3 उसे बता, ‘रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है कि ऐ शाहे-मिसर फ़िरौन, मैं तुझसे निपटने को हूँ। बेशक तू एक बड़ा अज़दहा है जो दरियाए-नील की मुख़्तलिफ़ शाख़ों के बीच में लेटा हुआ कहता है कि यह दरिया मेरा ही है, मैंने ख़ुद उसे बनाया।
4 लेकिन मैं तेरे मुँह में काँटे डालकर तुझे दरिया से निकाल लाऊँगा। मेरे कहने पर तेरी नदियों की तमाम मछलियाँ तेरे छिलकों के साथ लगकर तेरे साथ पकड़ी जाएँगी। 5 मैं तुझे इन तमाम मछलियों समेत रेगिस्तान में फेंक छोड़ूँगा। तू खुले मैदान में गिरकर पड़ा रहेगा। न कोई तुझे इकट्ठा करेगा, न जमा करेगा बल्कि मैं तुझे दरिंदों और परिंदों को खिला दूँगा। 6 तब मिसर के तमाम बाशिंदे जान लेंगे कि मैं ही रब हूँ।
13 लेकिन रब क़ादिरे-मुतलक़ यह भी फ़रमाता है कि चालीस साल के बाद मैं मिसरियों को उन ममालिक से निकालकर जमा करूँगा जहाँ मैंने उन्हें मुंतशिर कर दिया था। 14 मैं मिसर को बहाल करके उन्हें उनके आबाई वतन यानी जुनूबी मिसर में वापस लाऊँगा। वहाँ वह एक ग़ैरअहम सलतनत क़ायम करेंगे 15 जो बाक़ी ममालिक की निसबत छोटी होगी। आइंदा वह दीगर क़ौमों पर अपना रोब नहीं डालेंगे। मैं ख़ुद ध्यान दूँगा कि वह आइंदा इतने कमज़ोर रहें कि दीगर क़ौमों पर हुकूमत न कर सकें। 16 आइंदा इसराईल न मिसर पर भरोसा करने और न उससे लिपट जाने की आज़माइश में पड़ेगा। तब वह जान लेंगे कि मैं ही रब क़ादिरे-मुतलक़ हूँ’।”
19 इसलिए रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है कि मैं शाहे-बाबल नबूकदनज़्ज़र को मिसर दे दूँगा। उस की दौलत को वह उठाकर ले जाएगा। अपनी फ़ौज को पैसे देने के लिए वह मिसर को लूट लेगा। 20 चूँकि नबूकदनज़्ज़र और उस की फ़ौज ने मेरे लिए ख़ूब मेहनत-मशक़्क़त की इसलिए मैंने उसे मुआवज़े के तौर पर मिसर दे दिया है। यह रब क़ादिरे-मुतलक़ का फ़रमान है।
21 जब यह कुछ पेश आएगा तो मैं इसराईल को नई ताक़त दूँगा। ऐ हिज़क़ियेल, उस वक़्त मैं तेरा मुँह खोल दूँगा, और तू दुबारा उनके दरमियान बोलेगा। तब वह जान लेंगे कि मैं ही रब हूँ।”
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