3 यह सुनकर यहूसफ़त घबरा गया। उसने रब से राहनुमाई माँगने का फ़ैसला करके एलान किया कि तमाम यहूदाह रोज़ा रखे। 4 यहूदाह के तमाम शहरों से लोग यरूशलम आए ताकि मिलकर मदद के लिए रब से दुआ माँगें। 5 वह रब के घर के नए सहन में जमा हुए और यहूसफ़त ने सामने आकर 6 दुआ की,
10 अब अम्मोन, मोआब और पहाड़ी मुल्क सईर की हरकतों को देख! जब इसराईल मिसर से निकला तो तूने उसे इन क़ौमों पर हमला करने और इनके इलाक़े में से गुज़रने की इजाज़त न दी। इसराईल को मुतबादिल रास्ता इख़्तियार करना पड़ा, क्योंकि उसे इन्हें हलाक करने की इजाज़त न मिली। 11 अब ध्यान दे कि यह बदले में क्या कर रहे हैं। यह हमें उस मौरूसी ज़मीन से निकालना चाहते हैं जो तूने हमें दी थी। 12 ऐ हमारे ख़ुदा, क्या तू उनकी अदालत नहीं करेगा? हम तो इस बड़ी फ़ौज के मुक़ाबले में बेबस हैं। इसके हमले से बचने का रास्ता हमें नज़र नहीं आता, लेकिन हमारी आँखें मदद के लिए तुझ पर लगी हैं।”
13 यहूदाह के तमाम मर्द, औरतें और बच्चे वहाँ रब के हुज़ूर खड़े रहे। 14 तब रब का रूह एक लावी बनाम यहज़ियेल पर नाज़िल हुआ जब वह जमात के दरमियान खड़ा था। यह आदमी आसफ़ के ख़ानदान का था, और उसका पूरा नाम यहज़ियेल बिन ज़करियाह बिन बिनायाह बिन यइयेल बिन मत्तनियाह था। 15 उसने कहा, “यहूदाह और यरूशलम के लोगो, मेरी बात सुनें! ऐ बादशाह, आप भी इस पर ध्यान दें। रब फ़रमाता है कि डरो मत, और इस बड़ी फ़ौज को देखकर मत घबराना। क्योंकि यह जंग तुम्हारा नहीं बल्कि मेरा मामला है। 16 कल उनके मुक़ाबले के लिए निकलो। उस वक़्त वह दर्राए-सीस से होकर तुम्हारी तरफ़ बढ़ रहे होंगे। तुम्हारा उनसे मुक़ाबला उस वादी के सिरे पर होगा जहाँ यरुएल का रेगिस्तान शुरू होता है। 17 लेकिन तुम्हें लड़ने की ज़रूरत नहीं होगी। बस दुश्मन के आमने-सामने खड़े होकर रुक जाओ और देखो कि रब किस तरह तुम्हें छुटकारा देगा। लिहाज़ा मत डरो, ऐ यहूदाह और यरूशलम, और दहशत मत खाओ। कल उनका सामना करने के लिए निकलो, क्योंकि रब तुम्हारे साथ होगा।”
18 यह सुनकर यहूसफ़त मुँह के बल झुक गया। यहूदाह और यरूशलम के तमाम लोगों ने भी औंधे मुँह झुककर रब की परस्तिश की। 19 फिर क़िहात और क़ोरह के ख़ानदानों के कुछ लावी खड़े होकर बुलंद आवाज़ से रब इसराईल के ख़ुदा की हम्दो-सना करने लगे।
22 उस वक़्त रब हमलाआवर फ़ौज के मुख़ालिफ़ों को खड़ा कर चुका था। अब जब यहूदाह के मर्द हम्द के गीत गाने लगे तो वह ताक में से निकलकर बढ़ती हुई फ़ौज पर टूट पड़े और उसे शिकस्त दी। 23 फिर अम्मोनियों और मोआबियों ने मिलकर पहाड़ी मुल्क सईर के मर्दों पर हमला किया ताकि उन्हें मुकम्मल तौर पर ख़त्म कर दें। जब यह हलाक हुए तो अम्मोनी और मोआबी एक दूसरे को मौत के घाट उतारने लगे। 24 यहूदाह के फ़ौजियों को इसका इल्म नहीं था। चलते चलते वह उस मक़ाम तक पहुँच गए जहाँ से रेगिस्तान नज़र आता है। वहाँ वह दुश्मन को तलाश करने लगे, लेकिन लाशें ही लाशें ज़मीन पर बिखरी नज़र आईं। एक भी दुश्मन नहीं बचा था। 25 यहूसफ़त और उसके लोगों के लिए सिर्फ़ दुश्मन को लूटने का काम बाक़ी रह गया था। कसरत के जानवर, क़िस्म क़िस्म का सामान, कपड़े और कई क़ीमती चीज़ें थीं। इतना सामान था कि वह उसे एक वक़्त में उठाकर अपने साथ ले जा नहीं सकते थे। सारा माल जमा करने में तीन दिन लगे।
26 चौथे दिन वह क़रीब की एक वादी में जमा हुए ताकि रब की तारीफ़ करें। उस वक़्त से वादी का नाम ‘तारीफ़ की वादी’ पड़ गया। 27 इसके बाद यहूदाह और यरूशलम के तमाम मर्द यहूसफ़त की राहनुमाई में ख़ुशी मनाते हुए यरूशलम वापस आए। क्योंकि रब ने उन्हें दुश्मन की शिकस्त से ख़ुशी का सुनहरा मौक़ा अता किया था। 28 सितार, सरोद और तुरम बजाते हुए वह यरूशलम में दाख़िल हुए और रब के घर के पास जा पहुँचे। 29 जब इर्दगिर्द के ममालिक ने सुना कि किस तरह रब इसराईल के दुश्मनों से लड़ा है तो उनमें अल्लाह की दहशत फैल गई। 30 उस वक़्त से यहूसफ़त सुकून से हुकूमत कर सका, क्योंकि अल्लाह ने उसे चारों तरफ़ के ममालिक के हमलों से महफ़ूज़ रखा था।
34 बाक़ी जो कुछ यहूसफ़त की हुकूमत के दौरान हुआ वह शुरू से लेकर आख़िर तक याहू बिन हनानी की तारीख़ में बयान किया गया है। बाद में सब कुछ ‘शाहाने-इसराईल की तारीख़’ की किताब में दर्ज किया गया।
35 बाद में यहूदाह के बादशाह यहूसफ़त ने इसराईल के बादशाह अख़ज़ियाह से इत्तहाद किया, गो उसका रवैया बेदीनी का था। 36 दोनों ने मिलकर तिजारती जहाज़ों का ऐसा बेड़ा बनवाया जो तरसीस तक पहुँच सके। जब यह जहाज़ बंदरगाह अस्यून-जाबर में तैयार हुए 37 तो मरेसा का रहनेवाला इलियज़र बिन दूदावाहू ने यहूसफ़त के ख़िलाफ़ पेशगोई की, “चूँकि आप अख़ज़ियाह के साथ मुत्तहिद हो गए हैं इसलिए रब आपका काम तबाह कर देगा!” और वाक़ई, यह जहाज़ कभी अपनी मनज़िले-मक़सूद तरसीस तक पहुँच न सके, क्योंकि वह पहले ही टुकड़े टुकड़े हो गए।
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