7 इसलिए मोआबी अपने आप पर आहो-ज़ारी कर रहे, सब मिलकर आहें भर रहे हैं। वह सिसक सिसककर क़ीर-हरासत की किशमिश की टिक्कियाँ याद कर रहे हैं, उनका निहायत बुरा हाल हो गया है। 8 हसबोन के बाग़ मुरझा गए, सिबमाह के अंगूर ख़त्म हो गए हैं। पहले तो उनकी अनोखी बेलें याज़ेर बल्कि रेगिस्तान तक फैली हुई थीं, उनकी कोंपलें समुंदर को भी पार करती थीं। लेकिन अब ग़ैरक़ौम हुक्मरानों ने यह उम्दा बेलें तोड़ डाली हैं। 9 इसलिए मैं याज़ेर के साथ मिलकर सिबमाह के अंगूरों के लिए आहो-ज़ारी कर रहा हूँ। ऐ हसबोन, ऐ इलियाली, तुम्हारी हालत देखकर मेरे बेहद आँसू बह रहे हैं। क्योंकि जब तुम्हारा फल पक गया और तुम्हारी फ़सल तैयार हुई तब जंग के नारे तुम्हारे इलाक़े में गूँज उठे। 10 अब ख़ुशीओ-शादमानी बाग़ों से ग़ायब हो गई है, अंगूर के बाग़ों में गीत और ख़ुशी के नारे बंद हो गए हैं। कोई नहीं रहा जो हौज़ों में अंगूर को रौंदकर रस निकाले, क्योंकि मैंने फ़सल की ख़ुशियाँ ख़त्म कर दी हैं।
11 मेरा दिल सरोद के मातमी सुर निकालकर मोआब के लिए नोहा कर रहा है, मेरी जान क़ीर-हरासत के लिए आहें भर रही है। 12 जब मोआब अपनी पहाड़ी क़ुरबानगाह के सामने हाज़िर होकर सिजदा करता है तो बेकार मेहनत करता है। जब वह पूजा करने के लिए अपने मंदिर में दाख़िल होता है तो फ़ायदा कोई नहीं होता।
13 रब ने माज़ी में इन बातों का एलान किया। 14 लेकिन अब वह मज़ीद फ़रमाता है, “तीन साल के अंदर अंदर [a] मोआब की तमाम शानो-शौकत और धूमधाम जाती रहेगी। जो थोड़े-बहुत बचेंगे, वह निहायत ही कम होंगे।”
<- यसायाह 15यसायाह 17 ->- a लफ़्ज़ी तरजुमा : मज़दूर के-से तीन साल के अंदर अंदर।