6 यह चीज़ें इसी तरतीब से रखी जाती हैं। जब इमाम अपनी ख़िदमत के फ़रायज़ अदा करते हैं तो बाक़ायदगी से पहले कमरे में जाते हैं। 7 लेकिन सिर्फ़ इमामे-आज़म ही दूसरे कमरे में दाख़िल होता है, और वह भी साल में सिर्फ़ एक दफ़ा। जब भी वह जाता है वह अपने साथ ख़ून लेकर जाता है जिसे वह अपने और क़ौम के लिए पेश करता है ताकि वह गुनाह मिट जाएँ जो लोगों ने ग़ैरइरादी तौर पर किए होते हैं। 8 इससे रूहुल-क़ुद्स दिखाता है कि मुक़द्दसतरीन कमरे तक रसाई उस वक़्त तक ज़ाहिर नहीं की गई थी जब तक पहला कमरा इस्तेमाल में था। 9 यह मजाज़न मौजूदा ज़माने की तरफ़ इशारा है। इसका मतलब यह है कि जो नज़राने और क़ुरबानियाँ पेश की जा रही हैं वह परस्तार के ज़मीर को पाक-साफ़ करके कामिल नहीं बना सकतीं। 10 क्योंकि इनका ताल्लुक़ सिर्फ़ खाने-पीनेवाली चीज़ों और ग़ुस्ल की मुख़्तलिफ़ रस्मों से होता है, ऐसी ज़ाहिरी हिदायात जो सिर्फ़ नए निज़ाम के आने तक लागू हैं।
11 लेकिन अब मसीह आ चुका है, उन अच्छी चीज़ों का इमामे-आज़म जो अब हासिल हुई हैं। जिस ख़ैमे में वह ख़िदमत करता है वह कहीं ज़्यादा अज़ीम और कामिल है। यह ख़ैमा इनसानी हाथों से नहीं बनाया गया यानी यह इस कायनात का हिस्सा नहीं है। 12 जब मसीह एक बार सदा के लिए ख़ैमे के मुक़द्दसतरीन कमरे में दाख़िल हुआ तो उसने क़ुरबानियाँ पेश करने के लिए बकरों और बछड़ों का ख़ून इस्तेमाल न किया। इसके बजाए उसने अपना ही ख़ून पेश किया और यों हमारे लिए अबदी नजात हासिल की। 13 पुराने निज़ाम में बैल-बकरों का ख़ून और जवान गाय की राख नापाक लोगों पर छिड़के जाते थे ताकि उनके जिस्म पाक-साफ़ हो जाएँ। 14 अगर इन चीज़ों का यह असर था तो फिर मसीह के ख़ून का क्या ज़बरदस्त असर होगा! अज़ली रूह के ज़रीए उसने अपने आपको बेदाग़ क़ुरबानी के तौर पर पेश किया। यों उसका ख़ून हमारे ज़मीर को मौत तक पहुँचानेवाले कामों से पाक-साफ़ करता है ताकि हम ज़िंदा ख़ुदा की ख़िदमत कर सकें।
15 यही वजह है कि मसीह एक नए अहद का दरमियानी है। मक़सद यह था कि जितने लोगों को अल्लाह ने बुलाया है उन्हें अल्लाह की मौऊदा और अबदी मीरास मिले। और यह सिर्फ़ इसलिए मुमकिन हुआ है कि मसीह ने मरकर फ़िद्या दिया ताकि लोग उन गुनाहों से छुटकारा पाएँ जो उनसे उस वक़्त सरज़द हुए जब वह पहले अहद के तहत थे।
16 जहाँ वसियत है वहाँ ज़रूरी है कि वसियत करनेवाले की मौत की तसदीक़ की जाए। 17 क्योंकि जब तक वसियत करनेवाला ज़िंदा हो वसियत बेअसर होती है। इसका असर वसियत करनेवाले की मौत ही से शुरू होता है। 18 यही वजह है कि पहला अहद बाँधते वक़्त भी ख़ून इस्तेमाल हुआ। 19 क्योंकि पूरी क़ौम को शरीअत का हर हुक्म सुनाने के बाद मूसा ने बछड़ों का ख़ून पानी से मिलाकर उसे ज़ूफ़े के गुच्छे और क़िरमिज़ी रंग के धागे के ज़रीए शरीअत की किताब और पूरी क़ौम पर छिड़का। 20 उसने कहा, “यह ख़ून उस अहद की तसदीक़ करता है जिसकी पैरवी करने का हुक्म अल्लाह ने तुम्हें दिया है।” 21 इसी तरह मूसा ने यह ख़ून मुलाक़ात के ख़ैमे और इबादत के तमाम सामान पर छिड़का। 22 न सिर्फ़ यह बल्कि शरीअत तक़ाज़ा करती है कि तक़रीबन हर चीज़ को ख़ून ही से पाक-साफ़ किया जाए बल्कि अल्लाह के हुज़ूर ख़ून पेश किए बग़ैर मुआफ़ी मिल ही नहीं सकती।