2 सुनें! मैं पौलुस आपको बताता हूँ कि अगर आप अपना ख़तना करवाएँ तो आपको मसीह का कोई फ़ायदा नहीं होगा। 3 मैं एक बार फिर इस बात की तसदीक़ करता हूँ कि जिसने भी अपना ख़तना करवाया उसका फ़र्ज़ है कि वह पूरी शरीअत की पैरवी करे। 4 आप जो शरीअत की पैरवी करने से रास्तबाज़ बनना चाहते हैं आपका मसीह के साथ कोई वास्ता न रहा। हाँ, आप अल्लाह के फ़ज़ल से दूर हो गए हैं। 5 लेकिन हमें एक फ़रक़ उम्मीद दिलाई गई है। उम्मीद यह है कि ख़ुदा ही हमें रास्तबाज़ क़रार देता है। चुनाँचे हम रूहुल-क़ुद्स के बाइस ईमान रखकर इसी रास्तबाज़ी के लिए तड़पते रहते हैं। 6 क्योंकि जब हम मसीह ईसा में होते हैं तो ख़तना करवाने या न करवाने से कोई फ़रक़ नहीं पड़ता। फ़रक़ सिर्फ़ उस ईमान से पड़ता है जो मुहब्बत करने से ज़ाहिर होता है।
7 आप ईमान की दौड़ में अच्छी तरक़्क़ी कर रहे थे! तो फिर किसने आपको सच्चाई की पैरवी करने से रोक लिया? 8 किसने आपको उभारा? अल्लाह तो नहीं था जो आपको बुलाता है। 9 देखें, थोड़ा-सा ख़मीर तमाम गुंधे हुए आटे को ख़मीर कर देता है। 10 मुझे ख़ुदावंद में आप पर इतना एतमाद है कि आप यही सोच रखते हैं। जो भी आपमें अफ़रा-तफ़री पैदा कर रहा है उसे सज़ा मिलेगी।
11 भाइयो, जहाँ तक मेरा ताल्लुक़ है, अगर मैं यह पैग़ाम देता कि अब तक ख़तना करवाने की ज़रूरत है तो मेरी ईज़ारसानी क्यों हो रही होती? अगर ऐसा होता तो लोग मसीह के मसलूब होने के बारे में सुनकर ठोकर न खाते। 12 बेहतर है कि आपको परेशान करनेवाले न सिर्फ़ अपना ख़तना करवाएँ बल्कि ख़ोजे बन जाएँ।
13 भाइयो, आपको आज़ाद होने के लिए बुलाया गया है। लेकिन ख़बरदार रहें कि इस आज़ादी से आपकी गुनाहआलूदा फ़ितरत को अमल में आने का मौक़ा न मिले। इसके बजाए मुहब्बत की रूह में एक दूसरे की ख़िदमत करें। 14 क्योंकि पूरी शरीअत एक ही हुक्म में समाई हुई है, “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।” 15 अगर आप एक दूसरे को काटते और फाड़ते हैं तो ख़बरदार! ऐसा न हो कि आप एक दूसरे को ख़त्म करके सबके सब तबाह हो जाएँ।
19 जो काम पुरानी फ़ितरत करती है वह साफ़ ज़ाहिर होता है। मसलन ज़िनाकारी, नापाकी, ऐयाशी, 20 बुतपरस्ती, जादूगरी, दुश्मनी, झगड़ा, हसद, ग़ुस्सा, ख़ुदग़रज़ी, अनबन, पार्टीबाज़ी, 21 जलन, नशाबाज़ी, रंगरलियाँ वग़ैरा। मैं पहले भी आपको आगाह कर चुका हूँ, लेकिन अब एक बार फिर कहता हूँ कि जो इस तरह की ज़िंदगी गुज़ारते हैं वह अल्लाह की बादशाही मीरास में नहीं पाएँगे।
22 रूहुल-क़ुद्स का फल फ़रक़ है। वह मुहब्बत, ख़ुशी, सुलह-सलामती, सब्र, मेहरबानी, नेकी, वफ़ादारी, 23 नरमी और ज़ब्ते-नफ़स पैदा करता है। शरीअत ऐसी चीज़ों के ख़िलाफ़ नहीं होती। 24 और जो मसीह ईसा के हैं उन्होंने अपनी पुरानी फ़ितरत को उस की रग़बतों और बुरी ख़ाहिशों समेत मसलूब कर दिया है। 25 चूँकि हम रूह में ज़िंदगी गुज़ारते हैं इसलिए आएँ, हम क़दम बक़दम उसके मुताबिक़ चलते भी रहें। 26 न हम मग़रूर हों, न एक दूसरे को मुश्तइल करें या एक दूसरे से हसद करें।
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