3 अगली सुबह जब पौ फटने लगी तो भाइयों को उनके गधों समेत रुख़सत कर दिया गया। 4 वह अभी शहर से निकलकर दूर नहीं गए थे कि यूसुफ़ ने अपने घर पर मुक़र्रर मुलाज़िम से कहा, “जल्दी करो। उन आदमियों का ताक़्क़ुब करो। उनके पास पहुँचकर यह पूछना, ‘आपने हमारी भलाई के जवाब में ग़लत काम क्यों किया है? 5 आपने मेरे मालिक का चाँदी का प्याला क्यों चुराया है? उससे वह न सिर्फ़ पीते हैं बल्कि उसे ग़ैबदानी के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। आप एक निहायत संगीन जुर्म के मुरतकिब हुए हैं’।”
6 जब मुलाज़िम भाइयों के पास पहुँचा तो उसने उनसे यही बातें कीं। 7 जवाब में उन्होंने कहा, “हमारे मालिक ऐसी बातें क्यों करते हैं? कभी नहीं हो सकता कि आपके ख़ादिम ऐसा करें। 8 आप तो जानते हैं कि हम मुल्के-कनान से वह पैसे वापस ले आए जो हमारी बोरियों में थे। तो फिर हम क्यों आपके मालिक के घर से चाँदी या सोना चुराएँगे? 9 अगर वह आपके ख़ादिमों में से किसी के पास मिल जाए तो उसे मार डाला जाए और बाक़ी सब आपके ग़ुलाम बनें।”
10 मुलाज़िम ने कहा, “ठीक है ऐसा ही होगा। लेकिन सिर्फ़ वही मेरा ग़ुलाम बनेगा जिसने प्याला चुराया है। बाक़ी सब आज़ाद हैं।” 11 उन्होंने जल्दी से अपनी बोरियाँ उतारकर ज़मीन पर रख दीं। हर एक ने अपनी बोरी खोल दी। 12 मुलाज़िम बोरियों की तलाशी लेने लगा। वह बड़े भाई से शुरू करके आख़िरकार सबसे छोटे भाई तक पहुँच गया। और वहाँ बिनयमीन की बोरी में से प्याला निकला। 13 भाइयों ने यह देखकर परेशानी में अपने लिबास फाड़ लिए। वह अपने गधों को दुबारा लादकर शहर वापस आ गए।
14 जब यहूदाह और उसके भाई यूसुफ़ के घर पहुँचे तो वह अभी वहीं था। वह उसके सामने मुँह के बल गिर गए। 15 यूसुफ़ ने कहा, “यह तुमने क्या किया है? क्या तुम नहीं जानते कि मुझ जैसा आदमी ग़ैब का इल्म रखता है?” 16 यहूदाह ने कहा, “जनाबे-आली, हम क्या कहें? अब हम अपने दिफ़ा में क्या कहें? अल्लाह ही ने हमें क़ुसूरवार ठहराया है। अब हम सब आपके ग़ुलाम हैं, न सिर्फ़ वह जिसके पास से प्याला मिल गया।” 17 यूसुफ़ ने कहा, “अल्लाह न करे कि मैं ऐसा करूँ, बल्कि सिर्फ़ वही मेरा ग़ुलाम होगा जिसके पास प्याला था। बाक़ी सब सलामती से अपने बाप के पास वापस चले जाएँ।”
30-31 यहूदाह ने अपनी बात जारी रखी, “जनाबे-आली, अब अगर मैं अपने बाप के पास जाऊँ और वह देखें कि लड़का मेरे साथ नहीं है तो वह दम तोड़ देंगे। उनकी ज़िंदगी इस क़दर लड़के की ज़िंदगी पर मुनहसिर है और वह इतने बूढ़े हैं कि हम ऐसी हरकत से उन्हें क़ब्र तक पहुँचा देंगे। 32 न सिर्फ़ यह बल्कि मैंने बाप से कहा, ‘मैं ख़ुद इसका ज़ामिन हूँगा। अगर मैं इसे सलामती से वापस न पहुँचाऊँ तो फिर मैं ज़िंदगी के आख़िर तक क़ुसूरवार ठहरूँगा।’ 33 अब अपने ख़ादिम की गुज़ारिश सुनें। मैं यहाँ रहकर इस लड़के की जगह ग़ुलाम बन जाता हूँ, और वह दूसरे भाइयों के साथ वापस चला जाए। 34 अगर लड़का मेरे साथ न हुआ तो मैं किस तरह अपने बाप को मुँह दिखा सकता हूँ? मैं बरदाश्त नहीं कर सकूँगा कि वह इस मुसीबत में मुब्तला हो जाएँ।”
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