2 जवाब में आसा ने शाम के बादशाह बिन-हदद के पास वफ़द भेजा जिसका दारुल-हुकूमत दमिश्क़ था। उसने रब के घर और शाही महल के ख़ज़ानों की सोना-चाँदी वफ़द के सुपुर्द करके दमिश्क़ के बादशाह को पैग़ाम भेजा, 3 “मेरा आपके साथ अहद है जिस तरह मेरे बाप का आपके बाप के साथ अहद था। गुज़ारिश है कि आप सोने-चाँदी का यह तोह्फ़ा क़बूल करके इसराईल के बादशाह बाशा के साथ अपना अहद मनसूख़ कर दें ताकि वह मेरे मुल्क से निकल जाए।”
4 बिन-हदद मुत्तफ़िक़ हुआ। उसने अपने फ़ौजी अफ़सरों को इसराईल के शहरों पर हमला करने के लिए भेज दिया तो उन्होंने ऐय्यून, दान, अबील-मायम और नफ़ताली के उन तमाम शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया जिनमें शाही गोदाम थे। 5 जब बाशा को इसकी ख़बर मिली तो उसने रामा की क़िलाबंदी करने से बाज़ आकर अपनी यह मुहिम छोड़ दी।
6 फिर आसा बादशाह ने यहूदाह के तमाम मर्दों की भरती करके उन्हें रामा भेज दिया ताकि वह उन तमाम पत्थरों और शहतीरों को उठाकर ले जाएँ जिनसे बाशा बादशाह रामा की क़िलाबंदी करना चाहता था। इस सामान से आसा ने जिबा और मिसफ़ाह शहरों की क़िलाबंदी की।
11 बाक़ी जो कुछ शुरू से लेकर आख़िर तक आसा की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहाने-यहूदाहो-इसराईल की तारीख़’ की किताब में बयान किया गया है। 12 हुकूमत के 39वें साल में उसके पाँवों को बीमारी लग गई। गो उस की बुरी हालत थी तो भी उसने रब को तलाश न किया बल्कि सिर्फ़ डाक्टरों के पीछे पड़ गया। 13 हुकूमत के 41वें साल में आसा मरकर अपने बापदादा से जा मिला। 14 उसने यरूशलम के उस हिस्से में जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है अपने लिए चट्टान में क़ब्र तराशी थी। अब उसे इसमें दफ़न किया गया। जनाज़े के वक़्त लोगों ने लाश को एक पलंग पर लिटा दिया जो बलसान के तेल और मुख़्तलिफ़ क़िस्म के ख़ुशबूदार मरहमों से ढाँपा गया था। फिर उसके एहतराम में लकड़ी का ज़बरदस्त ढेर जलाया गया।
<- 2 तवारीख़ 152 तवारीख़ 17 ->