3 आपके दरमियान ज़िनाकारी, हर तरह की नापाकी या लालच का ज़िक्र तक न हो, क्योंकि यह अल्लाह के मुक़द्दसीन के लिए मुनासिब नहीं है। 4 इसी तरह शर्मनाक, अहमक़ाना या गंदी बातें भी ठीक नहीं। इनकी जगह शुक्रगुज़ारी होनी चाहिए। 5 क्योंकि यक़ीन जानें कि ज़िनाकार, नापाक या लालची मसीह और अल्लाह की बादशाही में मीरास नहीं पाएँगे (लालच तो एक क़िस्म की बुतपरस्ती है)।
6 कोई आपको बेमानी अलफ़ाज़ से धोका न दे। ऐसी ही बातों की वजह से अल्लाह का ग़ज़ब उन पर जो नाफ़रमान हैं नाज़िल होता है। 7 चुनाँचे उनमें शरीक न हो जाएँ जो यह करते हैं। 8 क्योंकि पहले आप तारीकी थे, लेकिन अब आप ख़ुदावंद में रौशनी हैं। रौशनी के फ़रज़ंद की तरह ज़िंदगी गुज़ारें, 9 क्योंकि रौशनी का फल हर तरह की भलाई, रास्तबाज़ी और सच्चाई है। 10 और मालूम करते रहें कि ख़ुदावंद को क्या कुछ पसंद है। 11 तारीकी के बेफल कामों में हिस्सा न लें बल्कि उन्हें रौशनी में लाएँ। 12 क्योंकि जो कुछ यह लोग पोशीदगी में करते हैं उसका ज़िक्र करना भी शर्म की बात है। 13 लेकिन सब कुछ बेनिक़ाब हो जाता है जब उसे रौशनी में लाया जाता है। 14 क्योंकि जो रौशनी में लाया जाता है वह रौशन हो जाता है। इसलिए कहा जाता है,
15 चुनाँचे बड़ी एहतियात से इस पर ध्यान दें कि आप ज़िंदगी किस तरह गुज़ारते हैं—बेसमझ या समझदार लोगों की तरह। 16 हर मौक़े से पूरा फ़ायदा उठाएँ, क्योंकि दिन बुरे हैं। 17 इसलिए अहमक़ न बनें बल्कि ख़ुदावंद की मरज़ी को समझें।
18 शराब में मत्वाले न हो जाएँ, क्योंकि इसका अंजाम ऐयाशी है। इसके बजाए रूहुल-क़ुद्स से मामूर होते जाएँ। 19 ज़बूरों, हम्दो-सना और रूहानी गीतों से एक दूसरे की हौसलाअफ़्ज़ाई करें। अपने दिलों में ख़ुदावंद के लिए गीत गाएँ और नग़मासराई करें। 20 हाँ, हर वक़्त हमारे ख़ुदावंद ईसा मसीह के नाम में हर चीज़ के लिए ख़ुदा बाप का शुक्र करें।
25 शौहरो, अपनी बीवियों से मुहब्बत रखें, बिलकुल उसी तरह जिस तरह मसीह ने अपनी जमात से मुहब्बत रखकर अपने आपको उसके लिए क़ुरबान किया 26 ताकि उसे अल्लाह के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस करे। उसने उसे कलामे-पाक से धोकर पाक-साफ़ कर दिया 27 ताकि अपने आपको एक ऐसी जमात पेश करे जो जलाली, मुक़द्दस और बेइलज़ाम हो, जिसमें न कोई दाग़ हो, न कोई झुर्री, न किसी और क़िस्म का नुक़्स। 28 शौहरों का फ़र्ज़ है कि वह अपनी बीवियों से ऐसी ही मुहब्बत रखें। हाँ, वह उनसे वैसी मुहब्बत रखें जैसी अपने जिस्म से रखते हैं। क्योंकि जो अपनी बीवी से मुहब्बत रखता है वह अपने आपसे ही मुहब्बत रखता है। 29 आख़िर कोई भी अपने जिस्म से नफ़रत नहीं करता बल्कि उसे ख़ुराक मुहैया करता और पालता है। मसीह भी अपनी जमात के लिए यही कुछ करता है। 30 क्योंकि हम उसके बदन के आज़ा हैं। 31 कलामे-मुक़द्दस में भी लिखा है, “इसलिए मर्द अपने माँ-बाप को छोड़कर अपनी बीवी के साथ पैवस्त हो जाता है। वह दोनों एक हो जाते हैं।” 32 यह राज़ बहुत गहरा है। मैं तो उसका इतलाक़ मसीह और उस की जमात पर करता हूँ। 33 लेकिन इसका इतलाक़ आप पर भी है। हर शौहर अपनी बीवी से इस तरह मुहब्बत रखे जिस तरह वह अपने आपसे रखता है। और हर बीवी अपने शौहर की इज़्ज़त करे।
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