4 जब मातम का वक़्त ख़त्म हुआ तो यूसुफ़ ने बादशाह के दरबारियों से कहा, “मेहरबानी करके यह ख़बर बादशाह तक पहुँचा दें 5 कि मेरे बाप ने मुझे क़सम दिलाकर कहा था, ‘मैं मरनेवाला हूँ। मुझे उस क़ब्र में दफ़न करना जो मैंने मुल्के-कनान में अपने लिए बनवाई।’ अब मुझे इजाज़त दें कि मैं वहाँ जाऊँ और अपने बाप को दफ़न करके वापस आऊँ।” 6 फ़िरौन ने जवाब दिया, “जा, अपने बाप को दफ़न कर जिस तरह उसने तुझे क़सम दिलाई थी।”
7 चुनाँचे यूसुफ़ अपने बाप को दफ़नाने के लिए कनान रवाना हुआ। बादशाह के तमाम मुलाज़िम, महल के बुज़ुर्ग और पूरे मिसर के बुज़ुर्ग उसके साथ थे। 8 यूसुफ़ के घराने के अफ़राद, उसके भाई और उसके बाप के घराने के लोग भी साथ गए। सिर्फ़ उनके बच्चे, उनकी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल जुशन में रहे। 9 रथ और घुड़सवार भी साथ गए। सब मिलकर बड़ा लशकर बन गए।
10 जब वह यरदन के क़रीब अतद के खलियान पर पहुँचे तो उन्होंने निहायत दिलसोज़ नोहा किया। वहाँ यूसुफ़ ने सात दिन तक अपने बाप का मातम किया। 11 जब मक़ामी कनानियों ने अतद के खलियान पर मातम का यह नज़ारा देखा तो उन्होंने कहा, “यह तो मातम का बहुत बड़ा इंतज़ाम है जो मिसरी करवा रहे हैं।” इसलिए उस जगह का नाम अबील-मिसरीम यानी ‘मिसरियों का मातम’ पड़ गया। 12 यों याक़ूब के बेटों ने अपने बाप का हुक्म पूरा किया। 13 उन्होंने उसे मुल्के-कनान में ले जाकर मकफ़ीला के खेत के ग़ार में दफ़न किया जो ममरे के मशरिक़ में है। यह वही खेत है जो इब्राहीम ने इफ़रोन हित्ती से अपने लोगों को दफ़नाने के लिए ख़रीदा था।
14 इसके बाद यूसुफ़, उसके भाई और बाक़ी तमाम लोग जो जनाज़े के लिए साथ गए थे मिसर को लौट आए।
24 फिर एक वक़्त आया कि यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, “मैं मरनेवाला हूँ। लेकिन अल्लाह ज़रूर आपकी देख-भाल करके आपको इस मुल्क से उस मुल्क में ले जाएगा जिसका उसने इब्राहीम, इसहाक़ और याक़ूब से क़सम खाकर वादा किया है।” 25 फिर यूसुफ़ ने इसराईलियों को क़सम दिलाकर कहा, “अल्लाह यक़ीनन तुम्हारी देख-भाल करके वहाँ ले जाएगा। उस वक़्त मेरी हड्डियों को भी उठाकर साथ ले जाना।”
26 फिर यूसुफ़ फ़ौत हो गया। वह 110 साल का था। उसे हनूत करके मिसर में एक ताबूत में रखा गया।
<- पैदाइश 49- a ग़ालिबन इसका मतलब यह है कि उसने उन्हें लेपालक बनाया।