7 यह सिलसिला चार साल जारी रहा। एक दिन अबीसलूम ने दाऊद से बात की, “मुझे हबरून जाने की इजाज़त दीजिए, क्योंकि मैंने रब से ऐसी मन्नत मानी है जिसके लिए ज़रूरी है कि हबरून जाऊँ। 8 क्योंकि जब मैं जसूर में था तो मैंने क़सम खाकर वादा किया था, ‘ऐ रब, अगर तू मुझे यरूशलम वापस लाए तो मैं हबरून में तेरी परस्तिश करूँगा’।” 9 बादशाह ने जवाब दिया, “ठीक है। सलामती से जाएँ।”
10 लेकिन हबरून पहुँचकर अबीसलूम ने ख़ुफ़िया तौर पर अपने क़ासिदों को इसराईल के तमाम क़बायली इलाक़ों में भेज दिया। जहाँ भी वह गए उन्होंने एलान किया, “ज्योंही नरसिंगे की आवाज़ सुनाई दे आप सबको कहना है, ‘अबीसलूम हबरून में बादशाह बन गया है’!” 11 अबीसलूम के साथ 200 मेहमान यरूशलम से हबरून आए थे। वह बेलौस थे, और उन्हें इसके बारे में इल्म ही न था।
12 जब हबरून में क़ुरबानियाँ चढ़ाई जा रही थीं तो अबीसलूम ने दाऊद के एक मुशीर को बुलाया जो जिलोह का रहनेवाला था। उसका नाम अख़ीतुफ़ल जिलोनी था। वह आया और अबीसलूम के साथ मिल गया। यों अबीसलूम के पैरोकारों में इज़ाफ़ा होता गया और उस की साज़िशें ज़ोर पकड़ने लगीं।
16 बादशाह अपने पूरे ख़ानदान के साथ रवाना हुआ। सिर्फ़ दस दाश्ताएँ महल को सँभालने के लिए पीछे रह गईं। 17 जब दाऊद अपने तमाम लोगों के साथ शहर के आख़िरी घर तक पहुँचा तो वह रुक गया। 18 उसने अपने तमाम पैरोकारों को आगे निकलने दिया, पहले शाही दस्ते करेतीओ-फ़लेती को, फिर उन 600 जाती आदमियों को जो उसके साथ जात से यहाँ आए थे और आख़िर में बाक़ी तमाम लोगों को। 19 जब फ़िलिस्ती शहर जात का आदमी इत्ती दाऊद के सामने से गुज़रने लगा तो बादशाह उससे मुख़ातिब हुआ, “आप हमारे साथ क्यों जाएँ? नहीं, वापस चले जाएँ और नए बादशाह के साथ रहें। आप तो ग़ैरमुल्की हैं और इसलिए इसराईल में रहते हैं कि आपको जिलावतन कर दिया गया है। 20 आपको यहाँ आए थोड़ी देर हुई है, तो क्या मुनासिब है कि आपको दुबारा मेरी वजह से कभी इधर कभी इधर घूमना पड़े? क्या पता है कि मुझे कहाँ कहाँ जाना पड़े। इसलिए वापस चले जाएँ, और अपने हमवतनों को भी अपने साथ ले जाएँ। रब आप पर अपनी मेहरबानी और वफ़ादारी का इज़हार करे।”
21 लेकिन इत्ती ने एतराज़ किया, “मेरे आक़ा, रब और बादशाह की हयात की क़सम, मैं आपको कभी नहीं छोड़ सकता, ख़ाह मुझे अपनी जान भी क़ुरबान करनी पड़े।” 22 तब दाऊद मान गया। “चलो, फिर आगे निकलें!” चुनाँचे इत्ती अपने लोगों और उनके ख़ानदानों के साथ आगे निकला। 23 आख़िर में दाऊद ने वादीए-क़िदरोन को पार करके रेगिस्तान की तरफ़ रुख़ किया। गिर्दो-नवाह के तमाम लोग बादशाह को उसके पैरोकारों समेत रवाना होते हुए देखकर फूट फूटकर रोने लगे।
24 सदोक़ इमाम और तमाम लावी भी दाऊद के साथ शहर से निकल आए थे। लावी अहद का संदूक़ उठाए चल रहे थे। अब उन्होंने उसे शहर से बाहर ज़मीन पर रख दिया, और अबियातर वहाँ क़ुरबानियाँ चढ़ाने लगा। लोगों के शहर से निकलने के पूरे अरसे के दौरान वह क़ुरबानियाँ चढ़ाता रहा। 25 फिर दाऊद सदोक़ से मुख़ातिब हुआ, “अल्लाह का संदूक़ शहर में वापस ले जाएँ। अगर रब की नज़रे-करम मुझ पर हुई तो वह किसी दिन मुझे शहर में वापस लाकर अहद के संदूक़ और उस की सुकूनतगाह को दुबारा देखने की इजाज़त देगा। 26 लेकिन अगर वह फ़रमाए कि तू मुझे पसंद नहीं है, तो मैं यह भी बरदाश्त करने के लिए तैयार हूँ। वह मेरे साथ वह कुछ करे जो उसे मुनासिब लगे।
27 जहाँ तक आपका ताल्लुक़ है, अपने बेटे अख़ीमाज़ को साथ लेकर सहीह-सलामत शहर में वापस चले जाएँ। अबियातर और उसका बेटा यूनतन भी साथ जाएँ। 28 मैं ख़ुद रेगिस्तान में दरियाए-यरदन की उस जगह रुक जाऊँगा जहाँ हम आसानी से दरिया को पार कर सकेंगे। वहाँ आप मुझे यरूशलम के हालात के बारे में पैग़ाम भेज सकते हैं। मैं आपके इंतज़ार में रहूँगा।”
29 चुनाँचे सदोक़ और अबियातर अहद का संदूक़ शहर में वापस ले जाकर वहीं रहे। 30 दाऊद रोते रोते ज़ैतून के पहाड़ पर चढ़ने लगा। उसका सर ढाँपा हुआ था, और वह नंगे पाँव चल रहा था। बाक़ी सबके सर भी ढाँपे हुए थे, सब रोते रोते चढ़ने लगे। 31 रास्ते में दाऊद को इत्तला दी गई, “अख़ीतुफ़ल भी अबीसलूम के साथ मिल गया है।” यह सुनकर दाऊद ने दुआ की, “ऐ रब, बख़्श दे कि अख़ीतुफ़ल के मशवरे नाकाम हो जाएँ।”
32 चलते चलते दाऊद पहाड़ की चोटी पर पहुँच गया जहाँ अल्लाह की परस्तिश की जाती थी। वहाँ हूसी अरकी उससे मिलने आया। उसके कपड़े फटे हुए थे, और सर पर ख़ाक थी। 33 दाऊद ने उससे कहा, “अगर आप मेरे साथ जाएँ तो आप सिर्फ़ बोझ का बाइस बनेंगे। 34 बेहतर है कि आप लौटकर शहर में जाएँ और अबीसलूम से कहें, ‘ऐ बादशाह, मैं आपकी ख़िदमत में हाज़िर हूँ। पहले मैं आपके बाप की ख़िदमत करता था, और अब आप ही की ख़िदमत करूँगा।’ अगर आप ऐसा करें तो आप अख़ीतुफ़ल के मशवरे नाकाम बनाने में मेरी बड़ी मदद करेंगे। 35-36 आप अकेले नहीं होंगे। दोनों इमाम सदोक़ और अबियातर भी यरूशलम में पीछे रह गए हैं। दरबार में जो भी मनसूबे बाँधे जाएंगे वह उन्हें बताएँ। सदोक़ का बेटा अख़ीमाज़ और अबियातर का बेटा यूनतन मुझे हर ख़बर पहुँचाएँगे, क्योंकि वह भी शहर में ठहरे हुए हैं।”
37 तब दाऊद का दोस्त हूसी वापस चला गया। वह उस वक़्त पहुँच गया जब अबीसलूम यरूशलम में दाख़िल हो रहा था।
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