8 तेरे अपने हाथों ने मुझे तश्कील देकर बनाया। और अब तूने मुड़कर मुझे तबाह कर दिया है। 9 ज़रा इसका ख़याल रख कि तूने मुझे मिट्टी से बनाया। अब तू मुझे दुबारा ख़ाक में तबदील कर रहा है। 10 तूने ख़ुद मुझे दूध की तरह उंडेलकर पनीर की तरह जमने दिया। 11 तू ही ने मुझे जिल्द और गोश्त-पोस्त से मुलब्बस किया, हड्डियों और नसों से तैयार किया। 12 तू ही ने मुझे ज़िंदगी और अपनी मेहरबानी से नवाज़ा, और तेरी देख-भाल ने मेरी रूह को महफ़ूज़ रखा।
13 लेकिन एक बात तूने अपने दिल में छुपाए रखी, हाँ मुझे तेरा इरादा मालूम हो गया है। 14 वह यह है कि ‘अगर अय्यूब गुनाह करे तो मैं उस की पहरादारी करूँगा। मैं उसे उसके क़ुसूर से बरी नहीं करूँगा।’
15 अगर मैं क़ुसूरवार हूँ तो मुझ पर अफ़सोस! और अगर मैं बेगुनाह भी हूँ ताहम मैं अपना सर उठाने की जुर्रत नहीं करता, क्योंकि मैं शर्म खा खाकर सेर हो गया हूँ। मुझे ख़ूब मुसीबत पिलाई गई है। 16 और अगर मैं खड़ा भी हो जाऊँ तो तू शेरबबर की तरह मेरा शिकार करता और मुझ पर दुबारा अपनी मोजिज़ाना क़ुदरत का इज़हार करता है। 17 तू मेरे ख़िलाफ़ नए गवाहों को खड़ा करता और मुझ पर अपने ग़ज़ब में इज़ाफ़ा करता है, तेरे लशकर सफ़-दर-सफ़ मुझ पर हमला करते हैं। 18 तू मुझे मेरी माँ के पेट से क्यों निकाल लाया? बेहतर होता कि मैं उसी वक़्त मर जाता और किसी को नज़र न आता। 19 यों होता जैसा मैं कभी ज़िंदा ही न था, मुझे सीधा माँ के पेट से क़ब्र में पहुँचाया जाता। 20 क्या मेरे दिन थोड़े नहीं हैं? मुझे तनहा छोड़! मुझसे अपना मुँह फेर ले ताकि मैं चंद एक लमहों के लिए ख़ुश हो सकूँ, 21 क्योंकि जल्द ही मुझे कूच करके वहाँ जाना है जहाँ से कोई वापस नहीं आता, उस मुल्क में जिसमें तारीकी और घने साये रहते हैं। 22 वह मुल्क अंधेरा ही अंधेरा और काला ही काला है, उसमें घने साये और बेतरतीबी है। वहाँ रौशनी भी अंधेरा ही है।”
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