5 मैं ही अंगूर की बेल हूँ, और तुम उस की शाख़ें हो। जो मुझमें क़ायम रहता है और मैं उसमें वह बहुत-सा फल लाता है, क्योंकि मुझसे अलग होकर तुम कुछ नहीं कर सकते। 6 जो मुझमें क़ायम नहीं रहता और न मैं उसमें उसे बेफ़ायदा शाख़ की तरह बाहर फेंक दिया जाता है। ऐसी शाख़ें सूख जाती हैं और लोग उनका ढेर लगाकर उन्हें आग में झोंक देते हैं जहाँ वह जल जाती हैं। 7 अगर तुम मुझमें क़ायम रहो और मैं तुममें तो जो जी चाहे माँगो, वह तुमको दिया जाएगा। 8 जब तुम बहुत-सा फल लाते और यों मेरे शागिर्द साबित होते हो तो इससे मेरे बाप को जलाल मिलता है। 9 जिस तरह बाप ने मुझसे मुहब्बत रखी है उसी तरह मैंने तुमसे भी मुहब्बत रखी है। अब मेरी मुहब्बत में क़ायम रहो। 10 जब तुम मेरे अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते हो तो तुम मेरी मुहब्बत में क़ायम रहते हो। मैं भी इसी तरह अपने बाप के अहकाम के मुताबिक़ चलता हूँ और यों उस की मुहब्बत में क़ायम रहता हूँ।
11 मैंने तुमको यह इसलिए बताया है ताकि मेरी ख़ुशी तुममें हो बल्कि तुम्हारा दिल ख़ुशी से भरकर छलक उठे। 12 मेरा हुक्म यह है कि एक दूसरे को वैसे प्यार करो जैसे मैंने तुमको प्यार किया है। 13 इससे बड़ी मुहब्बत है नहीं कि कोई अपने दोस्तों के लिए अपनी जान दे दे। 14 तुम मेरे दोस्त हो अगर तुम वह कुछ करो जो मैं तुमको बताता हूँ। 15 अब से मैं नहीं कहता कि तुम ग़ुलाम हो, क्योंकि ग़ुलाम नहीं जानता कि उसका मालिक क्या करता है। इसके बजाए मैंने कहा है कि तुम दोस्त हो, क्योंकि मैंने तुमको सब कुछ बताया है जो मैंने अपने बाप से सुना है। 16 तुमने मुझे नहीं चुना बल्कि मैंने तुमको चुन लिया है। मैंने तुमको मुक़र्रर किया कि जाकर फल लाओ, ऐसा फल जो क़ायम रहे। फिर बाप तुमको वह कुछ देगा जो तुम मेरे नाम में माँगोगे। 17 मेरा हुक्म यही है कि एक दूसरे से मुहब्बत रखो।
26 जब वह मददगार आएगा जिसे मैं बाप की तरफ़ से तुम्हारे पास भेजूँगा तो वह मेरे बारे में गवाही देगा। वह सच्चाई का रूह है जो बाप में से निकलता है। 27 तुमको भी मेरे बारे में गवाही देना है, क्योंकि तुम इब्तिदा से मेरे साथ रहे हो।
<- यूहन्ना 14यूहन्ना 16 ->