6 “मैं रब तेरा ख़ुदा हूँ जो तुझे मुल्के-मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया। 7 मेरे सिवा किसी और माबूद की परस्तिश न करना।
8 अपने लिए बुत न बनाना। किसी भी चीज़ की मूरत न बनाना, चाहे वह आसमान में, ज़मीन पर या समुंदर में हो। 9 न बुतों की परस्तिश, न उनकी ख़िदमत करना, क्योंकि मैं तेरा रब ग़यूर ख़ुदा हूँ। जो मुझसे नफ़रत करते हैं उन्हें मैं तीसरी और चौथी पुश्त तक सज़ा दूँगा। 10 लेकिन जो मुझसे मुहब्बत रखते और मेरे अहकाम पूरे करते हैं उन पर मैं हज़ार पुश्तों तक मेहरबानी करूँगा।
11 रब अपने ख़ुदा का नाम बेमक़सद या ग़लत मक़सद के लिए इस्तेमाल न करना। जो भी ऐसा करता है उसे रब सज़ा दिए बग़ैर नहीं छोड़ेगा।
12 सबत के दिन का ख़याल रखना। उसे इस तरह मनाना कि वह मख़सूसो-मुक़द्दस हो, उसी तरह जिस तरह रब तेरे ख़ुदा ने तुझे हुक्म दिया है। 13 हफ़ते के पहले छः दिन अपना काम-काज कर, 14 लेकिन सातवाँ दिन रब तेरे ख़ुदा का आराम का दिन है। उस दिन किसी तरह का काम न करना। न तू, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा नौकर, न तेरी नौकरानी, न तेरा बैल, न तेरा गधा, न तेरा कोई और मवेशी। जो परदेसी तेरे दरमियान रहता है वह भी काम न करे। तेरे नौकर और तेरी नौकरानी को तेरी तरह आराम का मौक़ा मिलना है। 15 याद रखना कि तू मिसर में ग़ुलाम था और कि रब तेरा ख़ुदा ही तुझे बड़ी क़ुदरत और इख़्तियार से वहाँ से निकाल लाया। इसलिए उसने तुझे हुक्म दिया है कि सबत का दिन मनाना।
16 अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना जिस तरह रब तेरे ख़ुदा ने तुझे हुक्म दिया है। फिर तू उस मुल्क में जो रब तेरा ख़ुदा तुझे देनेवाला है ख़ुशहाल होगा और देर तक जीता रहेगा।
17 क़त्ल न करना।
18 ज़िना न करना।
19 चोरी न करना।
20 अपने पड़ोसी के बारे में झूटी गवाही न देना।
21 अपने पड़ोसी की बीवी का लालच न करना। न उसके घर का, न उस की ज़मीन का, न उसके नौकर का, न उस की नौकरानी का, न उसके बैल और न उसके गधे का बल्कि उस की किसी भी चीज़ का लालच न करना।”
22 रब ने तुम सबको यह अहकाम दिए जब तुम सीना पहाड़ के दामन में जमा थे। वहाँ तुमने आग, बादल और गहरे अंधेरे में से उस की ज़ोरदार आवाज़ सुनी। यही कुछ उसने कहा और बस। फिर उसने उन्हें पत्थर की दो तख़्तियों पर लिखकर मुझे दे दिया।
28 जब रब ने यह सुना तो उसने मुझसे कहा, “मैंने इन लोगों की यह बातें सुन ली हैं। वह ठीक कहते हैं। 29 काश उनकी सोच हमेशा ऐसी ही हो! काश वह हमेशा इसी तरह मेरा ख़ौफ़ मानें और मेरे अहकाम पर अमल करें! अगर वह ऐसा करेंगे तो वह और उनकी औलाद हमेशा कामयाब रहेंगे। 30 जा, उन्हें बता दे कि अपने ख़ैमों में लौट जाओ। 31 लेकिन तू यहाँ मेरे पास रह ताकि मैं तुझे तमाम क़वानीन और अहकाम दे दूँ। उनको लोगों को सिखाना ताकि वह उस मुल्क में उनके मुताबिक़ चलें जो मैं उन्हें दूँगा।”
32 चुनाँचे एहतियात से उन अहकाम पर अमल करो जो रब तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हें दिए हैं। उनसे न दाईं तरफ़ हटो न बाईं तरफ़। 33 हमेशा उस राह पर चलते रहो जो रब तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हें बताई है। फिर तुम कामयाब होगे और उस मुल्क में देर तक जीते रहोगे जिस पर तुम क़ब्ज़ा करोगे।
<- इस्तिसना 4इस्तिसना 6 ->