1 और साऊल को भी स्तिफ़नुस का क़त्ल मंज़ूर था।
3 लेकिन साऊल ईसा की जमात को तबाह करने पर तुला हुआ था। उसने घर घर जाकर ईमानदार मर्दो-ख़वातीन को निकाल दिया और उन्हें घसीटकर क़ैदख़ाने में डलवा दिया।
9 वहाँ काफ़ी अरसे से एक आदमी रहता था जिसका नाम शमौन था। वह जादूगर था और उसके हैरतअंगेज़ काम से सामरिया के लोग बहुत मुतअस्सिर थे। उसका अपना दावा था कि मैं कोई ख़ास शख़्स हूँ। 10 इसलिए सब लोग छोटे से लेकर बड़े तक उस पर ख़ास तवज्जुह देते थे। उनका कहना था, ‘यह आदमी वह इलाही क़ुव्वत है जो अज़ीम कहलाती है।’ 11 वह इसलिए उसके पीछे लग गए थे कि उसने उन्हें बड़ी देर से अपने हैरतअंगेज़ कामों से मुतअस्सिर कर रखा था। 12 लेकिन अब लोग फ़िलिप्पुस की अल्लाह की बादशाही और ईसा के नाम के बारे में ख़ुशख़बरी पर ईमान ले आए, और मर्दो-ख़वातीन ने बपतिस्मा लिया। 13 ख़ुद शमौन ने भी ईमान लाकर बपतिस्मा लिया और फ़िलिप्पुस के साथ रहा। जब उसने वह बड़े इलाही निशान और मोजिज़े देखे जो फ़िलिप्पुस के हाथ से ज़ाहिर हुए तो वह हक्का-बक्का रह गया।
14 जब यरूशलम में रसूलों ने सुना कि सामरिया ने अल्लाह का कलाम क़बूल कर लिया है तो उन्होंने पतरस और यूहन्ना को उनके पास भेज दिया। 15 वहाँ पहुँचकर उन्होंने उनके लिए दुआ की कि उन्हें रूहुल-क़ुद्स मिल जाए, 16 क्योंकि अभी रूहुल-क़ुद्स उन पर नाज़िल नहीं हुआ था बल्कि उन्हें सिर्फ़ ख़ुदावंद ईसा के नाम में बपतिस्मा दिया गया था। 17 अब जब पतरस और यूहन्ना ने अपने हाथ उन पर रखे तो उन्हें रूहुल-क़ुद्स मिल गया।
18 शमौन ने देखा कि जब रसूल लोगों पर हाथ रखते हैं तो उनको रूहुल-क़ुद्स मिलता है। इसलिए उसने उन्हें पैसे पेश करके 19 कहा, “मुझे भी यह इख़्तियार दे दें कि जिस पर मैं हाथ रखूँ उसे रूहुल-क़ुद्स मिल जाए।”
20 लेकिन पतरस ने जवाब दिया, “आपके पैसे आपके साथ ग़ारत हो जाएँ, क्योंकि आपने सोचा कि अल्लाह की नेमत पैसों से ख़रीदी जा सकती है। 21 इस ख़िदमत में आपका कोई हिस्सा नहीं है, क्योंकि आपका दिल अल्लाह के सामने ख़ालिस नहीं है। 22 अपनी इस शरारत से तौबा करके ख़ुदावंद से दुआ करें। शायद वह आपको इस इरादे की मुआफ़ी दे जो आपने दिल में रखा है। 23 क्योंकि मैं देखता हूँ कि आप कड़वे पित से भरे और नारास्ती के बंधन में जकड़े हुए हैं।”
24 शमौन ने कहा, “फिर ख़ुदावंद से मेरे लिए दुआ करें कि आपकी मज़कूरा मुसीबतों में से मुझ पर कोई न आए।”
25 ख़ुदावंद के कलाम की गवाही देने और उस की मुनादी करने के बाद पतरस और यूहन्ना वापस यरूशलम के लिए रवाना हुए। रास्ते में उन्होंने सामरिया के बहुत-से देहातों में अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाई।
31 दरबारी ने जवाब दिया, “मैं क्योंकर समझूँ जब तक कोई मेरी राहनुमाई न करे?” और उसने फ़िलिप्पुस को रथ में सवार होने की दावत दी। 32 कलामे-मुक़द्दस का जो हवाला वह पढ़ रहा था यह था,
33 उस की तज़लील की गई और उसे इनसाफ़ न मिला।
34 दरबारी ने फ़िलिप्पुस से पूछा, “मेहरबानी करके मुझे बता दीजिए कि नबी यहाँ किसका ज़िक्र कर रहा है, अपना या किसी और का?” 35 जवाब में फ़िलिप्पुस ने कलामे-मुक़द्दस के इसी हवाले से शुरू करके उसे ईसा के बारे में ख़ुशख़बरी सुनाई। 36 सड़क पर सफ़र करते करते वह एक जगह से गुज़रे जहाँ पानी था। ख़्वाजासरा ने कहा, “देखें, यहाँ पानी है। अब मुझे बपतिस्मा लेने से कौन-सी चीज़ रोक सकती है?” 37 [फ़िलिप्पुस ने कहा, “अगर आप पूरे दिल से ईमान लाएँ तो ले सकते हैं।” उसने जवाब दिया, “मैं ईमान रखता हूँ कि ईसा मसीह अल्लाह का फ़रज़ंद है।”]
38 उसने रथ को रोकने का हुक्म दिया। दोनों पानी में उतर गए और फ़िलिप्पुस ने उसे बपतिस्मा दिया। 39 जब वह पानी से निकल आए तो ख़ुदावंद का रूह फ़िलिप्पुस को उठा ले गया। इसके बाद ख़्वाजासरा ने उसे फिर कभी न देखा, लेकिन उसने ख़ुशी मनाते हुए अपना सफ़र जारी रखा। 40 इतने में फ़िलिप्पुस को अशदूद शहर में पाया गया। वह वहाँ और क़ैसरिया तक के तमाम शहरों में से गुज़रकर अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाता गया।
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