3 याक़ूब यूसुफ़ को अपने तमाम बेटों की निसबत ज़्यादा प्यार करता था। वजह यह थी कि वह तब पैदा हुआ जब बाप बूढ़ा था। इसलिए याक़ूब ने उसके लिए एक ख़ास रंगदार लिबास बनवाया। 4 जब उसके भाइयों ने देखा कि हमारा बाप यूसुफ़ को हमसे ज़्यादा प्यार करता है तो वह उससे नफ़रत करने लगे और अदब से उससे बात नहीं करते थे।
5 एक रात यूसुफ़ ने ख़ाब देखा। जब उसने अपने भाइयों को ख़ाब सुनाया तो वह उससे और भी नफ़रत करने लगे। 6 उसने कहा, “सुनो, मैंने ख़ाब देखा। 7 हम सब खेत में पूले बाँध रहे थे कि मेरा पूला खड़ा हो गया। आपके पूले मेरे पूले के इर्दगिर्द जमा होकर उसके सामने झुक गए।” 8 उसके भाइयों ने कहा, “अच्छा, तू बादशाह बनकर हम पर हुकूमत करेगा?” उसके ख़ाबों और उस की बातों के सबब से उनकी उससे नफ़रत मज़ीद बढ़ गई।
9 कुछ देर के बाद यूसुफ़ ने एक और ख़ाब देखा। उसने अपने भाइयों से कहा, “मैंने एक और ख़ाब देखा है। उसमें सूरज, चाँद और ग्यारह सितारे मेरे सामने झुक गए।” 10 उसने यह ख़ाब अपने बाप को भी सुनाया तो उसने उसे डाँटा। उसने कहा, “यह कैसा ख़ाब है जो तूने देखा! यह कैसी बात है कि मैं, तेरी माँ और तेरे भाई आकर तेरे सामने ज़मीन तक झुक जाएँ?” 11 नतीजे में उसके भाई उससे बहुत हसद करने लगे। लेकिन उसके बाप ने दिल में यह बात महफ़ूज़ रखी।
15 वहाँ वह इधर-उधर फिरता रहा। आख़िरकार एक आदमी उससे मिला और पूछा, “आप क्या ढूँड रहे हैं?” 16 यूसुफ़ ने जवाब दिया, “मैं अपने भाइयों को तलाश कर रहा हूँ। मुझे बताएँ कि वह अपने जानवरों को कहाँ चरा रहे हैं।” 17 आदमी ने कहा, “वह यहाँ से चले गए हैं। मैंने उन्हें यह कहते सुना कि आओ, हम दूतैन जाएँ।” यह सुनकर यूसुफ़ अपने भाइयों के पीछे दूतैन चला गया। वहाँ उसे वह मिल गए।
18 जब यूसुफ़ अभी दूर से नज़र आया तो उसके भाइयों ने उसके पहुँचने से पहले उसे क़त्ल करने का मनसूबा बनाया। 19 उन्होंने कहा, “देखो, ख़ाब देखनेवाला आ रहा है। 20 आओ, हम उसे मार डालें और उस की लाश किसी गढ़े में फेंक दें। हम कहेंगे कि किसी वहशी जानवर ने उसे फाड़ खाया है। फिर पता चलेगा कि उसके ख़ाबों की क्या हक़ीक़त है।”
21 जब रूबिन ने उनकी बातें सुनीं तो उसने यूसुफ़ को बचाने की कोशिश की। उसने कहा, “नहीं, हम उसे क़त्ल न करें। 22 उसका ख़ून न करना। बेशक उसे इस गढ़े में फेंक दें जो रेगिस्तान में है, लेकिन उसे हाथ न लगाएँ।” उसने यह इसलिए कहा कि वह उसे बचाकर बाप के पास वापस पहुँचाना चाहता था।
23 ज्योंही यूसुफ़ अपने भाइयों के पास पहुँचा उन्होंने उसका रंगदार लिबास उतारकर 24 यूसुफ़ को गढ़े में फेंक दिया। गढ़ा ख़ाली था, उसमें पानी नहीं था। 25 फिर वह रोटी खाने के लिए बैठ गए। अचानक इसमाईलियों का एक क़ाफ़िला नज़र आया। वह जिलियाद से मिसर जा रहे थे, और उनके ऊँट क़ीमती मसालों यानी लादन, बलसान और मुर से लदे हुए थे। 26 तब यहूदाह ने अपने भाइयों से कहा, “हमें क्या फ़ायदा है अगर अपने भाई को क़त्ल करके उसके ख़ून को छुपा दें? 27 आओ, हम उसे इन इसमाईलियों के हाथ फ़रोख़्त कर दें। फिर कोई ज़रूरत नहीं होगी कि हम उसे हाथ लगाएँ। आख़िर वह हमारा भाई है।”
29 उस वक़्त रूबिन मौजूद नहीं था। जब वह गढ़े के पास वापस आया तो यूसुफ़ उसमें नहीं था। यह देखकर उसने परेशानी में अपने कपड़े फाड़ डाले। 30 वह अपने भाइयों के पास वापस गया और कहा, “लड़का नहीं है। अब मैं किस तरह अब्बू के पास जाऊँ?” 31 तब उन्होंने बकरा ज़बह करके यूसुफ़ का लिबास उसके ख़ून में डुबोया, 32 फिर रंगदार लिबास इस ख़बर के साथ अपने बाप को भिजवा दिया कि “हमें यह मिला है। इसे ग़ौर से देखें। यह आपके बेटे का लिबास तो नहीं?”
33 याक़ूब ने उसे पहचान लिया और कहा, “बेशक उसी का है। किसी वहशी जानवर ने उसे फाड़ खाया है। यक़ीनन यूसुफ़ को फाड़ दिया गया है।” 34 याक़ूब ने ग़म के मारे अपने कपड़े फाड़े और अपनी कमर से टाट ओढ़कर बड़ी देर तक अपने बेटे के लिए मातम करता रहा। 35 उसके तमाम बेटे-बेटियाँ उसे तसल्ली देने आए, लेकिन उसने तसल्ली पाने से इनकार किया और कहा, “मैं पाताल में उतरते हुए भी अपने बेटे के लिए मातम करूँगा।” इस हालत में वह अपने बेटे के लिए रोता रहा।
36 इतने में मिदियानी मिसर पहुँचकर यूसुफ़ को बेच चुके थे। मिसर के बादशाह फ़िरौन के एक आला अफ़सर फ़ूतीफ़ार ने उसे ख़रीद लिया। फ़ूतीफ़ार बादशाह के मुहाफ़िज़ों पर मुक़र्रर था।
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