गलतियों
1 यह ख़त पौलुस रसूल की तरफ़ से है। मुझे न किसी गुरोह ने मुक़र्रर किया न किसी शख़्स ने बल्कि ईसा मसीह और ख़ुदा बाप ने जिसने उसे मुरदों में से ज़िंदा कर दिया। 2 तमाम भाई भी जो मेरे साथ हैं गलतिया की जमातों को सलाम कहते हैं।
3 ख़ुदा हमारा बाप और ख़ुदावंद ईसा मसीह आपको फ़ज़ल और सलामती अता करें।
4 मसीह वही है जिसने अपने आपको हमारे गुनाहों की ख़ातिर क़ुरबान कर दिया और यों हमें इस मौजूदा शरीर जहान से बचा लिया है, क्योंकि यह अल्लाह हमारे बाप की मरज़ी थी। 5 उसी का जलाल अबद तक होता रहे! आमीन।
10 क्या मैं इसमें यह कोशिश कर रहा हूँ कि लोग मुझे क़बूल करें? हरगिज़ नहीं! मैं चाहता हूँ कि अल्लाह मुझे क़बूल करे। क्या मेरी कोशिश यह है कि मैं लोगों को पसंद आऊँ? अगर मैं अब तक ऐसा करता तो मसीह का ख़ादिम न होता।
13 आपने तो ख़ुद सुन लिया है कि मैं उस वक़्त किस तरह ज़िंदगी गुज़ारता था जब यहूदी मज़हब का पैरोकार था। उस वक़्त मैंने कितने जोश और शिद्दत से अल्लाह की जमात को ईज़ा पहुँचाई। मेरी पूरी कोशिश यह थी कि यह जमात ख़त्म हो जाए। 14 यहूदी मज़हब के लिहाज़ से मैं अकसर दीगर हमउम्र यहूदियों पर सबक़त ले गया था। हाँ, मैं अपने बापदादा की रिवायतों की पैरवी में हद से ज़्यादा सरगरम था।
15 लेकिन अल्लाह ने अपने फ़ज़ल से मुझे पैदा होने से पेशतर ही चुनकर अपनी ख़िदमत करने के लिए बुलाया। और जब उसने अपनी मरज़ी से 16 अपने फ़रज़ंद को मुझ पर ज़ाहिर किया ताकि मैं उसके बारे में ग़ैरयहूदियों को ख़ुशख़बरी सुनाऊँ तो मैंने किसी भी शख़्स से मशवरा न लिया। 17 उस वक़्त मैं यरूशलम भी न गया ताकि उनसे मिलूँ जो मुझसे पहले रसूल थे बल्कि मैं सीधा अरब चला गया और बाद में दमिश्क़ वापस आया। 18 इसके तीन साल बाद ही मैं पतरस से शनासा होने के लिए यरूशलम गया। वहाँ मैं पंद्रह दिन उसके साथ रहा। 19 इसके अलावा मैंने सिर्फ़ ख़ुदावंद के भाई याक़ूब को देखा, किसी और रसूल को नहीं।
20 जो कुछ मैं लिख रहा हूँ अल्लाह गवाह है कि वह सहीह है। मैं झूट नहीं बोल रहा।
21 बाद में मैं मुल्के-शाम और किलिकिया चला गया। 22 उस वक़्त सूबा यहूदिया में मसीह की जमातें मुझे नहीं जानती थीं। 23 उन तक सिर्फ़ यह ख़बर पहुँची थी कि जो आदमी पहले हमें ईज़ा पहुँचा रहा था वह अब ख़ुद उस ईमान की ख़ुशख़बरी सुनाता है जिसे वह पहले ख़त्म करना चाहता था। 24 यह सुनकर उन्होंने मेरी वजह से अल्लाह की तमजीद की।
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