ अब्बा, ऐ बाप! तेरे लिए सब कुछ मुमकिन है। दुख का यह प्याला मुझसे हटा ले। लेकिन मेरी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।”
37 वह अपने शागिर्दों के पास वापस आया तो देखा कि वह सो रहे हैं। उसने पतरस से कहा, “शमौन, क्या तू सो रहा है? क्या तू एक घंटा भी नहीं जाग सका? 38 जागते और दुआ करते रहो ताकि तुम आज़माइश में न पड़ो। क्योंकि रूह तो तैयार है, लेकिन जिस्म कमज़ोर।”
39 एक बार फिर उसने जाकर वही दुआ की जो पहले की थी। 40 जब वापस आया तो दुबारा देखा कि वह सो रहे हैं, क्योंकि नींद की बदौलत उनकी आँखें बोझल थीं। वह नहीं जानते थे कि क्या जवाब दें।
41 जब ईसा तीसरी बार वापस आया तो उसने उनसे कहा, “तुम अभी तक सो और आराम कर रहे हो? बस काफ़ी है। वक़्त आ गया है। देखो, इब्ने-आदम को गुनाहगारों के हवाले किया जा रहा है। 42 उठो। आओ, चलें। देखो, मुझे दुश्मन के हवाले करनेवाला क़रीब आ चुका है।”
45 ज्योंही वह पहुँचे यहूदाह ईसा के पास गया और “उस्ताद!” कहकर उसे बोसा दिया। 46 इस पर उन्होंने उसे पकड़कर गिरिफ़्तार कर लिया। 47 लेकिन ईसा के पास खड़े एक शख़्स ने अपनी तलवार मियान से निकाली और इमामे-आज़म के ग़ुलाम को मारकर उसका कान उड़ा दिया। 48 ईसा ने उनसे पूछा, “क्या मैं डाकू हूँ कि तुम तलवारें और लाठियाँ लिए मुझे गिरिफ़्तार करने निकले हो? 49 मैं तो रोज़ाना बैतुल-मुक़द्दस में तुम्हारे पास था और तालीम देता रहा, मगर तुमने मुझे गिरिफ़्तार नहीं किया। लेकिन यह इसलिए हो रहा है ताकि कलामे-मुक़द्दस की बातें पूरी हो जाएँ।”
50 फिर सबके सब उसे छोड़कर भाग गए।
51 लेकिन एक नौजवान ईसा के पीछे पीछे चलता रहा जो सिर्फ़ चादर ओढ़े हुए था। लोगों ने उसे पकड़ने की कोशिश की, 52 लेकिन वह चादर छोड़कर नंगी हालत में भाग गया।
57 आख़िरकार बाज़ ने खड़े होकर यह झूटी गवाही दी, 58 “हमने इसे यह कहते सुना है कि मैं इनसान के हाथों के बने इस बैतुल-मुक़द्दस को ढाकर तीन दिन के अंदर अंदर नया मक़दिस तामीर कर दूँगा, एक ऐसा मक़दिस जो इनसान के हाथ नहीं बनाएँगे।” 59 लेकिन उनकी गवाहियाँ भी एक दूसरी से मुतज़ाद थीं।
60 फिर इमामे-आज़म ने हाज़िरीन के सामने खड़े होकर ईसा से पूछा, “क्या तू कोई जवाब नहीं देगा? यह क्या गवाहियाँ हैं जो यह लोग तेरे ख़िलाफ़ दे रहे हैं?”
61 लेकिन ईसा ख़ामोश रहा। उसने कोई जवाब न दिया। इमामे-आज़म ने उससे एक और सवाल किया, “क्या तू अल-हमीद का फ़रज़ंद मसीह है?”
62 ईसा ने कहा, “जी, मैं हूँ। और आइंदा तुम इब्ने-आदम को क़ादिरे-मुतलक़ के दहने हाथ बैठे और आसमान के बादलों पर आते हुए देखोगे।”
63 इमामे-आज़म ने रंजिश का इज़हार करके अपने कपड़े फाड़ लिए और कहा, “हमें मज़ीद गवाहों की क्या ज़रूरत रही! 64 आपने ख़ुद सुन लिया है कि इसने कुफ़र बका है। आपका क्या फ़ैसला है?”
65 फिर कुछ उस पर थूकने लगे। उन्होंने उस की आँखों पर पट्टी बाँधी और उसे मुक्के मार मारकर कहने लगे, “नबुव्वत कर!” मुलाज़िमों ने भी उसे थप्पड़ मारे।
68 लेकिन उसने इनकार किया, “मैं नहीं जानता या समझता कि तू क्या बात कर रही है।” यह कहकर वह गेट के क़रीब चला गया। [उसी लमहे मुरग़ ने बाँग दी।]
69 जब नौकरानी ने उसे वहाँ देखा तो उसने दुबारा पास खड़े लोगों से कहा, “यह बंदा उनमें से है।” 70 दुबारा पतरस ने इनकार किया।
71 इस पर पतरस ने क़सम खाकर कहा, “मुझ पर लानत अगर मैं झूट बोल रहा हूँ। मैं उस आदमी को नहीं जानता जिसका ज़िक्र तुम कर रहे हो।”
72 फ़ौरन मुरग़ की बाँग दूसरी मरतबा सुनाई दी। फिर पतरस को वह बात याद आई जो ईसा ने उससे कही थी, “मुरग़ के दूसरी दफ़ा बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर चुका होगा।” इस पर वह रो पड़ा।
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