3 “लेकिन ऐ जादूगरनी की औलाद, ज़िनाकार और फ़ह्हाशी के बच्चो, इधर आओ! 4 तुम किसका मज़ाक़ उड़ा रहे हो, किस पर ज़बान चलाकर मुँह चिड़ाते हो? तुम मुजरिमों और धोकेबाज़ों के ही बच्चे हो!
5 तुम बलूत बल्कि हर घने दरख़्त के साये में मस्ती में आ जाते हो, वादियों और चट्टानों के शिगाफ़ों में अपने बच्चों को ज़बह करते हो। 6 वादियों के रगड़े हुए पत्थर तेरा हिस्सा और तेरा मुक़द्दर बन गए हैं। क्योंकि उन्हीं को तूने मै और ग़ल्ला की नज़रें पेश कीं। इसके मद्दे-नज़र मैं अपना फ़ैसला क्यों बदलूँ? 7 तूने अपना बिस्तर ऊँचे पहाड़ पर लगाया, उस पर चढ़कर अपनी क़ुरबानियाँ पेश कीं। 8 अपने घर के दरवाज़े और चौखट के पीछे तूने अपनी बुतपरस्ती के निशान लगाए। मुझे तर्क करके तू अपना बिस्तर बिछाकर उस पर लेट गई। तूने उसे इतना बड़ा बना दिया कि दूसरे भी उस पर लेट सकें। फिर तूने इसमतफ़रोशी के पैसे मुक़र्रर किए। उनकी सोहबत तुझे कितनी प्यारी थी, उनकी बरहनगी से तू कितना लुत्फ़ उठाती थी! 9 तू कसरत का तेल और ख़ुशबूदार क्रीम लेकर मलिक देवता के पास गई। तूने अपने क़ासिदों को दूर दूर बल्कि पाताल तक भेज दिया। 10 गो तू सफ़र करते करते बहुत थक गई तो भी तूने कभी न कहा, ‘फ़ज़ूल है!’ अब तक तुझे तक़वियत मिलती रही, इसलिए तू निढाल न हुई।
11 तुझे किससे इतना ख़ौफ़ो-हिरास था कि तूने झूट बोलकर न मुझे याद किया, न परवा की? ऐसा ही है ना, तू इसलिए मेरा ख़ौफ़ नहीं मानती कि मैं ख़ामोश और छुपा रहा।
12 लेकिन मैं लोगों पर तेरी नाम-निहाद रास्तबाज़ी और तेरे काम ज़ाहिर करूँगा। यक़ीनन यह तेरे लिए मुफ़ीद नहीं होंगे। 13 आ, मदद के लिए आवाज़ दे! देखते हैं कि तेरे बुतों का मजमुआ तुझे बचा सकेगा कि नहीं। लेकिन ऐसा नहीं होगा बल्कि उन्हें हवा उठा ले जाएगी, एक फूँक उन्हें उड़ा देगी।
20 लेकिन बेदीन मुतलातिम समुंदर की मानिंद हैं जो थम नहीं सकता और जिसकी लहरें गंद और कीचड़ उछालती रहती हैं। 21 मेरा ख़ुदा फ़रमाता है, “बेदीन सलामती नहीं पाएँगे।
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