4 साऊल ने अपने फ़ौजियों को बुलाकर तलायम में उनका जायज़ा लिया। कुल 2,00,000 प्यादे फ़ौजी थे, नीज़ यहूदाह के 10,000 अफ़राद। 5 अमालीक़ियों के शहर के पास पहुँचकर साऊल वादी में ताक में बैठ गया। 6 लेकिन पहले उसने क़ीनियों को ख़बर भेजी, “अमालीक़ियों से अलग होकर उनके पास से चले जाएँ, वरना आप उनके साथ हलाक हो जाएंगे। क्योंकि जब इसराईली मिसर से निकलकर रेगिस्तान में सफ़र कर रहे थे तो आपने उन पर मेहरबानी की थी।”
16 समुएल बोला, “ख़ामोश! पहले वह बात सुन लें जो रब ने मुझे पिछली रात फ़रमाई।” साऊल ने जवाब दिया, “बताएँ।” 17 समुएल ने कहा, “जब आप तमाम क़ौम के राहनुमा बन गए तो एहसासे-कमतरी का शिकार थे। तो भी रब ने आपको मसह करके इसराईल का बादशाह बना दिया। 18 और उसने आपको भेजकर हुक्म दिया, ‘जा और अमालीक़ियों को पूरे तौर पर हलाक करके मेरे हवाले कर। उस वक़्त तक इन शरीर लोगों से लड़ता रह जब तक वह सबके सब मिट न जाएँ।’ 19 अब मुझे बताएँ कि आपने रब की क्यों न सुनी? आप लूटे हुए माल पर क्यों टूट पड़े? यह तो रब के नज़दीक गुनाह है।”
20 साऊल ने एतराज़ किया, “लेकिन मैंने ज़रूर रब की सुनी। जिस मक़सद के लिए रब ने मुझे भेजा वह मैंने पूरा कर दिया है, क्योंकि मैं अमालीक़ के बादशाह अजाज को गिरिफ़्तार करके यहाँ ले आया और बाक़ी सबको मौत के घाट उतारकर रब के हवाले कर दिया। 21 मेरे फ़ौजी लूटे हुए माल में से सिर्फ़ सबसे अच्छी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल चुनकर ले आए, क्योंकि वह उन्हें यहाँ जिलजाल में रब आपके ख़ुदा के हुज़ूर क़ुरबान करना चाहते थे।”
22 लेकिन समुएल ने जवाब दिया, “रब को क्या बात ज़्यादा पसंद है, आपकी भस्म होनेवाली और ज़बह की क़ुरबानियाँ या यह कि आप उस की सुनते हैं? सुनना क़ुरबानी से कहीं बेहतर और ध्यान देना मेंढे की चरबी से कहीं उम्दा है। 23 सरकशी ग़ैबदानी के गुनाह के बराबर है और ग़ुरूर बुतपरस्ती के गुनाह से कम नहीं होता। आपने रब का हुक्म रद्द किया है, इसलिए उसने आपको रद्द करके बादशाह का ओहदा आपसे छीन लिया है।”
24 तब साऊल ने इक़रार किया, “मुझसे गुनाह हुआ है। मैंने आपकी हिदायत और रब के हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी की है। मैंने लोगों से डरकर उनकी बात मान ली। 25 लेकिन अब मेहरबानी करके मुझे मुआफ़ करें और मेरे साथ वापस आएँ ताकि मैं आपकी मौजूदगी में रब की परस्तिश कर सकूँ।” 26 लेकिन समुएल ने जवाब दिया, “मैं आपके साथ वापस नहीं चलूँगा। आपने रब का कलाम रद्द किया है, इसलिए रब ने आपको रद्द करके बादशाह का ओहदा आपसे छीन लिया है।”
27 समुएल मुड़कर वहाँ से चलने लगा, लेकिन साऊल ने उसके चोग़े का दामन इतने ज़ोर से पकड़ लिया कि वह फटकर उसके हाथ में रह गया। 28 समुएल बोला, “जिस तरह कपड़ा फटकर आपके हाथ में रह गया बिलकुल उसी तरह रब ने आज ही इसराईल पर आपका इख़्तियार आपसे छीनकर किसी और को दे दिया है, ऐसे शख़्स को जो आपसे कहीं बेहतर है। 29 जो इसराईल की शानो-शौकत है वह न झूट बोलता, न कभी अपनी सोच को बदलता है, क्योंकि वह इनसान नहीं कि एक बात कहकर बाद में उसे बदले।”
30 साऊल ने दुबारा मिन्नत की, “बेशक मैंने गुनाह किया है। लेकिन बराहे-करम कम अज़ कम मेरी क़ौम के बुज़ुर्गों और इसराईल के सामने तो मेरी इज़्ज़त करें। मेरे साथ वापस आएँ ताकि मैं आपकी मौजूदगी में रब आपके ख़ुदा की परस्तिश कर सकूँ।”
31 तब समुएल मान गया और साऊल के साथ दूसरों के पास वापस आया। साऊल ने रब की परस्तिश की, 32 फिर समुएल ने एलान किया, “अमालीक़ के बादशाह अजाज को मेरे पास ले आओ!” अजाज इतमीनान से समुएल के पास आया, क्योंकि उसने सोचा, “बेशक मौत का ख़तरा टल गया है।” 33 लेकिन समुएल बोला, “तेरी तलवार से बेशुमार माएँ अपने बच्चों से महरूम हो गई हैं। अब तेरी माँ भी बेऔलाद हो जाएगी।” यह कहकर समुएल ने वहीं जिलजाल में रब के हुज़ूर अजाज को तलवार से टुकड़े टुकड़े कर दिया।
34 फिर वह रामा वापस चला गया, और साऊल अपने घर गया जो जिबिया में था। 35 इसके बाद समुएल जीते-जी साऊल से कभी न मिला, क्योंकि वह साऊल का मातम करता रहा। लेकिन रब को दुख था कि मैंने साऊल को इसराईल पर क्यों मुक़र्रर किया।
<- 1 समुएल 141 समुएल 16 ->