10 लेकिन अब रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है कि जब दरख़्त इतना बड़ा हो गया कि उस की चोटी बादलों में ओझल हो गई तो वह अपने क़द पर फ़ख़र करके मग़रूर हो गया।
11 यह देखकर मैंने उसे अक़वाम के सबसे बड़े हुक्मरान के हवाले कर दिया ताकि वह उस की बेदीनी के मुताबिक़ उससे निपट ले। मैंने उसे निकाल दिया, 12 तो अजनबी अक़वाम के सबसे ज़ालिम लोगों ने उसे टुकड़े टुकड़े करके ज़मीन पर छोड़ दिया। तब उस की शाख़ें पहाड़ों पर और तमाम वादियों में गिर गईं, उस की टहनियाँ टूटकर मुल्क की तमाम घाटियों में पड़ी रहीं। दुनिया की तमाम अक़वाम उसके साये में से निकलकर वहाँ से चली गईं। 13 तमाम परिंदे उसके कटे हुए तने पर बैठ गए, तमाम जंगली जानवर उस की सूखी हुई शाख़ों पर लेट गए। 14 यह इसलिए हुआ कि आइंदा पानी के किनारे पर लगा कोई भी दरख़्त इतना बड़ा न हो कि उस की चोटी बादलों में ओझल हो जाए और नतीजतन वह अपने आपको दूसरों से बरतर समझे। क्योंकि सबके लिए मौत और ज़मीन की गहराइयाँ मुक़र्रर हैं, सबको पाताल में उतरकर मुरदों के दरमियान बसना है।
15 रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है कि जिस वक़्त यह दरख़्त पाताल में उतर गया उस दिन मैंने गहराइयों के चश्मों को उस पर मातम करने दिया और उनकी नदियों को रोक दिया ताकि पानी इतनी कसरत से न बहे। उस की ख़ातिर मैंने लुबनान को मातमी लिबास पहनाए। तब खुले मैदान के तमाम दरख़्त मुरझा गए। 16 वह इतने धड़ाम से गिर गया जब मैंने उसे पाताल में उनके पास उतार दिया जो गढ़े में उतर चुके थे कि दीगर अक़वाम को धच्का लगा। लेकिन बाग़े-अदन के बाक़ी तमाम दरख़्तों को तसल्ली मिली। क्योंकि गो लुबनान के इन चीदा और बेहतरीन दरख़्तों को पानी की कसरत मिलती रही थी ताहम यह भी पाताल में उतर गए थे। 17 गो यह बड़े दरख़्त की ताक़त रहे थे और अक़वाम के दरमियान रहकर उसके साये में अपना घर बना लिया था तो भी यह बड़े दरख़्त के साथ वहाँ उतर गए जहाँ मक़तूल उनके इंतज़ार में थे।
18 ऐ मिसर, अज़मत और शान के लिहाज़ से बाग़े-अदन का कौन-सा दरख़्त तेरा मुक़ाबला कर सकता है? लेकिन तुझे बाग़े-अदन के दीगर दरख़्तों के साथ ज़मीन की गहराइयों में उतारा जाएगा। वहाँ तू नामख़तूनों और मक़तूलों के दरमियान पड़ा रहेगा। रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है कि यही फ़िरौन और उस की शानो-शौकत का अंजाम होगा’।”
<- हिज़क़ियेल 30हिज़क़ियेल 32 ->- a 21 जून।