8 वह आगे निकलकर फ़नुएल शहर पहुँच गया। वहाँ भी उसने रोटी माँगी, लेकिन फ़नुएल के बाशिंदों ने सुक्कात का-सा जवाब दिया। 9 यह सुनकर उसने कहा, “जब मैं सलामती से वापस आऊँगा तो तुम्हारा यह बुर्ज गिरा दूँगा!”
13 इसके बाद जिदौन लौटा। वह अभी हरिस के दर्रा से उतर रहा था 14 कि सुक्कात के एक जवान आदमी से मिला। जिदौन ने उसे पकड़कर मजबूर किया कि वह शहर के राहनुमाओं और बुज़ुर्गों की फ़हरिस्त लिखकर दे। 77 बुज़ुर्ग थे। 15 जिदौन उनके पास गया और कहा, “देखो, यह हैं ज़िबह और ज़लमुन्ना! तुमने इन्हीं की वजह से मेरा मज़ाक़ उड़ाकर कहा था कि हम आपके थकेहारे फ़ौजियों को रोटी क्यों दें? क्या आप ज़िबह और ज़लमुन्ना को पकड़ चुके हैं कि हम ऐसा करें?” 16 फिर जिदौन ने शहर के बुज़ुर्गों को गिरिफ़्तार करके उन्हें काँटेदार झाड़ियों और ऊँटकटारों से गाहकर सबक़ सिखाया। 17 फिर वह फ़नुएल गया और वहाँ का बुर्ज गिराकर शहर के मर्दों को मार डाला।
18 इसके बाद जिदौन ज़िबह और ज़लमुन्ना से मुख़ातिब हुआ। उसने पूछा, “उन आदमियों का हुलिया कैसा था जिन्हें तुमने तबूर पहाड़ पर क़त्ल किया?”
19 जिदौन बोला, “वह मेरे सगे भाई थे। रब की हयात की क़सम, अगर तुम उनको ज़िंदा छोड़ते तो मैं तुम्हें हलाक न करता।”
20 फिर वह अपने पहलौठे यतर से मुख़ातिब होकर बोला, “इनको मार डालो!” लेकिन यतर अपनी तलवार मियान से निकालने से झिजका, क्योंकि वह अभी बच्चा था और डरता था। 21 तब ज़िबह और ज़लमुन्ना ने कहा, “आप ही हमें मार दें! क्योंकि जैसा आदमी वैसी उस की ताक़त!” जिदौन ने खड़े होकर उन्हें तलवार से मार डाला और उनके ऊँटों की गरदनों पर लगे तावीज़ उतारकर अपने पास रखे।
23 लेकिन जिदौन ने जवाब दिया, “न मैं आप पर हुकूमत करूँगा, न मेरा बेटा। रब ही आप पर हुकूमत करेगा। 24 मेरी सिर्फ़ एक गुज़ारिश है। हर एक मुझे अपने लूटे हुए माल में से एक एक बाली दे दे।” बात यह थी कि दुश्मन के तमाम अफ़राद ने सोने की बालियाँ पहन रखी थीं, क्योंकि वह इसमाईली थे।
25 इसराईलियों ने कहा, “हम ख़ुशी से बाली देंगे।” एक चादर ज़मीन पर बिछाकर हर एक ने एक एक बाली उस पर फेंक दी। 26 सोने की इन बालियों का वज़न तक़रीबन 20 किलोग्राम था। इसके अलावा इसराईलियों ने मुख़्तलिफ़ तावीज़, कान के आवेज़े, अरग़वानी रंग के शाही लिबास और ऊँटों की गरदनों में लगी क़ीमती ज़ंजीरें भी दे दीं।
27 इस सोने से जिदौन ने एक अफ़ोद [a] बनाकर उसे अपने आबाई शहर उफ़रा में खड़ा किया जहाँ वह उसके और तमाम ख़ानदान के लिए फंदा बन गया। न सिर्फ़ यह बल्कि पूरा इसराईल ज़िना करके बुत की पूजा करने लगा।
28 उस वक़्त मिदियान ने ऐसी शिकस्त खाई कि बाद में इसराईल के लिए ख़तरे का बाइस न रहा। और जितनी देर जिदौन ज़िंदा रहा यानी 40 साल तक मुल्क में अमनो-अमान क़ायम रहा।
29 जंग के बाद जिदौन बिन युआस दुबारा उफ़रा में रहने लगा। 30 उस की बहुत-सी बीवियाँ और 70 बेटे थे। 31 उस की एक दाश्ता भी थी जो सिकम शहर में रिहाइशपज़ीर थी और जिसके एक बेटा पैदा हुआ। जिदौन ने बेटे का नाम अबीमलिक रखा। 32 जिदौन उम्ररसीदा था जब फ़ौत हुआ। उसे अबियज़रियों के शहर उफ़रा में उसके बाप युआस की क़ब्र में दफ़नाया गया।
33 जिदौन के मरते ही इसराईली दुबारा ज़िना करके बाल के बुतों की पूजा करने लगे। वह बाल-बरीत को अपना ख़ास देवता बनाकर 34 रब अपने ख़ुदा को भूल गए जिसने उन्हें इर्दगिर्द के दुश्मनों से बचा लिया था। 35 उन्होंने यरुब्बाल यानी जिदौन के ख़ानदान को भी उस एहसान के लिए कोई मेहरबानी न दिखाई जो जिदौन ने उन पर किया था।
<- क़ुज़ात 7क़ुज़ात 9 ->- a आम तौर पर इबरानी में अफ़ोद का मतलब इमामे-आज़म का बालापोश था (देखिए ख़ुरूज 28:4), लेकिन यहाँ इससे मुराद बुतपरस्ती की कोई चीज़ है।