4 फिर यूसुफ़ ने कहा, “मेरे क़रीब आओ।” वह क़रीब आए तो उसने कहा, “मैं तुम्हारा भाई यूसुफ़ हूँ जिसे तुमने बोलकर मिसर भिजवाया। 5 अब मेरी बात सुनो। न घबराओ और न अपने आपको इलज़ाम दो कि हमने यूसुफ़ को बेच दिया। असल में अल्लाह ने ख़ुद मुझे तुम्हारे आगे यहाँ भेज दिया ताकि हम सब बचे रहें। 6 यह काल का दूसरा साल है। पाँच और साल के दौरान न हल चलेगा, न फ़सल कटेगी। 7 अल्लाह ने मुझे तुम्हारे आगे भेजा ताकि दुनिया में तुम्हारा एक बचा-खुचा हिस्सा महफ़ूज़ रहे और तुम्हारी जान एक बड़ी मख़लसी की मारिफ़त छूट जाए। 8 चुनाँचे तुमने मुझे यहाँ नहीं भेजा बल्कि अल्लाह ने। उसने मुझे फ़िरौन का बाप, उसके पूरे घराने का मालिक और मिसर का हाकिम बना दिया है। 9 अब जल्दी से मेरे बाप के पास वापस जाकर उनसे कहो, ‘आपका बेटा यूसुफ़ आपको इत्तला देता है कि अल्लाह ने मुझे मिसर का मालिक बना दिया है। मेरे पास आ जाएँ, देर न करें। 10 आप जुशन के इलाक़े में रह सकते हैं। वहाँ आप मेरे क़रीब होंगे, आप, आपकी आलो-औलाद, गाय-बैल, भेड़-बकरियाँ और जो कुछ भी आपका है। 11 वहाँ मैं आपकी ज़रूरियात पूरी करूँगा, क्योंकि काल को अभी पाँच साल और लगेंगे। वरना आप, आपके घरवाले और जो भी आपके हैं बदहाल हो जाएंगे।’ 12 तुम ख़ुद और मेरा भाई बिनयमीन देख सकते हो कि मैं यूसुफ़ ही हूँ जो तुम्हारे साथ बात कर रहा हूँ। 13 मेरे बाप को मिसर में मेरे असरो-रसूख़ के बारे में इत्तला दो। उन्हें सब कुछ बताओ जो तुमने देखा है। फिर जल्द ही मेरे बाप को यहाँ ले आओ।”
14 यह कहकर वह अपने भाई बिनयमीन को गले लगाकर रो पड़ा। बिनयमीन भी उसके गले लगकर रोने लगा। 15 फिर यूसुफ़ ने रोते हुए अपने हर एक भाई को बोसा दिया। इसके बाद उसके भाई उसके साथ बातें करने लगे।
16 जब यह ख़बर बादशाह के महल तक पहुँची कि यूसुफ़ के भाई आए हैं तो फ़िरौन और उसके तमाम अफ़सरान ख़ुश हुए। 17 उसने यूसुफ़ से कहा, “अपने भाइयों को बता कि अपने जानवरों पर ग़ल्ला लादकर मुल्के-कनान वापस चले जाओ। 18 वहाँ अपने बाप और ख़ानदानों को लेकर मेरे पास आ जाओ। मैं तुमको मिसर की सबसे अच्छी ज़मीन दे दूँगा, और तुम इस मुल्क की बेहतरीन पैदावार खा सकोगे। 19 उन्हें यह हिदायत भी दे कि अपने बाल-बच्चों के लिए मिसर से गाड़ियाँ ले जाओ और अपने बाप को भी बिठाकर यहाँ ले आओ। 20 अपने माल की ज़्यादा फ़िकर न करो, क्योंकि तुम्हें मुल्के-मिसर का बेहतरीन माल मिलेगा।”
21 यूसुफ़ के भाइयों ने ऐसा ही किया। यूसुफ़ ने उन्हें बादशाह के हुक्म के मुताबिक़ गाड़ियाँ और सफ़र के लिए ख़ुराक दी। 22 उसने हर एक भाई को कपड़ों का एक जोड़ा भी दिया। लेकिन बिनयमीन को उसने चाँदी के 300 सिक्के और पाँच जोड़े दिए। 23 उसने अपने बाप को दस गधे भिजवा दिए जो मिसर के बेहतरीन माल से लदे हुए थे और दस गधियाँ जो अनाज, रोटी और बाप के सफ़र के लिए खाने से लदी हुई थीं। 24 यों उसने अपने भाइयों को रुख़सत करके कहा, “रास्ते में झगड़ा न करना।”
25 वह मिसर से रवाना होकर मुल्के-कनान में अपने बाप के पास पहुँचे। 26 उन्होंने उससे कहा, “यूसुफ़ ज़िंदा है! वह पूरे मिसर का हाकिम है।” लेकिन याक़ूब हक्का-बक्का रह गया, क्योंकि उसे यक़ीन न आया। 27 ताहम उन्होंने उसे सब कुछ बताया जो यूसुफ़ ने उनसे कहा था, और उसने ख़ुद वह गाड़ियाँ देखीं जो यूसुफ़ ने उसे मिसर ले जाने के लिए भिजवा दी थीं। फिर याक़ूब की जान में जान आ गई, 28 और उसने कहा, “मेरा बेटा यूसुफ़ ज़िंदा है! यही काफ़ी है। मरने से पहले मैं जाकर उससे मिलूँगा।”
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