5 मेरे अज़ीज़ भाइयो, सुनें! क्या अल्लाह ने उन्हें नहीं चुना जो दुनिया की नज़र में ग़रीब हैं ताकि वह ईमान में दौलतमंद हो जाएँ? यही लोग वह बादशाही मीरास में पाएँगे जिसका वादा अल्लाह ने उनसे किया है जो उसे प्यार करते हैं। 6 लेकिन आपने ज़रूरतमंदों की बेइज़्ज़ती की है। ज़रा सोच लें, वह कौन हैं जो आपको दबाते और अदालत में घसीटकर ले जाते हैं? क्या यह दौलतमंद ही नहीं हैं? 7 वही तो ईसा पर कुफ़र बकते हैं, उस अज़ीम नाम पर जिसके पैरोकार आप बन गए हैं।
8 अल्लाह चाहता है कि आप कलामे-मुक़द्दस में मज़कूर शाही शरीअत पूरी करें, “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।” 9 चुनाँचे जब आप जानिबदारी दिखाते हैं तो गुनाह करते हैं और शरीअत आपको मुजरिम ठहराती है। 10 मत भूलना कि जिसने शरीअत का सिर्फ़ एक हुक्म तोड़ा है वह पूरी शरीअत का क़ुसूरवार ठहरता है। 11 क्योंकि जिसने फ़रमाया, “ज़िना न करना” उसने यह भी कहा, “क़त्ल न करना।” हो सकता है कि आपने ज़िना तो न किया हो, लेकिन किसी को क़त्ल किया हो। तो भी आप उस एक जुर्म की वजह से पूरी शरीअत तोड़ने के मुजरिम बन गए हैं। 12 चुनाँचे जो कुछ भी आप कहते और करते हैं याद रखें कि आज़ाद करनेवाली शरीअत आपकी अदालत करेगी। 13 क्योंकि अल्लाह अदालत करते वक़्त उस पर रहम नहीं करेगा जिसने ख़ुद रहम नहीं दिखाया। लेकिन रहम अदालत पर ग़ालिब आ जाता है। जब आप रहम करेंगे तो अल्लाह आप पर रहम करेगा।
18 हो सकता है कोई एतराज़ करे, “एक शख़्स के पास तो ईमान होता है, दूसरे के पास नेक काम।” आएँ, मुझे दिखाएँ कि आप नेक कामों के बग़ैर किस तरह ईमान रख सकते हैं। यह तो नामुमकिन है। लेकिन मैं ज़रूर आपको अपने नेक कामों से दिखा सकता हूँ कि मैं ईमान रखता हूँ। 19 अच्छा, आप कहते हैं, “हम ईमान रखते हैं कि एक ही ख़ुदा है।” शाबाश, यह बिलकुल सहीह है। शयातीन भी यह ईमान रखते हैं, गो वह यह जानकर ख़ौफ़ के मारे थरथराते हैं। 20 होश में आएँ! क्या आप नहीं समझते कि नेक आमाल के बग़ैर ईमान बेकार है? 21 हमारे बाप इब्राहीम पर ग़ौर करें। वह तो इसी वजह से रास्तबाज़ ठहराया गया कि उसने अपने बेटे इसहाक़ को क़ुरबानगाह पर पेश किया। 22 आप ख़ुद देख सकते हैं कि उसका ईमान और नेक काम मिलकर अमल कर रहे थे। उसका ईमान तो उससे मुकम्मल हुआ जो कुछ उसने किया 23 और इस तरह ही कलामे-मुक़द्दस की यह बात पूरी हुई, “इब्राहीम ने अल्लाह पर भरोसा रखा। इस बिना पर अल्लाह ने उसे रास्तबाज़ क़रार दिया।” इसी वजह से वह “अल्लाह का दोस्त” कहलाया। 24 यों आप ख़ुद देख सकते हैं कि इनसान अपने नेक आमाल की बिना पर रास्तबाज़ क़रार दिया जाता है, न कि सिर्फ़ ईमान रखने की वजह से।
25 राहब फ़ाहिशा की मिसाल भी लें। उसे भी अपने कामों की बिना पर रास्तबाज़ क़रार दिया गया जब उसने इसराईली जासूसों की मेहमान-नवाज़ी की और उन्हें शहर से निकलने का दूसरा रास्ता दिखाकर बचाया।
26 ग़रज़, जिस तरह बदन रूह के बग़ैर मुरदा है उसी तरह ईमान भी नेक आमाल के बग़ैर मुरदा है।
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