मरक़ुस
3 रेगिस्तान में एक आवाज़ पुकार रही है,
4 यह पैग़ंबर यहया बपतिस्मा देनेवाला था। रेगिस्तान में रहकर उसने एलान किया कि लोग तौबा करके बपतिस्मा लें ताकि उन्हें अपने गुनाहों की मुआफ़ी मिल जाए। 5 यहूदिया के पूरे इलाक़े के लोग यरूशलम के तमाम बाशिंदों समेत निकलकर उसके पास आए। और अपने गुनाहों को तसलीम करके उन्होंने दरियाए-यरदन में यहया से बपतिस्मा लिया।
6 यहया ऊँटों के बालों का लिबास पहने और कमर पर चमड़े का पटका बाँधे रहता था। ख़ुराक के तौर पर वह टिड्डियाँ और जंगली शहद खाता था। 7 उसने एलान किया, “मेरे बाद एक आनेवाला है जो मुझसे बड़ा है। मैं झुककर उसके जूतों के तसमे खोलने के भी लायक़ नहीं। 8 मैं तुमको पानी से बपतिस्मा देता हूँ, लेकिन वह तुम्हें रूहुल-क़ुद्स से बपतिस्मा देगा।”
12 इसके फ़ौरन बाद रूहुल-क़ुद्स ने उसे रेगिस्तान में भेज दिया। 13 वहाँ वह चालीस दिन रहा जिसके दौरान इबलीस उस की आज़माइश करता रहा। वह जंगली जानवरों के दरमियान रहता और फ़रिश्ते उस की ख़िदमत करते थे।
16 एक दिन जब ईसा गलील की झील के किनारे किनारे चल रहा था तो उसने शमौन और उसके भाई अंदरियास को देखा। वह झील में जाल डाल रहे थे क्योंकि वह माहीगीर थे। 17 उसने कहा, “आओ, मेरे पीछे हो लो, मैं तुमको आदमगीर बनाऊँगा।” 18 यह सुनते ही वह अपने जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
19 थोड़ा-सा आगे जाकर ईसा ने ज़बदी के बेटों याक़ूब और यूहन्ना को देखा। वह कश्ती में बैठे अपने जालों की मरम्मत कर रहे थे। 20 उसने उन्हें फ़ौरन बुलाया तो वह अपने बाप को मज़दूरों समेत कश्ती में छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
23 उनके इबादतख़ाने में एक आदमी था जो किसी नापाक रूह के क़ब्ज़े में था। ईसा को देखते ही वह चीख़ चीख़कर बोलने लगा, 24 “ऐ नासरत के ईसा, हमारा आपके साथ क्या वास्ता है? क्या आप हमें हलाक करने आए हैं? मैं तो जानता हूँ कि आप कौन हैं, आप अल्लाह के क़ुद्दूस हैं।”
25 ईसा ने उसे डाँटकर कहा, “ख़ामोश! आदमी से निकल जा!” 26 इस पर बदरूह आदमी को झँझोड़कर और चीख़ें मार मारकर उसमें से निकल गई।
27 तमाम लोग घबरा गए और एक दूसरे से कहने लगे, “यह क्या है? एक नई तालीम जो इख़्तियार के साथ दी जा रही है। और वह बदरूहों को हुक्म देता है तो वह उस की मानती हैं।”
28 और ईसा के बारे में चर्चा जल्दी से गलील के पूरे इलाक़े में फैल गया।
32 जब शाम हुई और सूरज ग़ुरूब हुआ तो लोग तमाम मरीज़ों और बदरूह-गिरिफ़्ता अशख़ास को ईसा के पास लाए। 33 पूरा शहर दरवाज़े पर जमा हो गया 34 और ईसा ने बहुत-से मरीज़ों को मुख़्तलिफ़ क़िस्म की बीमारियों से शफ़ा दी। उसने बहुत-सी बदरूहें भी निकाल दीं, लेकिन उसने उन्हें बोलने न दिया, क्योंकि वह जानती थीं कि वह कौन है।
38 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “आओ, हम साथवाली आबादियों में जाएँ ताकि मैं वहाँ भी मुनादी करूँ। क्योंकि मैं इसी मक़सद से निकल आया हूँ।”
39 चुनाँचे वह पूरे गलील में से गुज़रता हुआ इबादतख़ानों में मुनादी करता और बदरूहों को निकालता रहा।
41 ईसा को तरस आया। उसने अपना हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ, पाक-साफ़ हो जा।” 42 इस पर बीमारी फ़ौरन दूर हो गई और वह पाक-साफ़ हो गया। 43 ईसा ने उसे फ़ौरन रुख़सत करके सख़्ती से समझाया, 44 “ख़बरदार! यह बात किसी को न बताना बल्कि बैतुल-मुक़द्दस में इमाम के पास जा ताकि वह तेरा मुआयना करे। अपने साथ वह क़ुरबानी ले जा जिसका तक़ाज़ा मूसा की शरीअत उनसे करती है जिन्हें कोढ़ से शफ़ा मिली हो। यों अलानिया तसदीक़ हो जाएगी कि तू वाक़ई पाक-साफ़ हो गया है।”
45 आदमी चला गया, लेकिन वह हर जगह अपनी कहानी सुनाने लगा। उसने यह ख़बर इतनी फैलाई कि ईसा खुले तौर पर किसी भी शहर में दाख़िल न हो सका बल्कि उसे वीरान जगहों में रहना पड़ा। लेकिन वहाँ भी लोग हर जगह से उसके पास पहुँच गए।
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