5 जब हिज़क़ियाह के अफ़सरों ने यसायाह को बादशाह का पैग़ाम पहुँचाया 6 तो नबी ने जवाब दिया, “अपने आक़ा को बता देना कि रब फ़रमाता है, ‘उन धमकियों से ख़ौफ़ मत खा जो असूरी बादशाह के मुलाज़िमों ने मेरी इहानत करके दी हैं। 7 देख, मैं उसका इरादा बदल दूँगा। वह अफ़वाह सुनकर इतना मुज़तरिब हो जाएगा कि अपने ही मुल्क वापस चला जाएगा। वहाँ मैं उसे तलवार से मरवा दूँगा’।”
9 फिर सनहेरिब को इत्तला मिली, “एथोपिया का बादशाह तिरहाक़ा आपसे लड़ने आ रहा है।” तब उसने अपने क़ासिदों को दुबारा यरूशलम भेज दिया ताकि हिज़क़ियाह को पैग़ाम पहुँचाएँ, 10 “जिस देवता पर तुम भरोसा रखते हो उससे फ़रेब न खाओ जब वह कहता है कि यरूशलम कभी असूरी बादशाह के क़ब्ज़े में नहीं आएगा। 11 तुम तो सुन चुके हो कि असूर के बादशाहों ने जहाँ भी गए क्या कुछ किया है। हर मुल्क को उन्होंने मुकम्मल तौर पर तबाह कर दिया है। तो फिर तुम किस तरह बच जाओगे? 12 क्या जौज़ान, हारान और रसफ़ के देवता उनकी हिफ़ाज़त कर पाए? क्या मुल्के-अदन में तिलस्सार के बाशिंदे बच सके? नहीं, कोई भी देवता उनकी मदद न कर सका जब मेरे बापदादा ने उन्हें तबाह किया। 13 ध्यान दो, अब हमात, अरफ़ाद, सिफ़रवायम शहर, हेना और इव्वा के बादशाह कहाँ हैं?”
14 ख़त मिलने पर हिज़क़ियाह ने उसे पढ़ लिया और फिर रब के घर के सहन में गया। ख़त को रब के सामने बिछाकर 15 उसने रब से दुआ की,
23 अपने क़ासिदों के ज़रीए तूने रब की इहानत की है। तू डींगें मारकर कहता है, ‘मैं अपने बेशुमार रथों से पहाड़ों की चोटियों और लुबनान की इंतहा तक चढ़ गया हूँ। मैं देवदार के बड़े बड़े और जूनीपर के बेहतरीन दरख़्तों को काटकर लुबनान के दूरतरीन कोनों तक, उसके सबसे घने जंगल तक पहुँच गया हूँ। 24 मैंने ग़ैरमुल्कों में कुएँ खुदवाकर उनका पानी पी लिया है। मेरे तल्वों तले मिसर की तमाम नदियाँ ख़ुश्क हो गईं।’
25 ऐ असूरी बादशाह, क्या तूने नहीं सुना कि बड़ी देर से मैंने यह सब कुछ मुक़र्रर किया? क़दीम ज़माने में ही मैंने इसका मनसूबा बाँध लिया, और अब मैं इसे वुजूद में लाया। मेरी मरज़ी थी कि तू क़िलाबंद शहरों को ख़ाक में मिलाकर पत्थर के ढेरों में बदल दे। 26 इसी लिए उनके बाशिंदों की ताक़त जाती रही, वह घबराए और शरमिंदा हुए। वह घास की तरह कमज़ोर थे, छत पर उगनेवाली उस हरियाली की मानिंद जो थोड़ी देर के लिए फलती-फूलती तो है, लेकिन लू चलते वक़्त एकदम मुरझा जाती है। 27 मैं तो तुझसे ख़ूब वाक़िफ़ हूँ। मुझे मालूम है कि तू कहाँ ठहरा हुआ है, और तेरा आना जाना मुझसे पोशीदा नहीं रहता। मुझे पता है कि तू मेरे ख़िलाफ़ कितने तैश में आ गया है। 28 तेरा तैश और ग़ुरूर देखकर मैं तेरी नाक में नकेल और तेरे मुँह में लगाम डालकर तुझे उस रास्ते पर से वापस घसीट ले जाऊँगा जिस पर से तू यहाँ आ पहुँचा है।
29 ऐ हिज़क़ियाह, मैं इस निशान से तुझे तसल्ली दिलाऊँगा कि इस साल और आनेवाले साल तुम वह कुछ खाओगे जो खेतों में ख़ुद बख़ुद उगेगा। लेकिन तीसरे साल तुम बीज बोकर फ़सलें काटोगे और अंगूर के बाग़ लगाकर उनका फल खाओगे। 30 यहूदाह के बचे हुए बाशिंदे एक बार फिर जड़ पकड़कर फल लाएँगे। 31 क्योंकि यरूशलम से क़ौम का बक़िया निकल आएगा, और कोहे-सिय्यून का बचा-खुचा हिस्सा दुबारा मुल्क में फैल जाएगा। रब्बुल-अफ़वाज की ग़ैरत यह कुछ सरंजाम देगी।
32 जहाँ तक असूरी बादशाह का ताल्लुक़ है रब फ़रमाता है कि वह इस शहर में दाख़िल नहीं होगा। वह एक तीर तक उसमें नहीं चलाएगा। न वह ढाल लेकर उस पर हमला करेगा, न शहर की फ़सील के साथ मिट्टी का ढेर लगाएगा। 33 जिस रास्ते से बादशाह यहाँ आया उसी रास्ते पर से वह अपने मुल्क वापस चला जाएगा। इस शहर में वह घुसने नहीं पाएगा। यह रब का फ़रमान है। 34 क्योंकि मैं अपनी और अपने ख़ादिम दाऊद की ख़ातिर इस शहर का दिफ़ा करके इसे बचाऊँगा।”
35 उसी रात रब का फ़रिश्ता निकल आया और असूरी लशकरगाह में से गुज़रकर 1,85,000 फ़ौजियों को मार डाला। जब लोग सुबह-सवेरे उठे तो चारों तरफ़ लाशें ही लाशें नज़र आईं।
36 यह देखकर सनहेरिब अपने ख़ैमे उखाड़कर अपने मुल्क वापस चला गया। नीनवा शहर पहुँचकर वह वहाँ ठहर गया। 37 एक दिन जब वह अपने देवता निसरूक के मंदिर में पूजा कर रहा था तो उसके बेटों अद्रम्मलिक और शराज़र ने उसे तलवार से क़त्ल कर दिया और फ़रार होकर मुल्के-अरारात में पनाह ली। फिर उसका बेटा असर्हद्दून तख़्तनशीन हुआ।
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