7 क़रीब ही जज़ीरे के सबसे बड़े आदमी की ज़मीनें थीं। उसका नाम पुबलियुस था। उसने अपने घर में हमारा इस्तक़बाल किया और तीन दिन तक हमारी ख़ूब मेहमान-नवाज़ी की। 8 उसका बाप बीमार पड़ा था, वह बुख़ार और पेचिश के मरज़ में मुब्तला था। पौलुस उसके कमरे में गया, उसके लिए दुआ की और अपने हाथ उस पर रख दिए। इस पर मरीज़ को शफ़ा मिली। 9 जब यह हुआ तो जज़ीरे के बाक़ी तमाम मरीज़ों ने पौलुस के पास आकर शफ़ा पाई। 10 नतीजे में उन्होंने कई तरह से हमारी इज़्ज़त की। और जब रवाना होने का वक़्त आ गया तो उन्होंने हमें वह सब कुछ मुहैया किया जो सफ़र के लिए दरकार था।
17 तीन दिन गुज़र गए तो पौलुस ने यहूदी राहनुमाओं को बुलाया। जब वह जमा हुए तो उसने उनसे कहा, “भाइयो, मुझे यरूशलम में गिरिफ़्तार करके रोमियों के हवाले कर दिया गया हालाँकि मैंने अपनी क़ौम या अपने बापदादा के रस्मो-रिवाज के ख़िलाफ़ कुछ नहीं किया था। 18 रोमी मेरा जायज़ा लेकर मुझे रिहा करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें मुझे सज़ाए-मौत देने का कोई सबब न मिला था। 19 लेकिन यहूदियों ने एतराज़ किया और यों मुझे शहनशाह से अपील करने पर मजबूर कर दिया गया, गो मेरा यह इरादा नहीं है कि मैं अपनी क़ौम पर कोई इलज़ाम लगाऊँ। 20 मैंने इसलिए आपको बुलाया ताकि आपसे मिलूँ और गुफ़्तगू करूँ। मैं उस शख़्स की ख़ातिर इन ज़ंजीरों से जकड़ा हुआ हूँ जिसके आने की उम्मीद इसराईल रखता है।”
21 यहूदियों ने उसे जवाब दिया, “हमें यहूदिया से आपके बारे में कोई भी ख़त नहीं मिला। और जितने भाई वहाँ से आए हैं उनमें से एक ने भी आपके बारे में न तो कोई मनफ़ी रिपोर्ट दी न कोई बुरी बात बताई। 22 लेकिन हम आपसे सुनना चाहते हैं कि आपके ख़यालात क्या हैं, क्योंकि हम इतना जानते हैं कि हर जगह लोग इस फ़िरक़े के ख़िलाफ़ बातें कर रहे हैं।”
23 चुनाँचे उन्होंने मिलने का एक दिन मुक़र्रर किया। जब यहूदी दुबारा उस जगह आए जहाँ पौलुस रहता था तो उनकी तादाद बहुत ज़्यादा थी। सुबह से लेकर शाम तक उसने अल्लाह की बादशाही बयान की और उस की गवाही दी। उसने उन्हें मूसा की शरीअत और नबियों के हवालाजात पेश कर करके ईसा के बारे में क़ायल करने की कोशिश की। 24 कुछ तो क़ायल हो गए, लेकिन बाक़ी ईमान न लाए। 25 उनमें नाइत्तफ़ाक़ी पैदा हुई तो वह चले गए। जब वह जाने लगे तो पौलुस ने उनसे कहा, “रूहुल-क़ुद्स ने यसायाह नबी की मारिफ़त आपके बापदादा से ठीक कहा कि
26 जा, इस क़ौम को बता,
27 क्योंकि इस क़ौम का दिल बेहिस हो गया है।
28 पौलुस ने अपनी बात इन अलफ़ाज़ से ख़त्म की, “अब जान लें कि अल्लाह की तरफ़ से यह नजात ग़ैरयहूदियों को भी पेश की गई है और वह सुनेंगे भी!”
29 [जब उसने यह कहा तो यहूदी आपस में बहस-मुबाहसा करते हुए चले गए।]
30 पौलुस पूरे दो साल अपने किराए के घर में रहा। जो भी उसके पास आया उसका उसने इस्तक़बाल करके 31 दिलेरी से अल्लाह की बादशाही की मुनादी की और ख़ुदावंद ईसा मसीह की तालीम दी। और किसी ने मुदाख़लत न की।
<- आमाल 27