4 तब मज़कूरा अफ़सरों ने बादशाह से कहा, “इस आदमी को सज़ाए-मौत दीनी चाहिए, क्योंकि यह शहर में बचे हुए फ़ौजियों और बाक़ी तमाम लोगों को ऐसी बातें बता रहा है जिनसे वह हिम्मत हार गए हैं। यह आदमी क़ौम की बहबूदी नहीं चाहता बल्कि उसे मुसीबत में डालने पर तुला रहता है।”
5 सिदक़ियाह बादशाह ने जवाब दिया, “ठीक है, वह आपके हाथ में है। मैं आपको रोक नहीं सकता।” 6 तब उन्होंने यरमियाह को पकड़कर मलकियाह शाहज़ादा के हौज़ में डाल दिया। यह हौज़ शाही मुहाफ़िज़ों के सहन में था। रस्सों के ज़रीए उन्होंने यरमियाह को उतार दिया। हौज़ में पानी नहीं था बल्कि सिर्फ़ कीचड़, और यरमियाह कीचड़ में धँस गया।
7 लेकिन एथोपिया के एक दरबारी बनाम अबद-मलिक को पता चला कि यरमियाह के साथ क्या कुछ किया जा रहा है। जब बादशाह शहर के दरवाज़े बनाम बिनयमीन में कचहरी लगाए बैठा था 8 तो अबद-मलिक शाही महल से निकलकर उसके पास गया और कहा, 9 “मेरे आक़ा और बादशाह, जो सुलूक इन आदमियों ने यरमियाह के साथ किया है वह निहायत बुरा है। उन्होंने उसे एक हौज़ में फेंक दिया है जहाँ वह भूका मरने को है। क्योंकि शहर में रोटी ख़त्म हो गई है।”
10 यह सुनकर बादशाह ने अबद-मलिक को हुक्म दिया, “इससे पहले कि यरमियाह मर जाए यहाँ से 30 आदमियों को लेकर नबी को हौज़ से निकाल दें।” 11 अबद-मलिक आदमियों को अपने साथ लेकर शाही महल के गोदाम के नीचे के एक कमरे में गया। वहाँ से उसने कुछ पुराने चीथड़े और घिसे-फटे कपड़े चुनकर उन्हें रस्सों के ज़रीए हौज़ में यरमियाह तक उतार दिया। 12 अबद-मलिक बोला, “रस्से बाँधने से पहले यह पुराने चीथड़े और घिसे-फटे कपड़े बग़ल में रखें।” यरमियाह ने ऐसा ही किया, 13 तो वह उसे रस्सों से खींचकर हौज़ से निकाल लाए। इसके बाद यरमियाह शाही मुहाफ़िज़ों के सहन में रहा।
17 तब यरमियाह बोला, “रब जो लशकरों का और इसराईल का ख़ुदा है फ़रमाता है, ‘अपने आपको शाहे-बाबल के अफ़सरान के हवाले कर। फिर तेरी जान छूट जाएगी और यह शहर नज़रे-आतिश नहीं हो जाएगा। तू और तेरा ख़ानदान जीता रहेगा। 18 दूसरी सूरत में इस शहर को बाबल के हवाले किया जाएगा और फ़ौजी इसे नज़रे-आतिश करेंगे। तू भी उनके हाथ से नहीं बचेगा’।”
19 लेकिन सिदक़ियाह बादशाह ने एतराज़ किया, “मुझे उन हमवतनों से डर लगता है जो ग़द्दारी करके बाबल की फ़ौज के पास भाग गए हैं। हो सकता है कि बाबल के फ़ौजी मुझे उनके हवाले करें और वह मेरे साथ बदसुलूकी करें।” 20 यरमियाह ने जवाब दिया, “वह आपको उनके हवाले नहीं करेंगे। रब की सुनकर वह कुछ करें जो मैंने आपको बताया है। फिर आपकी सलामती होगी और आपकी जान छूट जाएगी। 21 लेकिन अगर आप शहर से निकलकर हथियार डालने के लिए तैयार नहीं हैं तो फिर यह पैग़ाम सुनें जो रब ने मुझ पर ज़ाहिर किया है! 22 शाही महल में जितनी ख़वातीन बच गई हैं उन सबको शाहे-बाबल के अफ़सरों के पास पहुँचाया जाएगा। तब यह ख़वातीन आपके बारे में कहेंगी, ‘हाय, जिन आदमियों पर तू पूरा एतमाद रखता था वह फ़रेब देकर तुझ पर ग़ालिब आ गए हैं। तेरे पाँव दलदल में धँस गए हैं, लेकिन यह लोग ग़ायब हो गए हैं।’ 23 हाँ, तेरे तमाम बाल-बच्चों को बाहर बाबल की फ़ौज के पास लाया जाएगा। तू ख़ुद भी उनके हाथ से नहीं बचेगा बल्कि शाहे-बाबल तुझे पकड़ लेगा। यह शहर नज़रे-आतिश हो जाएगा।”
24 फिर सिदक़ियाह ने यरमियाह से कहा, “ख़बरदार! किसी को भी यह मालूम न हो कि हमने क्या क्या बातें की हैं, वरना आप मर जाएंगे। 25 जब मेरे अफ़सरों को पता चले कि मेरी आपसे गुफ़्तगू हुई है तो वह आपके पास आकर पूछेंगे, ‘तुमने बादशाह से क्या बात की, और बादशाह ने तुमसे क्या कहा? हमें साफ़ जवाब दो और झूट न बोलो, वरना हम तुम्हें मार डालेंगे।’ 26 जब वह इस तरह की बातें करेंगे तो उन्हें सिर्फ़ इतना-सा बताएँ, ‘मैं बादशाह से मिन्नत कर रहा था कि वह मुझे यूनतन के घर में वापस न भेजें, वरना मैं मर जाऊँगा’।”
27 ऐसा ही हुआ। तमाम सरकारी अफ़सर यरमियाह के पास आए और उससे सवाल करने लगे। लेकिन उसने उन्हें सिर्फ़ वह कुछ बताया जो बादशाह ने उसे कहने को कहा था। तब वह ख़ामोश हो गए, क्योंकि किसी ने भी उस की बादशाह से गुफ़्तगू नहीं सुनी थी।
28 इसके बाद यरमियाह यरूशलम की शिकस्त तक शाही मुहाफ़िज़ों के सहन में क़ैदी रहा।
<- यरमियाह 37यरमियाह 39 ->- a लफ़्ज़ी तरजुमा : वह ग़नीमत के तौर पर अपनी जान को बचाएगा।