2 ज़ियाफ़त करनेवालों के घर में जाने की निसबत मातम करनेवालों के घर में जाना बेहतर है, क्योंकि हर इनसान का अंजाम मौत ही है। जो ज़िंदा हैं वह इस बात पर ख़ूब ध्यान दें। 3 दुख हँसी से बेहतर है, उतरा हुआ चेहरा दिल की बेहतरी का बाइस है। 4 दानिशमंद का दिल मातम करनेवालों के घर में ठहरता जबकि अहमक़ का दिल ऐशो-इशरत करनेवालों के घर में टिक जाता है।
5 अहमक़ों के गीत सुनने की निसबत दानिशमंद की झिड़कियों पर ध्यान देना बेहतर है। 6 अहमक़ के क़हक़हे देगची तले चटख़नेवाले काँटों की आग की मानिंद हैं। यह भी बातिल ही है।
7 नारवा नफ़ा दानिशमंद को अहमक़ बना देता, रिश्वत दिल को बिगाड़ देती है।
8 किसी मामले का अंजाम उस की इब्तिदा से बेहतर है, सब्र करना मग़रूर होने से बेहतर है।
9 ग़ुस्सा करने में जल्दी न कर, क्योंकि ग़ुस्सा अहमक़ों की गोद में ही आराम करता है।
10 यह न पूछ कि आज की निसबत पुराना ज़माना बेहतर क्यों था, क्योंकि यह हिकमत की बात नहीं।
11 अगर हिकमत के अलावा मीरास में मिलकियत भी मिल जाए तो यह अच्छी बात है, यह उनके लिए सूदमंद है जो सूरज देखते हैं। 12 क्योंकि हिकमत पैसों की तरह पनाह देती है, लेकिन हिकमत का ख़ास फ़ायदा यह है कि वह अपने मालिक की जान बचाए रखती है।
13 अल्लाह के काम का मुलाहज़ा कर। जो कुछ उसने पेचदार बनाया कौन उसे सुलझा सकता है?
14 ख़ुशी के दिन ख़ुश हो, लेकिन मुसीबत के दिन ख़याल रख कि अल्लाह ने यह दिन भी बनाया और वह भी इसलिए कि इनसान अपने मुस्तक़बिल के बारे में कुछ मालूम न कर सके।
19 हिकमत दानिशमंद को शहर के दस हुक्मरानों से ज़्यादा ताक़तवर बना देती है। 20 दुनिया में कोई भी इनसान इतना रास्तबाज़ नहीं कि हमेशा अच्छा काम करे और कभी गुनाह न करे।
21 लोगों की हर बात पर ध्यान न दे, ऐसा न हो कि तू नौकर की लानत भी सुन ले जो वह तुझ पर करता है। 22 क्योंकि दिल में तू जानता है कि तूने ख़ुद मुतअद्दिद बार दूसरों पर लानत भेजी है।
26 मुझे मालूम हुआ कि मौत से कहीं तलख़ वह औरत है जो फंदा है, जिसका दिल जाल और हाथ ज़ंजीरें हैं। जो आदमी अल्लाह को मंज़ूर हो वह बच निकलेगा, लेकिन गुनाहगार उसके जाल में उलझ जाएगा।
27 वाइज़ फ़रमाता है, “यह सब कुछ मुझे मालूम हुआ जब मैंने मुख़्तलिफ़ बातें एक दूसरे के साथ मुंसलिक कीं ताकि सहीह नतायज तक पहुँचूँ। 28 लेकिन जिसे मैं ढूँडता रहा वह न मिला। हज़ार अफ़राद में से मुझे सिर्फ़ एक ही दियानतदार मर्द मिला, लेकिन एक भी दियानतदार औरत नहीं। [a]
29 मुझे सिर्फ़ इतना ही मालूम हुआ कि गो अल्लाह ने इनसानों को दियानतदार बनाया, लेकिन वह कई क़िस्म की चालाकियाँ ढूँड निकालते हैं।”
<- वाइज़ 6वाइज़ 8 ->- a ‘दियानतदार’ इज़ाफ़ा है ताकि आयत का जो ग़ालिबन मतलब है वह साफ़ हो जाए।