7 अब हम सबको अल्लाह का फ़ज़ल बख़्शा गया। लेकिन मसीह हर एक को मुख़्तलिफ़ पैमाने से यह फ़ज़ल अता करता है। 8 इसलिए कलामे-मुक़द्दस फ़रमाता है, “उसने बुलंदी पर चढ़कर क़ैदियों का हुजूम गिरिफ़्तार कर लिया और आदमियों को तोह्फ़े दिए।” 9 अब ग़ौर करें कि चढ़ने का ज़िक्र किया गया है। इसका मतलब है कि पहले वह ज़मीन की गहराइयों में उतरा। 10 जो उतरा वह वही है जो तमाम आसमानों से ऊँचा चढ़ गया ताकि तमाम कायनात को अपने आपसे मामूर करे। 11 उसी ने अपनी जमात को तरह तरह के ख़ादिमों से नवाज़ा। बाज़ रसूल, बाज़ नबी, बाज़ मुबश्शिर, बाज़ चरवाहे और बाज़ उस्ताद हैं। 12 इनका मक़सद यह है कि मुक़द्दसीन को ख़िदमत करने के लिए तैयार किया जाए और यों मसीह के बदन की तामीरो-तरक़्क़ी हो जाए। 13 इस तरीक़े से हम सब ईमान और अल्लाह के फ़रज़ंद की पहचान में एक होकर बालिग़ हो जाएंगे, और हम मिलकर मसीह की मामूरी और बलूग़त को मुनअकिस करेंगे। 14 फिर हम बच्चे नहीं रहेंगे, और तालीम के हर एक झोंके से उछलते फिरते नहीं रहेंगे जब लोग अपनी चालाकी और धोकेबाज़ी से हमें अपने जालों में फँसाने की कोशिश करेंगे। 15 इसके बजाए हम मुहब्बत की रूह में सच्ची बात करके हर लिहाज़ से मसीह की तरफ़ बढ़ते जाएंगे जो हमारा सर है। 16 वही नसों के ज़रीए पूरे बदन के मुख़्तलिफ़ हिस्सों को एक दूसरे के साथ जोड़कर मुत्तहिद कर देता है। हर हिस्सा अपनी ताक़त के मुवाफ़िक़ काम करता है, और यों पूरा बदन मुहब्बत की रूह में बढ़ता और अपनी तामीर करता रहता है।
20 लेकिन आपने मसीह को यों नहीं जाना। 21 आपने तो उसके बारे में सुन लिया है, और उसमें होकर आपको वह सच्चाई सिखाई गई जो ईसा में है। 22 चुनाँचे अपने पुराने इनसान को उसके पुराने चाल-चलन समेत उतार देना, क्योंकि वह अपनी धोकेबाज़ शहवतों से बिगड़ता जा रहा है। 23 अल्लाह को आपकी सोच की तजदीद करने दें 24 और नए इनसान को पहन लें जो यों बनाया गया है कि वह हक़ीक़ी रास्तबाज़ी और क़ुद्दूसियत में अल्लाह के मुशाबेह है।
25 इसलिए हर शख़्स झूट से बाज़ रहकर दूसरों से सच बात करे, क्योंकि हम सब एक ही बदन के आज़ा हैं। 26 ग़ुस्से में आते वक़्त गुनाह मत करना। आपका ग़ुस्सा सूरज के ग़ुरूब होने तक ठंडा हो जाए, 27 वरना आप इबलीस को अपनी ज़िंदगी में काम करने का मौक़ा देंगे। 28 चोर अब से चोरी न करे बल्कि ख़ूब मेहनत-मशक़्क़त करके अपने हाथों से अच्छा काम करे। हाँ, वह इतना कमाए कि ज़रूरतमंदों को भी कुछ दे सके। 29 कोई भी बुरी बात आपके मुँह से न निकले बल्कि सिर्फ़ ऐसी बातें जो दूसरों की ज़रूरियात के मुताबिक़ उनकी तामीर करें। यों सुननेवालों को बरकत मिलेगी। 30 अल्लाह के मुक़द्दस रूह को दुख न पहुँचाना, क्योंकि उसी से अल्लाह ने आप पर मुहर लगाकर यह ज़मानत दे दी है कि आप उसी के हैं और नजात के दिन बच जाएंगे। 31 तमाम तरह की तलख़ी, तैश, ग़ुस्से, शोर-शराबा, गाली-गलोच बल्कि हर क़िस्म के बुरे रवय्ये से बाज़ आएँ। 32 एक दूसरे पर मेहरबान और रहमदिल हों और एक दूसरे को यों मुआफ़ करें जिस तरह अल्लाह ने आपको भी मसीह में मुआफ़ कर दिया है।
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