7 कई दिन हम आहिस्ता आहिस्ता चले और बड़ी मुश्किल से कनिदुस के क़रीब पहुँचे। लेकिन मुख़ालिफ़ हवा की वजह से हमने जज़ीराए-क्रेते की तरफ़ रुख़ किया और सलमोने शहर के क़रीब से गुज़रकर क्रेते की आड़ में सफ़र किया। 8 लेकिन वहाँ हम साहिल के साथ साथ चलते हुए बड़ी मुश्किल से एक जगह पहुँचे जिसका नाम ‘हसीन- बंदर’ था। शहर लसया उसके क़रीब वाक़े था।
9 बहुत वक़्त ज़ाया हो गया था और अब बहरी सफ़र ख़तरनाक भी हो चुका था, क्योंकि कफ़्फ़ारा का दिन (तक़रीबन नवंबर के शुरू में) गुज़र चुका था। इसलिए पौलुस ने उन्हें आगाह किया, 10 “हज़रात, मुझे पता है कि आगे जाकर हम पर बड़ी मुसीबत आएगी। हमें जहाज़, मालो-असबाब और जानों का नुक़सान उठाना पड़ेगा।” 11 लेकिन क़ैदियों पर मुक़र्रर रोमी अफ़सर ने उस की बात नज़रंदाज़ करके जहाज़ के नाख़ुदा और मालिक की बात मानी। 12 चूँकि ‘हसीन- बंदर’ में जहाज़ को सर्दियों के मौसम के लिए रखना मुश्किल था इसलिए अकसर लोग आगे फ़ेनिक्स तक पहुँचकर सर्दियों का मौसम गुज़ारना चाहते थे। क्योंकि फ़ेनिक्स जज़ीराए-क्रेते की अच्छी बंदरगाह थी जो सिर्फ़ जुनूब-मग़रिब और शिमाल-मग़रिब की तरफ़ खुली थी।
21 काफ़ी देर से दिल नहीं चाहता था कि खाना खाया जाए। आख़िरकार पौलुस ने लोगों के बीच में खड़े होकर कहा, “हज़रात, बेहतर होता कि आप मेरी बात मानकर क्रेते से रवाना न होते। फिर आप इस मुसीबत और ख़सारे से बच जाते। 22 लेकिन अब मैं आपको नसीहत करता हूँ कि हौसला रखें। आपमें से एक भी नहीं मरेगा। सिर्फ़ जहाज़ तबाह हो जाएगा। 23 क्योंकि पिछली रात एक फ़रिश्ता मेरे पास आ खड़ा हुआ, उसी ख़ुदा का फ़रिश्ता जिसका मैं बंदा हूँ और जिसकी इबादत मैं करता हूँ। 24 उसने कहा, ‘पौलुस, मत डर। लाज़िम है कि तुझे शहनशाह के सामने पेश किया जाए। और अल्लाह अपनी मेहरबानी से तेरे वास्ते तमाम हमसफ़रों की जानें भी बचाए रखेगा।’ 25 इसलिए हौसला रखें, क्योंकि मेरा अल्लाह पर ईमान है कि ऐसा ही होगा जिस तरह उसने फ़रमाया है। 26 लेकिन जहाज़ को किसी जज़ीरे के साहिल पर चढ़ जाना है।”
27 तूफ़ान की चौधवीं रात जहाज़ बहीराए-अदरिया पर बहे चला जा रहा था कि तक़रीबन आधी रात को मल्लाहों ने महसूस किया कि साहिल नज़दीक आ रहा है। 28 पानी की गहराई की पैमाइश करके उन्हें मालूम हुआ कि वह 120 फ़ुट थी। थोड़ी देर के बाद उस की गहराई 90 फ़ुट हो चुकी थी। 29 वह डर गए, क्योंकि उन्होंने अंदाज़ा लगाया कि ख़तरा है कि हम साहिल पर पड़ी चट्टानों से टकरा जाएँ। इसलिए उन्होंने जहाज़ के पिछले हिस्से से चार लंगर डालकर दुआ की कि दिन जल्दी से चढ़ जाए। 30 उस वक़्त मल्लाहों ने जहाज़ से फ़रार होने की कोशिश की। उन्होंने यह बहाना बनाकर कि हम जहाज़ के सामने से भी लंगर डालना चाहते हैं बचाव-कश्ती पानी में उतरने दी। 31 इस पर पौलुस ने क़ैदियों पर मुक़र्रर अफ़सर और फ़ौजियों से कहा, “अगर यह आदमी जहाज़ पर न रहें तो आप सब मर जाएंगे।” 32 चुनाँचे उन्होंने बचाव-कश्ती के रस्से को काटकर उसे खुला छोड़ दिया।
33 पौ फटनेवाली थी कि पौलुस ने सबको समझाया कि वह कुछ खा लें। उसने कहा, “आपने चौदह दिन से इज़तिराब की हालत में रहकर कुछ नहीं खाया। 34 अब मेहरबानी करके कुछ खा लें। यह आपके बचाव के लिए ज़रूरी है, क्योंकि आप न सिर्फ़ बच जाएंगे बल्कि आपका एक बाल भी बीका नहीं होगा।” 35 यह कहकर उसने कुछ रोटी ली और उन सबके सामने अल्लाह से शुक्रगुज़ारी की दुआ की। फिर उसे तोड़कर खाने लगा। 36 इससे दूसरों की हौसलाअफ़्ज़ाई हुई और उन्होंने भी कुछ खाना खाया। 37 जहाज़ पर हम 276 अफ़राद थे। 38 जब सब सेर हो गए तो गंदुम को भी समुंदर में फेंका गया ताकि जहाज़ और हलका हो जाए।
42 फ़ौजी क़ैदियों को क़त्ल करना चाहते थे ताकि वह जहाज़ से तैरकर फ़रार न हो सकें। 43 लेकिन उन पर मुक़र्रर अफ़सर पौलुस को बचाना चाहता था, इसलिए उसने उन्हें ऐसा करने न दिया। उसने हुक्म दिया कि पहले वह सब जो तैर सकते हैं पानी में छलाँग लगाकर किनारे तक पहुँचें। 44 बाक़ियों को तख़्तों या जहाज़ के किसी टुकड़े को पकड़कर पहुँचना था। यों सब सहीह-सलामत साहिल तक पहुँचे।
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