1 यह सुनकर क़िरियत-यारीम के मर्द आए और रब का संदूक़ अपने शहर में ले गए। वहाँ उन्होंने उसे अबीनदाब के घर में रख दिया जो पहाड़ी पर था। अबीनदाब के बेटे इलियज़र को मख़सूस किया गया ताकि वह अहद के संदूक़ की पहरादारी करे।
4 इसराईलियों ने उस की बात मान ली। वह बाल और अस्तारात के बुतों को फेंककर सिर्फ़ रब की ख़िदमत करने लगे। 5 तब समुएल ने एलान किया, “पूरे इसराईल को मिसफ़ाह में जमा करें तो मैं वहाँ रब से दुआ करके आपकी सिफ़ारिश करूँगा।” 6 चुनाँचे वह सब मिसफ़ाह में जमा हुए। तौबा का इज़हार करके उन्होंने कुएँ से पानी निकालकर रब के हुज़ूर उंडेल दिया। साथ साथ उन्होंने पूरा दिन रोज़ा रखा और इक़रार किया, “हमने रब का गुनाह किया है।” वहाँ मिसफ़ाह में समुएल ने इसराईलियों के लिए कचहरी लगाई।
7 फ़िलिस्ती हुक्मरानों को पता चला कि इसराईली मिसफ़ाह में जमा हुए हैं तो वह उनसे लड़ने के लिए आए। यह सुनकर इसराईली सख़्त घबरा गए 8 और समुएल से मिन्नत की, “दुआ करते रहें! रब हमारे ख़ुदा से इलतमास करने से न रुकें ताकि वह हमें फ़िलिस्तियों से बचाए।” 9 तब समुएल ने भेड़ का दूध पीता बच्चा चुनकर रब को भस्म होनेवाली क़ुरबानी के तौर पर पेश किया। साथ साथ वह रब से इलतमास करता रहा।
12 इस फ़तह की याद में समुएल ने मिसफ़ाह और शेन के दरमियान एक बड़ा पत्थर नसब कर दिया। उसने पत्थर का नाम अबन-अज़र यानी ‘मदद का पत्थर’ रखा। क्योंकि उसने कहा, “यहाँ तक रब ने हमारी मदद की है।” 13 इस तरह फ़िलिस्तियों को मग़लूब किया गया, और वह दुबारा इसराईल के इलाक़े में न घुसे। जब तक समुएल जीता रहा फ़िलिस्तियों पर रब का सख़्त दबाव रहा। 14 और अक़रून से लेकर जात तक जितनी इसराईली आबादियाँ फ़िलिस्तियों के हाथ में आ गई थीं वह सब उनकी ज़मीनों समेत दुबारा इसराईल के क़ब्ज़े में आ गईं। अमोरियों के साथ भी सुलह हो गई।
15 समुएल अपने जीते-जी इसराईल का क़ाज़ी और राहनुमा रहा। 16 हर साल वह बैतेल, जिलजाल और मिसफ़ाह का दौरा करता, क्योंकि इन तीन जगहों पर वह इसराईलियों के लिए कचहरी लगाया करता था। 17 इसके बाद वह दुबारा रामा अपने घर वापस आ जाता जहाँ मुस्तक़िल कचहरी थी। वहाँ उसने रब के लिए क़ुरबानगाह भी बनाई थी।
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