5 रब फ़रमाता है, “ऐसे घर में मत जाना जिसमें कोई फ़ौत हो गया है। [a] उसमें न मातम करने के लिए, न अफ़सोस करने के लिए दाख़िल होना। क्योंकि अब से मैं इस क़ौम पर अपनी सलामती, मेहरबानी और रहम का इज़हार नहीं करूँगा।” यह रब का फ़रमान है। 6 “इस मुल्क के बाशिंदे मर जाएंगे, ख़ाह बड़े हों या छोटे। और न कोई उन्हें दफ़नाएगा, न मातम करेगा। कोई नहीं होगा जो ग़म के मारे अपनी जिल्द को काटे या अपने सर को मुँडवाए। 7 किसी का बाप या माँ भी इंतक़ाल कर जाए तो भी लोग मातम करनेवाले घर में नहीं जाएंगे, न तसल्ली देने के लिए जनाज़े के खाने-पीने में शरीक होंगे। 8 ऐसे घर में भी दाख़िल न होना जहाँ लोग ज़ियाफ़त कर रहे हैं। उनके साथ खाने-पीने के लिए मत बैठना।” 9 क्योंकि रब्बुल-अफ़वाज जो इसराईल का ख़ुदा है फ़रमाता है, “तुम्हारे जीते-जी, हाँ तुम्हारे देखते देखते मैं यहाँ ख़ुशीओ-शादमानी की आवाज़ें बंद कर दूँगा। अब से दूल्हा दुलहन की आवाज़ें ख़ामोश हो जाएँगी।
10 जब तू इस क़ौम को यह सब कुछ बताएगा तो लोग पूछेंगे, ‘रब इतनी बड़ी आफ़त हम पर लाने पर क्यों तुला हुआ है? हमसे क्या जुर्म हुआ है? हमने रब अपने ख़ुदा का क्या गुनाह किया है?’ 11 उन्हें जवाब दे, ‘वजह यह है कि तुम्हारे बापदादा ने मुझे तर्क कर दिया। वह मेरी शरीअत के ताबे न रहे बल्कि मुझे छोड़कर अजनबी माबूदों के पीछे लग गए और उन्हीं की ख़िदमत और पूजा करने लगे। 12 लेकिन तुम अपने बापदादा की निसबत कहीं ज़्यादा ग़लत काम करते हो। देखो, मेरी कोई नहीं सुनता बल्कि हर एक अपने शरीर दिल की ज़िद के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारता है। 13 इसलिए मैं तुम्हें इस मुल्क से निकालकर एक ऐसे मुल्क में फेंक दूँगा जिससे न तुम और न तुम्हारे बापदादा वाक़िफ़ थे। वहाँ तुम दिन-रात अजनबी माबूदों की ख़िदमत करोगे, क्योंकि उस वक़्त मैं तुम पर रहम नहीं करूँगा’।”
21 रब फ़रमाता है, “चुनाँचे इस बार मैं उन्हें सहीह पहचान अता करूँगा। वह मेरी क़ुव्वत और ताक़त को पहचान लेंगे, और वह जान लेंगे कि मेरा नाम रब है।
<- यरमियाह 15यरमियाह 17 ->- a लफ़्ज़ी तरजुमा : जिसमें जनाज़े का खाना खिलाया जा रहा है।