6 हो सकता है कि तेरा सगा भाई, तेरा बेटा या बेटी, तेरी बीवी या तेरा क़रीबी दोस्त तुझे चुपके से वरग़लाने की कोशिश करे कि आ, हम जाकर दीगर माबूदों की पूजा करें, ऐसे देवताओं की जिनसे न तू और न तेरे बापदादा वाक़िफ़ थे। 7 ख़ाह इर्दगिर्द की या दूर-दराज़ की क़ौमों के देवता हों, ख़ाह दुनिया के एक सिरे के या दूसरे सिरे के माबूद हों, 8 किसी सूरत में अपनी रज़ामंदी का इज़हार न कर, न उस की सुन। उस पर रहम न कर। न उसे बचाए रख, न उसे पनाह दे 9 बल्कि उसे सज़ाए-मौत दे। और उसे संगसार करते वक़्त पहले तेरा हाथ उस पर पत्थर फेंके, फिर ही बाक़ी तमाम लोग हिस्सा लें। 10 उसे ज़रूर पत्थरों से सज़ाए-मौत देना, क्योंकि उसने तुझे रब तेरे ख़ुदा से दूर करने की कोशिश की, उसी से जो तुझे मिसर की ग़ुलामी से निकाल लाया। 11 फिर तमाम इसराईल यह सुनकर डर जाएगा और आइंदा तेरे दरमियान ऐसी शरीर हरकत करने की जुर्रत नहीं करेगा।
12 जब तू उन शहरों में रहने लगेगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे दे रहा है तो शायद तुझे ख़बर मिल जाए 13 कि शरीर लोग तेरे दरमियान से उभर आए हैं जो अपने शहर के बाशिंदों को यह कहकर ग़लत राह पर लाए हैं कि आओ, हम दीगर माबूदों की पूजा करें, ऐसे माबूदों की जिनसे तुम वाक़िफ़ नहीं हो। 14 लाज़िम है कि तू दरियाफ़्त करके इसकी तफ़तीश करे और ख़ूब मालूम करे कि क्या हुआ है। अगर साबित हो जाए कि यह घिनौनी बात वाक़ई हुई है 15 तो फिर लाज़िम है कि तू शहर के तमाम बाशिंदों को हलाक करे। उसे रब के सुपुर्द करके सरासर तबाह करना, न सिर्फ़ उसके लोग बल्कि उसके मवेशी भी। 16 शहर का पूरा माले-ग़नीमत चौक में इकट्ठा कर। फिर पूरे शहर को उसके माल समेत रब के लिए मख़सूस करके जला देना। उसे दुबारा कभी न तामीर किया जाए बल्कि उसके खंडरात हमेशा तक रहें।
17 पूरा शहर रब के लिए मख़सूस किया गया है, इसलिए उस की कोई भी चीज़ तेरे पास न पाई जाए। सिर्फ़ इस सूरत में रब का ग़ज़ब ठंडा हो जाएगा, और वह तुझ पर रहम करके अपनी मेहरबानी का इज़हार करेगा और तेरी तादाद बढ़ाएगा, जिस तरह उसने क़सम खाकर तेरे बापदादा से वादा किया है। 18 लेकिन यह सब कुछ इस पर मबनी है कि तू रब अपने ख़ुदा की सुने और उसके उन तमाम अहकाम पर अमल करे जो मैं तुझे आज दे रहा हूँ। वही कुछ कर जो उस की नज़र में दुरुस्त है।
<- इस्तिसना 12इस्तिसना 14 ->