11 आख़िरकार शाम के बादशाह ने बहुत रंजीदा होकर अपने अफ़सरों को बुलाया और पूछा, “क्या कोई मुझे बता सकता है कि हममें से कौन इसराईल के बादशाह का साथ देता है?” 12 किसी अफ़सर ने जवाब दिया, “मेरे आक़ा और बादशाह, हममें से कोई नहीं है। मसला यह है कि इसराईल का नबी इलीशा इसराईल के बादशाह को वह बातें भी बता देता है जो आप अपने सोने के कमरे में बयान करते हैं।” 13 बादशाह ने हुक्म दिया, “जाएँ, उसका पता करें ताकि हम अपने फ़ौजियों को भेजकर उसे पकड़ लें।”
18 जब दुश्मन इलीशा की तरफ़ बढ़ने लगा तो उसने दुआ की, “ऐ रब, इनको अंधा कर दे!” रब ने इलीशा की सुनी और उन्हें अंधा कर दिया। 19 फिर इलीशा उनके पास गया और कहा, “यह रास्ता सहीह नहीं। आप ग़लत शहर के पास पहुँच गए हैं। मेरे पीछे हो लें तो मैं आपको उस आदमी के पास पहुँचा दूँगा जिसे आप ढूँड रहे हैं।” यह कहकर वह उन्हें सामरिया ले गया।
20 जब वह शहर में दाख़िल हुए तो इलीशा ने दुआ की, “ऐ रब, फ़ौजियों की आँखें खोल दे ताकि वह देख सकें।” तब रब ने उनकी आँखें खोल दीं, और उन्हें मालूम हुआ कि हम सामरिया में फँस गए हैं।
21 जब इसराईल के बादशाह ने अपने दुश्मनों को देखा तो उसने इलीशा से पूछा, “मेरे बाप, क्या मैं उन्हें मार दूँ? क्या मैं उन्हें मार दूँ?” 22 लेकिन इलीशा ने मना किया, “ऐसा मत करें। क्या आप अपने जंगी क़ैदियों को मार देते हैं? नहीं, उन्हें खाना खिलाएँ, पानी पिलाएँ और फिर उनके मालिक के पास वापस भेज दें।”
23 चुनाँचे बादशाह ने उनके लिए बड़ी ज़ियाफ़त का एहतमाम किया और खाने-पीने से फ़ारिग़ होने पर उन्हें उनके मालिक के पास वापस भेज दिया। इसके बाद इसराईल पर शाम की तरफ़ से लूट-मार के छापे बंद हो गए।
26 एक दिन इसराईल का बादशाह यूराम शहर की फ़सील पर सैर कर रहा था तो एक औरत ने उससे इलतमास की, “ऐ मेरे आक़ा और बादशाह, मेरी मदद कीजिए।” 27 बादशाह ने जवाब दिया, “अगर रब आपकी मदद नहीं करता तो मैं किस तरह आपकी मदद करूँ? न मैं गाहने की जगह जाकर आपको अनाज दे सकता हूँ, न अंगूर का रस निकालने की जगह जाकर आपको रस पहुँचा सकता हूँ। 28 फिर भी मुझे बताएँ, मसला क्या है?” औरत बोली, “इस औरत ने मुझसे कहा था, ‘आएँ, आज आप अपने बेटे को क़ुरबान करें ताकि हम उसे खा लें, तो फिर कल हम मेरे बेटे को खा लेंगे।’ 29 चुनाँचे हमने मेरे बेटे को पकाकर खा लिया। अगले दिन मैंने उससे कहा, ‘अब अपने बेटे को दे दें ताकि उसे भी खा लें।’ लेकिन उसने उसे छुपाए रखा।”
30 यह सुनकर बादशाह ने रंजिश के मारे अपने कपड़े फाड़ डाले। चूँकि वह अभी तक फ़सील पर खड़ा था इसलिए सब लोगों को नज़र आया कि कपड़ों के नीचे वह टाट पहने हुए था। 31 उसने पुकारा, “अल्लाह मुझे सख़्त सज़ा दे अगर मैं इलीशा बिन साफ़त का आज ही सर क़लम न करूँ!”
32 उसने एक आदमी को इलीशा के पास भेजा और ख़ुद भी उसके पीछे चल पड़ा। इलीशा उस वक़्त घर में था, और शहर के बुज़ुर्ग उसके पास बैठे थे। बादशाह का क़ासिद अभी रास्ते में था कि इलीशा बुज़ुर्गों से कहने लगा, “अब ध्यान करें, इस क़ातिल बादशाह ने किसी को मेरा सर क़लम करने के लिए भेज दिया है। उसे अंदर आने न दें बल्कि दरवाज़े पर कुंडी लगाएँ। उसके पीछे पीछे उसके मालिक के क़दमों की आहट भी सुनाई दे रही है।”
33 इलीशा अभी बात कर ही रहा था कि क़ासिद पहुँच गया और उसके पीछे बादशाह भी। बादशाह बोला, “रब ही ने हमें इस मुसीबत में फँसा दिया है। मैं मज़ीद उस की मदद के इंतज़ार में क्यों रहूँ?”
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