4 तब रब ने मूसा से कहा, “मैं आसमान से तुम्हारे लिए रोटी बरसाऊँगा। हर रोज़ लोग बाहर जाकर उसी दिन की ज़रूरत के मुताबिक़ खाना जमा करें। इससे मैं उन्हें आज़माकर देखूँगा कि आया वह मेरी सुनते हैं कि नहीं। 5 हर रोज़ वह सिर्फ़ उतना खाना जमा करें जितना कि एक दिन के लिए काफ़ी हो। लेकिन छटे दिन जब वह खाना तैयार करेंगे तो वह अगले दिन के लिए भी काफ़ी होगा।”
6 मूसा और हारून ने इसराईलियों से कहा, “आज शाम को तुम जान लोगे कि रब ही तुम्हें मिसर से निकाल लाया है। 7 और कल सुबह तुम रब का जलाल देखोगे। उसने तुम्हारी शिकायतें सुन ली हैं, क्योंकि असल में तुम हमारे ख़िलाफ़ नहीं बल्कि रब के ख़िलाफ़ बुड़बुड़ा रहे हो। 8 फिर भी रब तुमको शाम के वक़्त गोश्त और सुबह के वक़्त वाफ़िर रोटी देगा, क्योंकि उसने तुम्हारी शिकायतें सुन ली हैं। तुम्हारी शिकायतें हमारे ख़िलाफ़ नहीं बल्कि रब के ख़िलाफ़ हैं।”
9 मूसा ने हारून से कहा, “इसराईलियों को बताना, ‘रब के सामने हाज़िर हो जाओ, क्योंकि उसने तुम्हारी शिकायतें सुन ली हैं’।” 10 जब हारून पूरी जमात के सामने बात करने लगा तो लोगों ने पलटकर रेगिस्तान की तरफ़ देखा। वहाँ रब का जलाल बादल में ज़ाहिर हुआ। 11 रब ने मूसा से कहा, 12 “मैंने इसराईलियों की शिकायत सुन ली है। उन्हें बता, ‘आज जब सूरज ग़ुरूब होने लगेगा तो तुम गोश्त खाओगे और कल सुबह पेट भरकर रोटी। फिर तुम जान लोगे कि मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ’।”
13 उसी शाम बटेरों के ग़ोल आए जो पूरी ख़ैमागाह पर छा गए। और अगली सुबह ख़ैमे के चारों तरफ़ ओस पड़ी थी। 14 जब ओस सूख गई तो बर्फ़ के गालों जैसे पतले दाने पाले की तरह ज़मीन पर पड़े थे। 15 जब इसराईलियों ने उसे देखा तो एक दूसरे से पूछने लगे, “मन हू?” यानी “यह क्या है?” क्योंकि वह नहीं जानते थे कि यह क्या चीज़ है। मूसा ने उनको समझाया, “यह वह रोटी है जो रब ने तुम्हें खाने के लिए दी है। 16 रब का हुक्म है कि हर एक उतना जमा करे जितना उसके ख़ानदान को ज़रूरत हो। अपने ख़ानदान के हर फ़रद के लिए दो लिटर जमा करो।”
17 इसराईलियों ने ऐसा ही किया। बाज़ ने ज़्यादा और बाज़ ने कम जमा किया। 18 लेकिन जब उसे नापा गया तो हर एक आदमी के लिए काफ़ी था। जिसने ज़्यादा जमा किया था उसके पास कुछ न बचा। लेकिन जिसने कम जमा किया था उसके पास भी काफ़ी था। 19 मूसा ने हुक्म दिया, “अगले दिन के लिए खाना न बचाना।”
20 लेकिन लोगों ने मूसा की बात न मानी बल्कि बाज़ ने खाना बचा लिया। लेकिन अगली सुबह मालूम हुआ कि बचे हुए खाने में कीड़े पड़ गए हैं और उससे बहुत बदबू आ रही है। यह सुनकर मूसा उनसे नाराज़ हुआ।
21 हर सुबह हर कोई उतना जमा कर लेता जितनी उसे ज़रूरत होती थी। जब धूप तेज़ होती तो जो कुछ ज़मीन पर रह जाता वह पिघलकर ख़त्म हो जाता था।
22 छटे दिन जब लोग यह ख़ुराक जमा करते तो वह मिक़दार में दुगनी होती थी यानी हर फ़रद के लिए चार लिटर। जब जमात के बुज़ुर्गों ने मूसा के पास आकर उसे इत्तला दी 23 तो उसने उनसे कहा, “रब का फ़रमान है कि कल आराम का दिन है, मुक़द्दस सबत का दिन जो अल्लाह की ताज़ीम में मनाना है। आज तुम जो तनूर में पकाना चाहते हो पका लो और जो उबालना चाहते हो उबाल लो। जो बच जाए उसे कल के लिए महफ़ूज़ रखो।”
24 लोगों ने मूसा के हुक्म के मुताबिक़ अगले दिन के लिए खाना महफ़ूज़ कर लिया तो न खाने से बदबू आई, न उसमें कीड़े पड़े। 25 मूसा ने कहा, “आज यही बचा हुआ खाना खाओ, क्योंकि आज सबत का दिन है, रब की ताज़ीम में आराम का दिन। आज तुम्हें रेगिस्तान में कुछ नहीं मिलेगा। 26 छः दिन के दौरान यह ख़ुराक जमा करना है, लेकिन सातवाँ दिन आराम का दिन है। उस दिन ज़मीन पर खाने के लिए कुछ नहीं होगा।”
27 तो भी कुछ लोग हफ़ते को खाना जमा करने के लिए निकले, लेकिन उन्हें कुछ न मिला। 28 तब रब ने मूसा से कहा, “तुम लोग कब तक मेरे अहकाम और हिदायात पर अमल करने से इनकार करोगे? 29 देखो, रब ने तुम्हारे लिए मुक़र्रर किया है कि सबत का दिन आराम का दिन है। इसलिए वह तुम्हें जुमे को दो दिन के लिए ख़ुराक देता है। हफ़ते को सबको अपने ख़ैमों में रहना है। कोई भी अपने घर से बाहर न निकले।”
30 चुनाँचे लोग सबत के दिन आराम करते थे।
31 इसराईलियों ने इस ख़ुराक का नाम ‘मन’ रखा। उसके दाने धनिये की मानिंद सफ़ेद थे, और उसका ज़ायक़ा शहद से बने केक की मानिंद था।
32 मूसा ने कहा, “रब फ़रमाता है, ‘दो लिटर मन एक मरतबान में रखकर उसे आनेवाली नसलों के लिए महफ़ूज़ रखना। फिर वह देख सकेंगे कि मैं तुम्हें क्या खाना खिलाता रहा जब तुम्हें मिसर से निकाल लाया’।” 33 मूसा ने हारून से कहा, “एक मरतबान लो और उसे दो लिटर मन से भरकर रब के सामने रखो ताकि वह आनेवाली नसलों के लिए महफ़ूज़ रहे।” 34 हारून ने ऐसा ही किया। उसने मन के इस मरतबान को अहद के संदूक़ के सामने रखा ताकि वह महफ़ूज़ रहे।
35 इसराईलियों को 40 साल तक मन मिलता रहा। वह उस वक़्त तक मन खाते रहे जब तक रेगिस्तान से निकलकर कनान की सरहद पर न पहुँचे। 36 (जो पैमाना इसराईली मन के लिए इस्तेमाल करते थे वह दो लिटर का एक बरतन था जिसका नाम ओमर था।)
<- ख़ुरूज 15ख़ुरूज 17 ->