8 तब रब का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, 9 “जिस तरह यह कपड़ा ज़मीन में दबकर गल-सड़ गया उसी तरह मैं यहूदाह और यरूशलम का बड़ा घमंड ख़ाक में मिला दूँगा। 10 यह ख़राब लोग मेरी बातें सुनने के लिए तैयार नहीं बल्कि अपने शरीर दिल की ज़िद के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते हैं। अजनबी माबूदों के पीछे लगकर यह उन्हीं की ख़िदमत और पूजा करते हैं। लेकिन इनका अंजाम लँगोटी की मानिंद ही होगा। यह बेकार हो जाएंगे। 11 क्योंकि जिस तरह लँगोटी आदमी की कमर के साथ लिपटी रहती है उसी तरह मैंने पूरे इसराईल और पूरे यहूदाह को अपने साथ लिपटने का मौक़ा फ़राहम किया ताकि वह मेरी क़ौम और मेरी शोहरत, तारीफ़ और इज़्ज़त का बाइस बन जाएँ। लेकिन अफ़सोस, वह सुनने के लिए तैयार नहीं थे।” यह रब का फ़रमान है।
18 बादशाह और उस की माँ को इत्तला दे, “अपने तख़्तों से उतरकर ज़मीन पर बैठ जाओ, क्योंकि तुम्हारी शान का ताज तुम्हारे सरों से गिर गया है।” 19 दश्ते-नजब के शहर बंद किए जाएंगे, और उन्हें खोलनेवाला कोई नहीं होगा। पूरे यहूदाह को जिलावतन कर दिया जाएगा, एक भी नहीं बचेगा।
20 ऐ यरूशलम, अपनी नज़र उठाकर उन्हें देख जो शिमाल से आ रहे हैं। अब वह रेवड़ कहाँ रहा जो तेरे सुपुर्द किया गया, तेरी शानदार भेड़-बकरियाँ किधर हैं? 21 तू उस दिन क्या कहेगी जब रब उन्हें तुझ पर मुक़र्रर करेगा जिन्हें तूने अपने क़रीबी दोस्त बनाया था? जन्म देनेवाली औरत का-सा दर्द तुझ पर ग़ालिब आएगा। 22 और अगर तेरे दिल में सवाल उभर आए कि मेरे साथ यह क्यों हो रहा है तो सुन! यह तेरे संगीन गुनाहों की वजह से हो रहा है। इन्हीं की वजह से तेरे कपड़े उतारे गए हैं और तेरी इसमतदरी हुई है।
23 क्या काला आदमी अपनी जिल्द का रंग या चीता अपनी खाल के धब्बे बदल सकता है? हरगिज़ नहीं! तुम भी बदल नहीं सकते। तुम ग़लत काम के इतने आदी हो गए हो कि सहीह काम कर ही नहीं सकते।
24 “जिस तरह भूसा रेगिस्तान की तेज़ हवा में उड़कर तित्तर-बित्तर हो जाता है उसी तरह मैं तेरे बाशिंदों को मुंतशिर कर दूँगा।” 25 रब फ़रमाता है, “यही तेरा अंजाम होगा, मैंने ख़ुद मुक़र्रर किया है कि तुझे यह अज्र मिलना है। क्योंकि तूने मुझे भूलकर झूट पर भरोसा रखा है। 26 मैं ख़ुद तेरे कपड़े उतारूँगा ताकि तेरी बरहनगी सबको नज़र आए। 27 मैंने पहाड़ी और मैदानी इलाक़ों में तेरी घिनौनी हरकतों पर ख़ूब ध्यान दिया है। तेरी ज़िनाकारी, तेरा मस्ताना हिनहिनाना, तेरी बेशर्म इसमतफ़रोशी, सब कुछ मुझे नज़र आता है। ऐ यरूशलम, तुझ पर अफ़सोस! तू पाक-साफ़ हो जाने के लिए तैयार नहीं। मज़ीद कितनी देर लगेगी?”
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