11 तब उनके बाप इसराईल ने कहा, “अगर और कोई सूरत नहीं तो इस मुल्क की बेहतरीन पैदावार में से कुछ तोह्फ़े के तौर पर लेकर उस आदमी को दे दो यानी कुछ बलसान, शहद, लादन, मुर, पिस्ता और बादाम। 12 अपने साथ दुगनी रक़म लेकर जाओ, क्योंकि तुम्हें वह पैसे वापस करने हैं जो तुम्हारी बोरियों में रखे गए थे। शायद किसी से ग़लती हुई हो। 13 अपने भाई को लेकर सीधे वापस पहुँचना। 14 अल्लाह क़ादिरे-मुतलक़ करे कि यह आदमी तुम पर रहम करके बिनयमीन और तुम्हारे दूसरे भाई को वापस भेजे। जहाँ तक मेरा ताल्लुक़ है, अगर मुझे अपने बच्चों से महरूम होना है तो ऐसा ही हो।”
15 चुनाँचे वह तोह्फ़े, दुगनी रक़म और बिनयमीन को साथ लेकर चल पड़े। मिसर पहुँचकर वह यूसुफ़ के सामने हाज़िर हुए। 16 जब यूसुफ़ ने बिनयमीन को उनके साथ देखा तो उसने अपने घर पर मुक़र्रर मुलाज़िम से कहा, “इन आदमियों को मेरे घर ले जाओ ताकि वह दोपहर का खाना मेरे साथ खाएँ। जानवर को ज़बह करके खाना तैयार करो।”
17 मुलाज़िम ने ऐसा ही किया और भाइयों को यूसुफ़ के घर ले गया। 18 जब उन्हें उसके घर पहुँचाया जा रहा था तो वह डरकर सोचने लगे, “हमें उन पैसों के सबब से यहाँ लाया जा रहा है जो पहली दफ़ा हमारी बोरियों में वापस किए गए थे। वह हम पर अचानक हमला करके हमारे गधे छीन लेंगे और हमें ग़ुलाम बना लेंगे।”
19 इसलिए घर के दरवाज़े पर पहुँचकर उन्होंने घर पर मुक़र्रर मुलाज़िम से कहा, 20 “जनाबे-आली, हमारी बात सुन लीजिए। इससे पहले हम अनाज ख़रीदने के लिए यहाँ आए थे। 21 लेकिन जब हम यहाँ से रवाना होकर रास्ते में रात के लिए ठहरे तो हमने अपनी बोरियाँ खोलकर देखा कि हर बोरी के मुँह में हमारे पैसों की पूरी रक़म पड़ी है। हम यह पैसे वापस ले आए हैं। 22 नीज़, हम मज़ीद ख़ुराक ख़रीदने के लिए और पैसे ले आए हैं। ख़ुदा जाने किसने हमारे यह पैसे हमारी बोरियों में रख दिए।”
23 मुलाज़िम ने कहा, “फ़िकर न करें। मत डरें। आपके और आपके बाप के ख़ुदा ने आपके लिए आपकी बोरियों में यह ख़ज़ाना रखा होगा। बहरहाल मुझे आपके पैसे मिल गए हैं।”
26 जब यूसुफ़ घर पहुँचा तो वह अपने तोह्फ़े लेकर उसके सामने आए और मुँह के बल झुक गए। 27 उसने उनसे ख़ैरियत दरियाफ़्त की और फिर कहा, “तुमने अपने बूढ़े बाप का ज़िक्र किया। क्या वह ठीक हैं? क्या वह अब तक ज़िंदा हैं?” 28 उन्होंने जवाब दिया, “जी, आपके ख़ादिम हमारे बाप अब तक ज़िंदा हैं।” वह दुबारा मुँह के बल झुक गए।
29 जब यूसुफ़ ने अपने सगे भाई बिनयमीन को देखा तो उसने कहा, “क्या यह तुम्हारा सबसे छोटा भाई है जिसका तुमने ज़िक्र किया था? बेटा, अल्लाह की नज़रे-करम तुम पर हो।” 30 यूसुफ़ अपने भाई को देखकर इतना मुतअस्सिर हुआ कि वह रोने को था, इसलिए वह जल्दी से वहाँ से निकलकर अपने सोने के कमरे में गया और रो पड़ा। 31 फिर वह अपना मुँह धोकर वापस आया। अपने आप पर क़ाबू पाकर उसने हुक्म दिया कि नौकर खाना ले आएँ।
32 नौकरों ने यूसुफ़ के लिए खाने का अलग इंतज़ाम किया और भाइयों के लिए अलग। मिसरियों के लिए भी खाने का अलग इंतज़ाम था, क्योंकि इबरानियों के साथ खाना खाना उनकी नज़र में क़ाबिले-नफ़रत था। 33 भाइयों को उनकी उम्र की तरतीब के मुताबिक़ यूसुफ़ के सामने बिठाया गया। यह देखकर भाई निहायत हैरान हुए। 34 नौकरों ने उन्हें यूसुफ़ की मेज़ पर से खाना लेकर खिलाया। लेकिन बिनयमीन को दूसरों की निसबत पाँच गुना ज़्यादा मिला। यों उन्होंने यूसुफ़ के साथ जी भरकर खाया और पिया।
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